Tuesday, March 5, 2013

UCHCHHISHTH VINAAYAK KALPOKT PRAYOG





Each and every person wants to learn the art of living life with perfection and attain pleasures and happiness in life. Every person has dream to fulfil the desire which he has dreamed of. He wants to attain wealth, prosperity and luxury so as to gain all happiness in life and beautify his life. But how all this can be possible. Certainly, fate and law of Karma play a very crucial role in determining the type of life being lived by person. Many types of defects of our current and past lives always dominate us which has definite repercussions on our life patterns. As a result, we see two categories of people surrounding us, one who completely experience all pleasure in life and others who strive hard for it. There is no doubt in the fact that nothing is possible without hard-work but as it has been said luck has an important role to play in our lives. If even after working hard and after trying again and again and going through various struggles, person does not get results, he is compelled to accept role of luck. But it is situation which can be overcome but for it we have to look back at knowledge of our ancestors. From ancient times, our ancestors, sages and saints have accepted unanimously that there may be limits to capability of human power or will power .But in such cases; person can get assistance of divine powers. If we are incapable to do any work, then we can attain the power by doing sadhna of god and goddess and attain success in our work. And in this context science behind tantra says that a certain procedure gives birth to certain power which helps us to attain a fixed result. In ancient times, there were lot of scriptures available which contained many types of rare procedures related to tantra sadhna which become obsolete with passage of time. One of such amazing scripture was ‘Uchchhishth Vinayak Kalp Tantra’. This scripture is collection of rare sadhnas related to Lord Vinayak. In this scripture, some special mantra related to Lord Uchchhishth Vinayak have been told.  But procedure related to them was known only to accomplished Siddhs of Gaanpatya sect only. Therefore getting those procedures is very difficult. In this scripture, sadhna mantras related to attainment of good-luck, luxury attainment, attraction and various other necessary aspects of life have been told. This scripture has been appreciated by Siddhs. But with passage of time, this great scripture became obsolete and procedure related to this mantra was not available.

Procedure given here is related to Mantra excerpted from Uchchhishth Vinayak Kalp Tantra which is very easy and can be done by any sadhak. It is related to attainment of wealth. In Fact, this procedure may seem very simple but it is highly intense procedure which can provide solution to so many problems of sadhak’s life to him.

Through this procedure, sadhak gets resolution from any property related problem. It is seen sometimes that no type of construction can be done on property or problem are faced while selling the property. For such problems and attainment of wealth through property, this procedure is the best.

If person’s money is struck somewhere, then sadhak should definitely do this procedure so that he can resolve the obstacles due to which money has stopped.

Along with it, attainment of wealth and financial development through progress in business and promotion in work-filed or job happens through this procedure. It is an intense procedure related to Lord Vinayak so how can any type of problem remain in sadhak’s life.


Sadhak can do this procedure on fourteenth day of Shukl paksha of any month. Sadhak can do this procedure in day or night.

First of all, sadhak should take bath and sit in red aasan facing North direction. Sadhak should eat something sweet and do this procedure without drinking water and without washing his face. This is necessary activity to be followed for this procedure.

After it, sadhak should spread red cloth on wooden plank (Baajot) in front of him. Make heap of vermillion-coloured rice on it. Establish pure and energised Parad Ganpati on that heap. In absence of Parad Ganpati, sadhak should establish Red Sandal Ganpati or Swetark Ganpati or any other energised Ganpati idol and do the procedure.

Sadhak should then perform poojan of Guru and Ganpati Idol. Sadhak should offer saffron Kheer as Bhog. After poojan, sadhak should chant Guru Mantra. After chanting sadhak should perform Nyas procedure.

KAR NYAAS
KSHAAM ANGUSHTHAABHYAAM NAMAH
KSHEEM TARJANIBHYAAM NAMAH
HREEM SARVANANDMAYI MADHYMABHYAAM NAMAH
HOOM ANAAMIKAABHYAAM NAMAH
KOM KANISHTKABHYAAM NAMAH
KAIM KARTAL KARPRISHTHAABHYAAM NAMAH

HRIDYAADI NYAAS
KSHAAM HRIDYAAY NAMAH
KSHEEM SHIRSE SWAHA
HREEM SHIKHAYAI VASHAT
HOOM KAVACHHAAY HUM
KOM NAITRTRYAAY VAUSHAT
KAIM ASTRAAY PHAT

After Nyas, sadhak should chant 21 rounds of below mantra while meditating on Shri Vinayak. Sadhak can use red sandal or Moonga rosary for chanting.


After completion of chanting, Sadhak should ignite fire and offer 108 oblations by this mantra. These oblations should be of saw-dust of red sandal. After offering oblation, sadhak should pray with reverence and seek blessings for success in sadhna. In this manner, this procedure is completed in one day; sadhak should accept the Bhog himself.
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जीवन में सुख भोग की प्राप्ति करना और अपने जीवन को पूर्णता से जीना यह कला निश्चय ही हर एक मनुष्य सीखना चाहता है क्यों की हर एक व्यक्ति का जीवन में यह स्वप्न रहता ही है की किसी न किसी रूप में वह अपने जीवन की उन इच्छाओ की पूर्ति करे जिसके स्वप्न उसने देखे है. या फिर जीवन में पूर्ण धन वैभव ऐश्वर्य को प्राप्त करे जिसके माध्यम से वह अप्पने जीवन में सुख को अंगीकार कर जीवन के पूर्ण मधुर रस का पान कर सके. लेकिन यह क्रिया कैसे संभव है, निश्चय ही व्यक्ति के भाग्य तथा कार्मिक द्रष्टि का इसमें बहोत ही बड़ा योगदान है की मनुष्य अपना जीवन किस प्रकार से व्यतीत कर रहा है. मौजूदा जीवन तथा विगत जीवन के कई प्रकार के दोष हम पर हमेशा हावी रहते है जिसका निश्चय ही प्रभाव पड़ता है हमारी जीवन शैली पर तथा इसी कारण से हम देखते है हमारे आस पास दो प्रकार के व्यक्तियो को श्रेणी, एक जो अपने जीवन में सुख का पूर्ण रूप से प्रत्यक्ष अनुभव करते है और दूसरे वे जो इसके लिए सतत प्रत्यनशील रहते है. निश्चय ही बिना परिश्रम के कुछ भी प्राप्ति संभव नहीं है लेकिन जैसे की कहा गया है की भाग्य की भी तो एक बहोत ही बड़ी भूमिका हमारे जीवन में होती ही है. फिर अगर परिश्रम करने पर भी बार बार कोशिश करने पर भी तथा कई कई प्रकार से संघर्षो का सामना करने पर भी अगर परिणाम की प्राप्ति न हो पाए तो व्यक्ति बाध्य हो ही जाता है उसे भाग्य की गति मानने के लिए. लेकिन यह तो एक प्रकार से अल्पविराम की स्थिति है जहां से आगे जाया जा सकता है लेकिन उसके लिए  हमें हमारे पूर्वजो के ज्ञान की तरफ एक द्रष्टि डालनी होगी. आदि काल से हमारे पूर्वजो ऋषि मुनियों तथा सिद्धो ने एक स्वर में स्वीकार किया है की मनुष्य के शक्ति की सामर्थ्य की भले ही उसको सीमा दिखाई देने लगे या मनोबल भले ही सिमित हो, लेकिन एसी स्थिति में मनुष्य को देव शक्ति के द्वारा मदद प्राप्त हो सकती है. अगर किसी कार्य को करने के लिए हम असमर्थ है तो निश्चय ही हमें उन देवी देवता से साधना के माध्यम से शक्ति की प्राप्ति हो सकती है तथा कार्य की सफलता को अंगिकार किया जा सकता है. तथा इसी सबंध में तंत्र का पूर्ण यह विज्ञान भी है एक निश्चित प्रक्रिया एक निश्चित शक्ति को जन्म देता है जो की एक सुनिश्चित परिणाम की प्राप्ति करा सकती है. प्राचीनकाल में तंत्र साधना से सबंधित कई प्रकार की दुर्लभ प्रक्रियाओ से सबंधित कई ग्रन्थ प्राप्य थे जो की काल क्रम में लुप्त होते गए. ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ था उच्छिष्ट विनायक कल्प तंत्र’. यह ग्रन्थ अपने आप में दुर्लभ साधनाओ जो की भगवान विनायक से सबंधित है उसका संग्रह है. इस ग्रन्थ में उच्छिष्ट विनायक देव सबंधित कुछ विशेष मंत्रो के बारे में बताया गया है, लेकिन उससे सबंधित प्रक्रिया सिर्फ गाणपत्य मत के सिद्धो को ज्ञात थी. इस लिए प्रक्रियाको प्राप्त करना अत्यधिक दुर्लभ है. इसी कल्प में सौभाग्यप्राप्ति, ऐश्वर्य प्राप्ति, आकर्षण इत्यादि जीवन के आवश्यक पक्षों से सबंधित साधना मंत्रो के बारे में बताया गया है. यह ग्रन्थ सिद्धो के मध्य प्रशंशनीय रहा है लेकिन काल क्रम में यह महान ग्रन्थ लुप्त हो गया था तथा इसके मंत्रो के सबंध में प्रक्रिया भी प्राप्त नहीं हो पा रही थी.

प्रस्तुत प्रयोग उसी उच्छिष्ट विनायक कल्प तंत्र से प्राप्त मन्त्र से सबंधित है जिसकी प्रक्रिया अत्यधिक सहज है तथा इसे कोई भी साधक कर सकता है. यह प्रयोग धन प्राप्ति के सबंध में है. वस्तुतः यह प्रयोग भले ही सामन्य प्रयोग दिखे लेकिन यह एक अत्यधिक तीव्र प्रयोग है जो की साधक को शीघ्र ही जीवन की समस्याओ का समाधान प्राप्त करा सकती है.

इस प्रयोग के माध्यम से व्यक्ति को अगर कोई सम्पति से सबंधित समस्या है तो उसका निराकरण मिलता है. कई बार यह देखा जाता है की कोई सम्पति पर किसी भी प्रकार का निर्माण गठन आदि हो नहीं पाता है या फिर सम्पति को बेचने के लिए रखा जाता है लेकिन यह भी संभव नहीं हो पता है. इस प्रकार की समस्याओ के लिए तथा सम्पति से धन की प्राप्ति के लिए यह प्रयोग उत्तम है.

व्यक्ति का अगर कोई धन रुक गया है या फस गया है तो साधक को यह प्रयोग अवश्य करना चाहिए जिससे की जिन बाधाओं के कारण धन रुका हुआ है उससे सबंधित निराकरण साधक को मिल सके.

साथ ही साथ व्यापर वृद्धि, तथा नौकरी और कार्य क्षेत्र में पद्धोनती के माध्यम से धन प्राप्ति तथा धन का विकास तो इस प्रयोग को करने पर होता ही है क्यों की यह तो भगवान विनायक से सबंधित प्रयोग तीव्र प्रयोग है, भला किस प्रकार से फिर कोई विघ्न या बाधा साधक के जीवन में बाध्य हो सकती है.



साधक यह प्रयोग शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को करे. साधक यह प्रयोग दिन या रात्रि के समय कर सकता है.

साधक सर्व प्रथम स्नान कर लाल वस्त्र धारण कर लाल रंग के आसन पर बैठ जाए. साधक का मुख उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए. साधक को सर्व प्रथम कुछ मीठा खा ले तथा बिना पानी पिए या मुख धोए यह प्रयोग सम्प्पन करे. यह एक आवश्यक क्रिया है इस प्रयोग के लिए.

इसके बाद साधक अपने सामने लकड़ी के तख्ते पर या बाजोट पर लाल वस्त्र को बिछा दे. उस पर कुमकुम से रंगे हुवे चावल की ढेरी बनाए. उस ढेरी पर साधक विशुद्ध एवं चैतन्य पारद गणपति को स्थापित करे. पारद गणपति की अनुपलब्धिमें साधक को रक्त चन्दन के गणपति या स्वेतर्क गणपति या किसी भी चैतन्य गणपति विग्रह को स्थापित कर उस पर प्रयोग करना चाहिए.

साधक को इसके बाद गुरु पूजन एवं गणपति विग्रह का पूजन करना चाहिए. साधक को भोग के रूप में केसर डाली हुई खीर अर्पित करना चाहिए. पूजन के बाद साधक गुरु मन्त्र का जाप करे. जाप के बाद साधक न्यास करे.

करन्यास

क्षां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः

क्षीं तर्जनीभ्यां नमः

ह्रीं सर्वानन्दमयि मध्यमाभ्यां नमः

हूं अनामिकाभ्यां नमः

कों कनिष्टकाभ्यां नमः

कैं करतल करपृष्ठाभ्यां नमः

हृदयादिन्यास

क्षां हृदयाय नमः

क्षीं शिरसे स्वाहा

ह्रीं शिखायै वषट्

हूं कवचाय हूं

कों नेत्रत्रयाय वौषट्

कैं अस्त्राय फट्

न्यास के बाद साधक श्रीविनायक का ध्यान कर निम्न मन्त्र की २१ माला जाप करे. यह जाप साधक रक्त चन्दन की माला से या मूंगा माला से करे.



 ॐ क्षां क्षीं ह्रीं हूं कों कैं फट् स्वाहा

(OM KSHAAM KSHEEM HREEM HOOM KOM KAIM PHAT SWAHA)

जाप पूर्ण होने पर साधक इसी मन्त्र के द्वारा अग्नि प्रज्वलित कर १०८ आहुति प्रदान करे. यह आहुति साधक लाल चन्दन के बुरादे से प्रदान करे. आहुति देने के बाद साधक श्रद्धा सह प्रणाम करे तथा साधना में सफलता प्राप्ति के लिए आशीर्वाद की प्रार्थना करे. इस प्रकार एक ही दिन में यह प्रयोग पूर्ण होता है. साधक को भोग स्वयं ही ग्रहण करना चाहिए.

****NPRU****

1 comment:

hemant vasisth said...

jai sad gurudav bhai g yah paryog chaturthe/chaturdasi ko karna hi