कल रात्रिकाल में गुरुदेव श्री कैलाशचन्द्र जी का फोन आया था,स्वाभाविक रूप से समय समय पर आशीर्वचन का अमृत वो हमें प्रदान करते ही हैं.उन दिव्य वचनों के बाद उन्होंने जो कुछ भी मुझे बताया,उससे मेरे होश ही उड़ गए.और ये उन्होंने प्रथम बार नहीं बताया था बल्कि ये इससे पहले उन्होंने जब हमारी कामाख्या की कार्यशाला चल रही थी तब भी फोन पर बताया था, उन्होंने कहा की वो कुछ गुरु भाइयों को जो की पंजाब से हैं (और इस घटना के पहले गुरुदेव के पीछे पीछे विविध दीक्षाओं के लिए घुमते रहते थे और प्रायः निशुल्क ही कई कई चरण दीक्षाओं के लेते रहते थे और करुणा और प्रेम के वशीभूत गुरुदेव उन्हें मुस्कुराते हुए ये प्रदान भी करते थे)को कई बार कॉल लगाते हैं पर पूरी पूरी घंटी जाने के बाद भी ये लोग फोन नहीं उठाते हैं. और ऐसा पिछले ५ महीनों से हो रहा है.वो भी दिन में कई बार कभी दिन में कभी रात में भी.ऐसा नहीं है की उनलोगों के पास गुरुदेव का मोबाईल नंबर नहीं है बल्कि सच तो ये है की जब तक उन लोगो को काम रहता था तो वे लोग गुरुदेव को ढूँढ ढूँढ कर उनके चरणों में अपने कार्य की सफलता के लिए गिडगिडाते रहते थे. वे मासिक गुरु पूजन भी करते हैं पर गुरु को ही इग्नोर भी करते हैं.और इसका कारण मुझे भली भांति पता है और वही गुरुदेव ने स्पष्ट भी किया की गुरुदेव इन्होने त्रिमूर्ति में से अपनी अपनी पसंद का गुरु ढूँढ लिया है ,अर्थात ये जिनके पास जाते हैं उनके अतिरिक्त बाकी दो गुरु इनके लिए गुरु हैं ही नहीं. अरे ये मूढ़ मति ये नहीं जानते की गुरु विभक्त नहीं होता है और न ही गुरु किसी देह में आबद्ध है.उनकी वाणी की पीड़ा का मात्र मैं अहसास ही कर पा रहा था.
फिर उन्होंने मुझसे पूछा की क्या वे तुझसे भी संपर्क नहीं करते हैं तो मैंने कहा की नहीं वे मुझसे भी संपर्क नहीं करते हैं ,जब तक उन्हें अपनी समस्याओं के बाबत मुझसे हल चाहिए था या पारद या तंत्र का कुछ समझना था ,तब तक वे मुझे यही कहते रहे की ये सब हमें ये पारद और तंत्र का ज्ञान गुरुसेवा के लिए चाहिए और मैं मूर्ख उन्हें वो रहस्य समझाता भी रहा और उनकी मदद भी की ,परन्तु जिस दिन से उनका काम पूरा हुआ वे अपनी समस्या से मुक्त हुए. या कोई और उन्हें मिला तो उन्होंने फटाक से अपना पाला ही बदल लिया.क्यूंकि रातो रात अमीर बन्ने की कुंजी जो हाथ नहीं आ पाई थी. अरे इस रास्ते पर धैर्य रखने वाला ही सफलता पाता है.वही सद्गुरु मुझे भी समझाता था की तू ये सब बताकर बेवकूफी ही करेगा.
मुझे याद है की ये लोग सदगुरुदेव से दीक्षित रहे हैं और अपने आपको पूर्ण समर्पित शिष्य मानते रहे हैं. शायद ये इस बात को नजरअंदाज कर रहे हैं की सदगुरुदेव सदैव सदैव एक ही बात कहते रहे की मेरी आज्ञा ही तुम शिष्यों के लिए सर्वोपरि होनी चाहिए तब ये काठ के उल्लू हाँ में हाँ मिलाते थे. अरे आज्ञा का अर्थ ही होता है की गुरु ने कह दिया अब उस पर सोचने का प्रश्न ही नहीं . सदगुरुदेव ने हमें एक गुरु देकर ये नहीं कहा था की बस इस एक की ही आज्ञा मन्ना या ये ही श्रेष्ट है अपितु अपनी करुणा से हमें तीन तीन सर्व समर्थ गुरु दिए , और वर्तमान में तो ये हम सभी के लिए ज्यादा अच्छा हो गया है की अब हमें तीन तीन गुरु हमेशा मार्गदर्शन देने के लिए उपलब्ध रहते हैं ,लेकिन हम पाद पद्म सदगुरुदेव की अवहेलना कर उन्ही के साथ राजनीति का प्रयोग कर रहे हैं. इन्हें बाँट रहे हैं चापलूसी को शिष्यता मानते हैं, अरे जो गुरु-गुरु में भेद करे ना ही वो शिष्य हो सकता है और ना ही वो सदगुरुदेव का अंश ही हो सकेगा. अरे किसी से भी मिलो पर अपनी श्रद्धा तो तीनो के प्रति रखो. और याद रखो की सदगुरुदेव सब देख रहे हैं..... वे जानते हैं की कितने शिष्य हैं जो सही अर्थों में विनम्र भाव से समर्पित होकर शिष्य धर्म का निर्वाह कर रहे हैं. गुरु की अवहेलना करने वाला शिष्य हो ही नहीं सकता .और ना ही कभी कुछ प्राप्त कर पायेगा.
क्यूंकि शास्त्र कहते हैं......
हरी रूठे गुरु ठौर है ..
गुरु रूठे नाहि कौनो ठौर.
भग्न ह्रदय से और कुछ कहना शायद औरो को हजम नहीं हो पायेगा ,इसलिए बस इतना ही.
****NPRU****
8 comments:
कामख्या कार्यशाला में यह घटना मेरे सामने हुए थी जब पूज्य गुरुदेव जी का फ़ोन कॉल आया था , अपने पूज्यपाद गुरुदेव के कॉल जो सदैव स्नेह आशीर्वाद ही देते रहे हैं , पता नहीं उसे ठुकुराकर ये कहाँ जायेंगे?, सदगुरुदेव के लिए तो तीनो पूज्य गुरुदेव उनके ही ह्रदय अंश हैं ,क्या किसी भी एक गुरुदेव के ह्रदय को ठेस पंहुचा कर क्या ये सदगुरुदेव की प्रसन्नता पा पाएंगे ?, ओर क्या ये इतना भी नहीं जानते की सदगुरुदेव भगवान् ने तो कहा था स्पस्ट आज्ञा दी थी की "ये तीनो गुरु पुत्र ही अब तुम्हारे गुरूदेव हैं जैसी मेरी आज्ञा मानते हो मेरे प्रति स्नेह रखते हो वसे ही सदैव इनके प्रति रखना , ओर मेरा एक भी सच्चा शिष्य इस गुरु आज्ञा का उल्लघन नहीं करेगा" , तब इन गुरु भाइयों ऐसा साहस कैसे हो गया हैं .कम से कम जीवन मैं गुरूदेव के साथ तो ये राजनीति न करे , ओर क्या अन्य दोनों पूज्य गुरूदेव जी की आखों से यह छुपा होगा ? भले ही दोनों गुरूदेव स्वयं न कहे पर उनका मन जानता होगा की सदगुरुदेव् के शिष्य ये कैसे कर सकते हैं? या कर रहे हैं?. अ भी भी समय हिं वे गुरूदेव से अपने व्यवहार के लिए क्षमा याचना कर सकते हैं, हमारे तीनो गुरूदेव तो सदैव से क्षमाशील हैं ही . अब आगे इन लोगों भाग्य .....
ऐसे व्यक्तियों को क्या कहा जाए. जिनके लिए अपना मनोरथ पूर्ण करना ही सब कुछ है.सदगुरुदेव की आज्ञा तो बहोत दूर की बात है. अपना मनोरथ सिद्ध करने के लिए अगर कोई गुरु मे भेद करे, बटवारा करे तो उससे ज्यादा ओछापन और क्या होगा..आश्चर्य की बात तो यह है की जब सदगुरुदेव ने ही हमारे मध्य त्रिमूर्ति गुरुदेव के रूप मे तिन तिन पिता दिए है, मार्गदर्शक दिए है तो फिर उनमे हम भेद कर ही केसे सकते है, क्या हूं इतने अधिक ज्ञानी हो चुके है ? सायद वे भूल रहे है की सदगुरुदेव की नज़र सदैव सब पर बनी रहती है, सायद वे यी भी भूल गए है की सदगुरुदेव की गति आज भी उतनी ही है, सायद उनको ये ख्याल ही नहीं है की सदगुरुदेव कोई शरीर नहीं थे, जो की चले गए, प्रभु उन्हें सदबुद्धि दे.
Bhai sahab aise vayekti sirf apne swarth purti ke liye hi is jiwan me aate hain aur koi karan nahi hota unka ant mein kya gati honi hai ye sabhi jante hain waise bhi ye murkh hi hain jo brahma vishnu mahesh mein bhed karte hain ......... main delhi mein rehta hun aur jab abhi moka milta hai to dono jagah jahan gurdev milte hain wahan jata hun kynki pata hai gyan to ek hi hai aur gurdev trimurti sirf tin bhotik sarir to ho sakten hain par tin suksham sarir nahi.... woh to param pujye gurudev ka hi atam ansh hain........
Jai gurudev mud matiyon ko sadbudhi do..........
Neeraj Kumar
Respected Anu Bhai and Arif Bhai,
After reading this history, I want to tell u that foor a long time I'm reading yr blogs and other blogs also for sadhnas, but only I became member of yr blog group in this year. Earlier I've found some blogs where the same sadhnas same word to word as in yr blogs were published in other blogs also. And to my utter surprise those sadhnas were published just after 2 -3 days after u published in yr blog. I think those were the same egoist, selfish guru bhai's. I know one thing that ROSES ARE ALWAYS GROWS WITH THORNS, SO THROW OUT THOSE THORNS, AND GIVE YR GREAT FEELINGS TO OTHERS.
Dear Anu bhai,
Jaisa ki apne aur Arif Bhai ne Kha tha ki Kohat enclave, pritampura mae Guruji ke ane ka samay pata chal sakta hai. Aaaj mae waha par gaya aur gayat hua ki Guruji 16,17,18 July ko Delhi aa rahe hai. Aur tino dine kuch vishesh pryog bhi waha karye jayenge. Waha par mile sajjan vaykti se jab maine us pryog mae samilit hone ki icha jahir ki toh unhone kaha ki aap sirf Guruji se Diksha prapt kare aur jo problem hai uske anusar Guruji swayam hi marg darshan karenge . Kintu mae apni samsay ke samadhan ke sath aur bhi siksha, pryog, sidhi grahan karna chata hon. Kya mujhe iska sobhagya prapt ho sakega. Kirpya mera marg darshan kar...?
Dear npru team
jaigurudev
as you shared your & trimurti gurudev kailash ji's feelings regarding cunning peoples;iwouldn't like to call them a shishya because such type of persons never can't be a shishya and in every era this type of people will be arround there in society and destiny neverforgive them. as a true shishya you pls carry forward & spread the divine knowledge of sadgurudev nikhil.
thanks n regards
pardeep chopra
Jai Gurudev ,
Kitne kush kismat hai woh sishya jise guru ne call kiya par uski badkismati to dekho usne ignore kar diya . Gurudev ne gayan ki triveni bahaya haam jise sishyo ke liye udgam bhi wahi hai sangam bhi wahi hai phir na jane hamloge aisha kyu kar rahe hai jo nahi karna chiye.
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