हम सभी इस साधना के पथ पर अपने कदम बढ़ाते जा जारहे हैं . यह वह समय हैं जिसमें समाज के आधार भूत मूल्य का क्षय होता ही जा रहा हैं ओर इन मूल्यों के प्रति न केबल आज की युवा पीढ़ी बल्कि हमारे से पहले की चल रही पीढ़ी के लिए भी कोई ज्यादा महत्त्व नहीं रह गया हैं , पर अभी भी सारी आशाये क्षीण नहीं हुयी हैं , जब इस घटाघोप अंधकार के मध्य भी हमारे गुरु भाई ओर शुभचिंतक साधना शिविरों मैं भाग लेते जा रहे हैं और इस पथ पर इतने उत्साह से जानकारी ले ते जा रहे हैं क्या यह बेहद ही शुभता युक्त चिन्ह नहीं हैं की एक आशा की नन्ही किरण उदित हो रही हैं, और वह अपनी क्षमतानुसार अपना प्रकाश बढाती जा रही हैं , हम तो यही प्रार्थना करते हैं की यह कुछ, कीसंख्या अब और मैं बदले, तथा ओर की संख्या सबमें बदले ,
तंत्र क्षेत्र रूपी वृक्ष में बहुत से शाखाये हैं अपनी विशेषता के कारण वे हमें अलग अलग महसूस होतीहैं पर सभी मार्ग एक उसके पास ही जाते हैं
इस सभी शाखाओ में कुछ तो उभयनिष्ट हैं ही , जैसे हर वर्ग के साधक अपनी अज्ञान से लड़ते हुए उच्च ज्ञान की ओर हो तो अग्रसर हैं , हर शाखा में गुरुदेव ही सर्वोपरि हैं , ओर उनकी आज्ञा पालन तो जीवन का धर्म या प्राण वायु हैं .माँ पराम्बा इस रूप में या उस रूप में हर शाखा के केंद्र में हैं ही, हर शाखा में कुछ ऐसे विशेष नियम हैं जिनका पालन करना उस संप्रदाय विशेष के लिए तो अनिवार्य हैं ही .
अब समय हैंकि इन बिभिन्न शाखाओ के दर्शन के बारेमें हम कुछ बाते करें
वैष्णव मार्ग : जैस अकी नाम ही प्रदर्शित कर रहा हैं की यह मार्ग तो भगवान् विष्णु से ही सम्बंधित हैं , जो भी साधक इस मार्ग से सम्बंधित हैं वे अधिकतर भगवान् विष्णु के बिभिन्न अवतार से सम्बंधित हुए लीला से भजन ओर कीर्तन में ही सलग्न रहता हैं अपना आस्तित्व उसे अपने इष्ट के चरणों में विसर्जित करना हैं और इस तरह उसे अपने सर्वोच्य लक्ष्य तक पहुचना हैं हर नियम का दृढ़ता से पालन , सरल रास्ता हैं भक्ति मार्ग हैं पर साधना में अत्यधिक समय लगता हैं .
शैव मार्ग :इस विश्व में भला शिवतत्व के अतिरिक्त कों सा तत्व हैं . यदि सच में पूछा जाये तो इस प्रश्न का उत्तर थोडा सा कठिन हैं "सत्यम शिवम् सुदरम " तो हमारी परंपरा रही हैं .,यह भी यही कह रही हैं की जोभी अच्छा हैं वह शिवतत्व हैं चलोमान लिया जो कि शुभ हैं वह शिव तत्व हैं पर बुरे ओर गलत को भी आप यही कहेंगे शिव तत्व ,आप ईश्वर तत्व को क्या कहेंगे . को क्या कहा जाये ,जब यह सारा विश्व ईश्वर के द्वारा ही निर्मित हैं तब क्या भला क्या सोचना भला कभी भी पूर्ण से अपूर्ण की रचना हो सकती हैं ,यदि हम इसे अपूर्ण कहते हैं या गलत दीखता हैं तो यह हमारी दृष्टी कोण की कमी हो सकती हैं .साधक की चेतना धीरे धीरे उस ओर बढती जाती हैं जहाँ पर उसके सामने सारी मानव जाति होती हैं . सम्पूर्ण विश्व के लिए ही कार्य करना ही इस मार्ग की विशेषता हैं .
वाम मार्ग : यहाँ इस पथ का दर्शन यह हैं की यहाँ तक की भोग के माध्यम से भी जीवन सर्वोच्य लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता हैं .पर इस मार्ग से सम्बंधित साधना तो केबल ओर केबल गुरुदेव के मार्गदर्शन ही नहीं बल्कि उनके कड़े निर्देशों के साथ ही किजा सकती हैं ,हर व्यक्ति अपने जीवन में अष्ट पाश से बंधा हुआ हैं यहाँ पाश का तात्पर्य ऐसे मानसिक बंधन से हैं जिन्हें श्रम, लज्जा ,घृणा , आदि. ओर इससे बधे हुए हम कैसे अपने आपको शुद्ध कह /मुक्त कह सकते हैं यह नहीं हैं की आप यदि किसी एक पाश से मानलो की मुक्त हो भी गए हो तब भी आप को मुक्त नहीं कहा जा सकता हैं , उसके लिए आप को तो सारे पाश से मुक्त होना ही पड़ेगा. जब एक साधक इन पाश से मुक्त होजाता हैं तब उसी सांसारिक नियमो को मानने की आवश्यकता नहीं रह जाति हैं
यहाँ पर पुनः में यह कह रहा हूँ की यह केबल मानने की बात नहीं हैं बल्कि अपने गुरुदेव के निर्देश अनुसार धीरे धीरे आगे की स्तर की साधना आपको मिलती जाएगी, ओर आप अपनेएक एक पाश को काटते जायेंगे हाँ यह भी सत्य हैं की सदगुरुदेव जी का केबल अनुगृह युक्त वाक्य की तू मुक्त हैं आप मुक्त होंगे उसी क्षण में . एक अत्यंत उच्च मार्ग .पर इस मार्ग के साधक ओर महायोगी कभी भी लोक प्रियता अर्जित के लिए नहीं दोड़ते हैं . हर कोईस मार्ग की ओर दोड़ना चाहेगा पर थोड़ी सी मनमानी गलती सब...
सावधानी की एक बात :इस मार्ग में एक गलती भी बहुत महगी पड़ सकती हैं यहाँ अनेको अनाधिकारी व्यक्ति आप से कह सकते हैं की वे इस मार्ग के साधक हैं वे न केबल अपने स्व निर्मित नियमो से खुद तो पतन के मार्ग में जायेंगे बल्कि आपके लिए पतन का मार्ग प्रसस्थ कर देंगे ,यहं तो तभी बढ़ना चाहिए जबकि सदगुरुदेव का ही निदेश हो .अनेको तंत्र के नाम पर जो पतन की की आधान हीन कहानिया अनेको पत्र पत्रिका में छापते रहती हैं वह इस मार्ग के साधकों के पतन की होतीहैं जिन्होंने बिना सदगुरुदेव कियात्रा प्रारभ की हैं ..... पर थोड़ी सी मनमानी गलती सब कुछ समाप्तकर देती हैं .
दक्षिण मार्ग - जैसा की इस मार्ग का नाम ही बात सकता हैं की इस मार्ग की साधना , वाममार्ग के विपरीत होतीहैं जो ही समाज के नियमो देश काल के नियमो का पालन करती हुए की जा सकती हैं इस मार्ग पर पतन का भय नहीं हैं हाँ यह जरुर हैंकि इस मार्ग की साधना में , वाम मार्ग की अपेक्षा थोडा सा समय अधिक लग जाता हैं , भले ही समय थोडा सा अधिक लगता हैं पर साधक धीरे धीरे अपने लक्ष्य तक पहुँच ही जाता हैं . सामान्य साधक भी इस मार्ग के नियम अपने दिन प्रति के कार्य करते हुए आसानी से कर सकते हैं
अघोर मार्ग - जब व्यक्ति के सारे पाश समाप्त हो जाते हैं तब वह व्यक्ति इस मार्ग पर पहला कदम बढ़ता हैं ,जब वह पूर्णतयः भय रहित हो जाता हैं तब वह वह दूसरा कदम इस मार्ग पर बढ़ता हैं एक सच्चा अघोरी तो साक्षात् भगवान् शंकर का ही स्वरुप हो ता हैं पर उनकी संख्या तो अत्यंत ही कम हैं . एक व्यक्ति उनकी खोज में निकल सकता हैं पर उसके भाग्य ही होंगे जब उसे किसी एक के भी दर्शन हो जाये ओर ऐसा होता हैं तो यह उसके भाग्य उदित होने का सूचक होगा .., केबल अत्याधिक भाग्शाली ही रास्ते पर एक स्तर तक आ पाए हैं , वनारस के अघोरेश्वर भगवान् राम , वामाखेपा कुछ नाम तो लिए ही जा सकते हैं ओर इस मार्ग का साधक बनाने का यह तात्पर्य कभी भी नहीं हैं की आपको अपनी सांसारिक जिम्मेदारी से भागना हैं एक सच्चा अघोरी अपनी जिम्मेदारी भी पूरी करते हुए इस मार्ग का साधक बना रह सकता हैं . यह एक जरुरी तथ्य हैं की इस मार्ग के साधक को शमशान में जा कर अपनी साधना करनी पड़ती हैं , पर आप हर बार वहां पर जाये यह तो जरुरी नहीं हैं क्योंकि सदगुरुदेव जी द्वारा प्रदत्त दीक्षा "तीव्र महाकाल दीक्षा " साधक के शारीर में ही शमशान का निर्माण कर देती हैं और यह दीक्षा तो आज भी प्राप्य ही हैं बस आपको जा कर पूज्य पाद गुरुदेव त्रिमुर्तिजी से प्रार्थना जो बस करना हैं .
कौल मार्ग - हजारो हजारों पृष्ठ इस दिव्य मार्ग के बारेमें लिखे गए हैं या जा सकते हैं फिर भी लोग इस मार्ग के बारेमें कुछ भी नहीं जानते हैं एक उच्चस्तरीय मार्ग पर जिसके अध्येता नगण्य से हैंएक परिभाषा नुसार यहाँ माँ पार्वती ही कुल का प्रतीक हैं (जिसके कुल परंपरा का पता हो ) और भगवान शिव अकुल(जिनके आदि अंत का कोई पता नहीं ) के नाम से जाने जा ते हैं इस मार्ग पर चलते हुए साधक ब्रम्हांड में सर्व व्यापी शक्ति से एक्य अनुभव करने लगता हैं .शिव शक्ति से जुड़ा यह मार्ग अपने आप में ही दिव्य हैं .
यहाँ पर में एक बिंदु पर जोर देना चाहूँगा सभी मार्ग एक स्तर पर ही हैं उनमें न कोई उचा न कोई नीचा, हाँ अन्य मार्ग की तुलना में कुछ में कुछ देरलग सकती हैं तो कुछ में कम . यहाँ पर कृपया नोट कर ले की आप यदि किसी भी मार्ग में अपना रुझान रखते हैं तो यह कदापि नहीं हैं की वह मार्ग ही आपके लिए अनुकूल हैं या आप एक दिन या रात में ही अपना लक्ष्य प्राप्तकर लेंगे ,या उसमें आप विशेषग्य बन जायेंगे . किस साधक के लिए कोन सा मार्ग उचित हैं इसका तो केबल निर्धारण गुरु परंपरा करती हैं क्योंकि हर व्यक्ति अपने आप में एक अलग सत्ता रखता हैं ओर वह किसी दुसरे से वह अलग होता हैं ओर वह समाज के बिभिन्न वर्ग , संस्कार ओर विस्वास से आया होता हैं तो इसका निर्धारण वह नहीं गुरु परंपरा ही करती हैं .
यहाँ साधना क्षेत्र में गुरु ही सब कुछ होता हैं इस बात को हमेशा अपने मन ह्रदय में रखना होता हैं
नाना पंथ जगत में निज निज गुण सब गावे ,
सबका सार बता कर सदगुरु मार्ग लावे
शाब्दिक अर्थ तोयही हैं इस जगत में अनेको पथ हैं ओरसभी अपनी अपनी महत्ता तरह तरह से बताते हैं , यह तो केबल सदगुरुदेव हैं जो सबका सार बता कर साधक/शिष्य को उसके लिए उपयोगी मार्ग पर लाते हैं ओर केबल वही मार्ग आपके लिए सर्वोचता का हो सकता हैं
यह बात भी ध्यान में रखे की सदगुरुदेव जी/ पूज्यपाद गुरुदेव त्रिमूर्ति जी द्वारा बताया गया मार्ग ही आपके अन्य किसी गुरु भाई द्वारा अपनाये गए कोई भी अन्य चाहे वह कितना भी श्रेष्ठ मार्ग से आपके लिए उपयोगी होगा.
क्योंकि अन्तमें सभी मार्ग तो एक जगह पर ही समाप्त होते हैं..
सदगुरुदेव जीके श्री चरणों में ....
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We all are progressing on the path of sadhana tantra field , this is in this era when all the basic values so called the standard are breaking not only new generation but older one are now paying not much . but still not all the hopes gone when we see majority of our brother taking part in sadhana shivir, and actively taking interest in the path divine so this is very bright sign that still some rays of light emerging , we pray this some becomes many and many becomes all.
There are various sect in sadhana field , and because of their specialty they worked differently as it seems, but all roads leads to thee.
,many common things are like, in every one is fighting his ignorant to go for higher .every sect Gurudev is supreme, and ever sect his order is supreme, ma jagdamaba either in this or that form always present. every sect some fixed rules for that all the person related to that follow strictly.
Now it’s the times to know about various philosophy working in the sadhana field. Some of as like as
Vaishnav marg: a sthe name suggest this pathrealted to the Bhagvaan Vishnu , the person following this sect/achar/philosophy always immersed in the bhajan and kirtan though which they have to reach their ultimate goal, they are immersed in various lila’s performed /happened in the time of avataars of Bhagvaan Vishnu. They follow all the rules strictly. easier path some what more close to bhakti. They also has the sadhana but often takes a lot of time to reach the goal.
Shaiv marg: this world has a full of shivtatv, infact if it is being asked where it is not, really tough to answer. styam shivam sundaram, has also expressing, what is good happening in this world is shiv, but what is wrong or bad, that is also a another aspect of shiv(since when all the world is created by god the most perfect one so how its creation can be imperfect, only our limited view can see that way). So sadhak slowly slowly when rises his conscious he found that his aim is now totally for whole mankind rather for himself alone. thats the essence that sadhak chetna expanded on such a way.
Vaam marg: this path shows the way thateven bhog one canb go for the highest, but all the related sadhan can be only and only practiced under the strict guidance of own Gurudev,every man is surrounded by asht pash here pash literally meaning is rope theses are shame, fear, sex, jati etc, that means even we claim that how pure we are , it is not necessary that we are not bound by some rope i.e. p[ash ,one should be free from all this only than he can relies who is real self. in this ,once sadhak has found himself completely free from so called asth desire and he need not to follow so called worldly rules. Again I am pointing out it should be be just like saying that ,, you have to follow guru’s instruction slowly and slowly through various level of sadhana you are cutting the rope one by one, off course Sadgurudev single word that you are free, that means you are . On e of this highest marg, but often misunderstood either the practitioner or savants of this sect does not attract popularity.
A point to cautious ; this path is very dangerous, many people claiming that they are the practitioner of this path, not only they degrade himself thorough following the rules without any competent guru , but also become a instrument to degradation. Many of the tantra mysterious , base less sensuous story related to this path.
Dakshin marg- as this name suggest just opposite to vaam marg this righteous path, follows all the worldly rules made by society and nearly all the person belongs to this path, since there is no danger of any kind on moving on this path, yes , off course one takes little bit longer times compare to vaam marg. But it is safe. Through this no matter takes times but slowly and safely one can reach his goal. Even general person can follow this path too through undergoing day to days material life working.
Aghor marg- when person is really free from himself from all the pash than the first steps of this path opens, when no fearful condition can shake him it is the second path, real aghori is like lord shanker, but there are very less in number, one can search, it is depend on his luck that whether he could meet real aghori, and this will be the start of good future. Only lucky one is came up to this point,real great sadhak , and many of the great one realted to this path like aghoershwar Bhagvaan ram of varansi , vamakhepa , and many more. Yes offcourse for to have on this path doesnot means that yoy have to left the wordly duties a real aghori can lead his life successfully on the both way. Though their main work or sadhan realted to shamshan, but it is not always necessary that he has to go their, if one can have mahakaal Diksha , than throughthat Sadgurudev created a shamshan in his body . so that even he can leads a life and no one knows his true identity.
Kaulachar- thousand of thousand pages can be written on this path divine people even know not a single word about this , really the greatest path but real savants are a few. Here kul means mother Parvati whose father and grand father name is known and akul means lord shiva , whose no beginging and end. Here sadhak feel unity with the unseen ,means sadhak become one with brahm may so ever spread forces of universe.
Here I would like to emphasize on the point that all a path are equal and on a same platform but some are little or fastergrowth can be possible compare to other, but here also note down merely you are interesting in particular sect , the does not means, that with in days and night you will have to be master aorreach to a level, since sadhak can suitable for which sect this is only be decided by his guru.since every person is unique, he came from different society and having varuois befief and sankar. here in sadhan field guru is every thing. On should always keep this line in his maind and heart.
Nana patnth jagat main nij nij gyn gaive
sabka sar bata kar sadguru marag lave
Liter. means is that , there son many panth exist on this divine path, only and only Sadgurudev clears the the way for and tell you this is the way for you. And only that panth or path gives your ultimate aim.
One more important point is this the path suggested to you Sadgurudev ji /Gurudev Trimurti ji ki much much suitable compare to other without seeing that your next brother what is doing.
After all the marg leads to him .. to the divine lotus feet of Sadgurudev ji ...
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