दस महाविद्या में माँ भगवती के इस रूप से सम्बंधित साहित्य बहुत कम ही उपलब्ध हैं , इस कारण यह महाविद्या ज्यादा सामने नहीं आई हैं ओर साधको की भी देवी के रूप को देख कर ज्यादा रूचि नहीं हैं , पर साधक यह भूल जाते हैं की जीवन मे उग्र रूप की साधना भी परम लाभ दायक हैं ओर माँ के रूप के साधक अपने आप में विलक्षण होते हैं , दिव्या माँ के इस रूप के मंत्र में ऐसा विन्यास हैं जो साधक को क्या साधक को नहीं प्रदान कर कर सकते हैं , १६ अक्षरी यह मात्र तो अद्भुत हैं सदगुरुदेव भगवान् ने अनेको बार इस मंत्र की बृहद विवेचना मंत्र यन्त्र विज्ञानं में की हैं उसे यहाँ पुनः लिखना ,इस लेख का मात्र विस्तार करना हैं .
जीवन में कभी कोई उच्च स्तर तांत्रिक,मान्त्रिक जो रास्ता भटक चुके हो ओर आपके लिए अपने विद्या से समाज विरोधी कार्य करते हुए परेशानी का कारण बन रहे हो तब उनकी सारी शक्ति छीन कर उन्हें निस्तेज बनाने के लिय्रे एक मात्र यही महाविद्या हैं सदगुरुदेव एक पूरा विधान इस सन्दर्भ में दिया हुआ हैं . अद्भुत ओर गोपनीय विधान हैं . जो जीवन में कभी परिस्थिति वश , हम हताश न हो इस कारण हमें प्रदान किया गया हैं .
साथ ही साथ ध्यान रहे की इस महाविद्या रूप में देवी के साथ दो उनकी सहेली डाकिनी ओर वर्णिनी हैं जो दोनों भी दिगम्बर हैं , ये दोनों प्रबल तामसिक शक्तियों की स्वामिनी हैं , सदैव रक्त पान करने को उत्सुक रहती हैं , देवी के दिगंबर रूप का एक अर्थ यह भी हैं केबल निर्मल मन ह्रदय के साधक ही सफलता प्राप्त कर सकते हैं या जो निर्मल ता प्राप्त करना चाहताहैं उसे तो इस रूप के बारे में ध्यान देना होगा ही , क्योंकि परम निर्मलता प्राप्त किये बिना साधक रूपी शिशु को दिगंबरा माँ स्वीकार करेगी भी नहीं , निर्मलता प्राप्त ही साधक उच्च स्तर की साधनाओ के लिए योग्य माना जा सकता हैं,
तंत्र साधना के चार सर्वोपरि साधना स्तर में ( शून्य पीठ, अरण्य पीठ , शव पीठ ,श्यामा पीठ ) श्यामा पीठ साधना आदि इसी निर्मलता को प्रमाणिक रूप से प्राप्त करने का एक द्वार जो हैं . उसके लिए भी यह महाविद्या भी एक रास्ता प्रदान कर सकती हैं .
इनके मंत्र में आया वज्र शब्द का एक अर्थ तो हमारा सत्व तत्व हैं ओर बौद्ध तंत्रों में इसका एक अलग ही महत्त्व हैं आज भी अनेको बौद्ध तांत्रिक चिन्तपुरनी माँ के मदिर में दर्शन करने को आते रहते हैं जो माँ छिन्मस्ता माँ का ही मदिर हैं ओर राज्जप्पा का छिन्नमस्ता का मदिर विश्व विख्यात हैं , जिसे कहते हैं माँ ने स्वयं एक दिनमें स्वयं ही निर्माण कराया था , आजभी पूर्ण जाग्रत स्थान हैं , जहाँ पर किजाने वाली साधना पूर्ण फल प्रदायक होतीहैं ,
महा शक्ति पीठ में हमेशा इतनी शक्ति हमेशा विदमान होती हैं जो एक सामान्य साधक को भी उसका अभिष्ट प्रदान करने में समर्थ होती ही हैं , साधको इस बारे में सोचना चाहिए जो साधना कर कर के थक गए हो उन्हें सफलता न मिल पा रही हो,उन्हें तो कभी न कभी साधना को किसी भी शक्ति पीठ पर करके एक बार देखना ही चाहिए , ऐसे तो माँ पराम्बा हर स्थान पर विदमान हैं पर कभी उनके घर पर में भी कर के भी तो साधना देंखें . फिर कहें.
इनके मंत्र में आया विरोचन शब्द भक्त प्रह्लाद के पुत्र विरोचन से भी जोड़ा गया हैं , जो की स्वयं एक परम साधक थे , माँ उनकी इष्ट थी . वसे तो बक्त प्रह्लाद के वंश में माँ सिद्व इष्ट थी ही , हिरण्य कश्यप ( भले की कर्म प्रभाव में रास्ता भूल गए हो, विपरीत आचरण करने लगे हो ) भगवतीके इस रूप के प्रबल साधक थे , तीनो लोकों को हिला सकने में उनकी शक्ति इसी बात की परिचायक हैं .
कहीं कहीं माँ के पेट में बनी तीन रेखाए चित्रों में बनी हैं जो सत रज तम रूप का प्रतिक हैं ,, वहीँ उनके हांथो में सुशोभित कैची , मानव मात्र के बंधन को काट सकने में समर्थ माँ की कृपा का प्रतीक हैं . वहीँ रक्त के तीन धाराओं का एक अर्थ इडा पिंगला , सुषुम्ना का भी प्रतीक हैं . जो की कुण्डलिनी तंत्र में उर्ध्मुखी होने में एक मार्ग होतीहैं .इस महाविद्या साधक के कुण्डलिनी स्वयं ही जाग्रत होने लगती हैं या हो जाती हैं , जिन्हें वायु गमन में रूचि हो वह भी इस साधना को करके देखें. पर यहध्यान रहे इस महाविद्या साधना में साधना काल में अत्यधिक रोमांचित अनुभूतियाँ होंगी ही, इस कारण सदगुरुदेव जी से दीक्षा प्राप्त करे के बैठे तो अत्यधिक उचित होगा , साथ ही साथ गुरुमंत्र का अधिक से अधिक जप इस साधना प्रारंभ करने के पहले भी अत्यधिक लाभ दायक होगा हैं .ओर साधना काल मेंकिसी भी हालमें अपना आसन न छोड़े .
साधना जगत में अनेको प्रकार के यज्ञों का उल्लेख मिलता हैं ,ये पाक यज्ञ ,हर्वियज्ञ ,महायज्ञ, अति यज्ञ, शिरो यज्ञ हैं. साधनाग्रन्थ बताते हैं की सभी यज्ञ छिन्न शीर्ष हैं . इसलिए हर यज्ञ के अंत में शिर संधान यज्ञ किया जाता हैं इसको न करने पर हर यज्ञ बिना सिर के रह जाता हैं जो उचित फल नहीं देता हैं . माँ भगवती छिन्नमस्ता का यह रूप उसी तथ्य को गंभीरता पूर्वक इंगित करता हैं
षोडशी त्रिपुर सुंदरी जो माँ भगवती का परम सुखदायक स्वरुप हैं जो अपने एक स्वरुप में माँ भुव्नेश्वेरी रूप धारण कर सारे चर अचर जगत का पालन पोषण करती हैं वही इस विस्वा के अंत काल में माँ छिन्नमस्ता का रूप धारण कर उसे नष्ट कर डालती हैं
माँ के दिव्य स्वरुप को जो साधको को उनका मनोवांछित देने में समर्थ हैं साधक इस और रूचि रखे ओर सदगुरुदेव भगवान् से प्रार्थना करे की अनेको रहस्य जो हम लोगों की उदासीनता के कारण भी हमारे सामने आने से रुक गए हैं ओर जो उन्होंने बताये हैं उन्हें समझ पाने में असमर्थ हैं अब वे ही कृपा करके हमारे सामने उद घाटित करे , हम इस साधना को करके दिव्य माँ के श्री चरणों के प्रति फल से , उनके स्नेह आशीर्वाद परम पवित्र सिद्धाश्रम की दिशा में एक ओर कदम चले ..
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Very little sadhana related material available about this form of mother divine. That’s one of the reason why not so much publicity of this sadhana. And sadhak also not shown much interest towards in this form of mother divine because of lake of knowledge . but sadhak often forget that the sadhana of urgra form, has many advantages, and sadhak of this mahavidya is having great personality. The divine mantra associated with this sadhana, what can not able to provide to the sadhak of this mahavidya. This mantra of 16 letter is itself a miracle , Sadgurudev bhagvaan many times describe in details about the each letter of this mantra what that stands for and meaning of that. Here mentioning again is just to make this post lengthy.
Whenever any mantra /tantric who knowingly doing some harm full act and continuously doing that towards you or your family . This mahavidya comes into picture that snatched all their power and make them helpless for life long. Sadgurudev ji provide such a process of this mahavidya for punishment of such fellow and protection of us. So that when in life such a condition arise, we will not find outself helpless.
Side by side remember that two associated of mother named dakini and varnini also has a digamber form and always ready to drink the blood, is the ruler of many Tamsic powers. The digaamber form of mother also shows the fact that only the sadhak ,who have pure in heart will get successful in this sadhana or who want to achieve such a purity of heart also have to think about this sadhana. Since without achieving such a stage , mother divine this form will not accept him. And without achieving this purity how can a sadhak be consider eligible for higher level sadhana.
The main four stage of tantra sadhana level ( shoony peeth, arany peeth, and shav peeth, shyama peeth )shyama peeth provide a way for achieving this level of purity , and this mahavidya sadhana also provide way to do that /achieve that .
The term “vajra” comes in this mantra also signifies sat tav of us means veery of human, and having very specific relation in bouddh tantra. Even today many of the bouddh tantrik visited every year in ma chintpurni temple , that actually a temple of chhinmasta ma. And one ore temple of mother is in raajappa , has got world fame , its being told that the same temple has been built by mother in one night only. This is still highly energies place. and any sadhana proved to fruitful.
In any mahashakti peeth always energy has a such a flow of energy that even simple sadhak if does his sadhana will be benefitted, those who are tired of doing sadhana many times but are not getting result, also take a chance to do his sadhana once again with full heart and devotion. as mother is present every where but doing sadhana in her home,, what to say more..
The word “virochan” in the mantra also indicating the grand son of prahalad , who himself a great sadhak of mother this form, and mother chhinmasta always be worshipped in his family , bhakt prahlad father hiranykashyap also a great sadhak of mother and achieve great power only through this mantra.
In many figure/photograph of mother chhinmasta, there are three line in mother’s stomach that shows sat , raj and tam forces/element of this world. and the kanchi in her hand shows that this human life bounded by so many pasha(asth /eight) and mother with love can cut those string and can make you free, three branches ofb lood also shows/represents that ida pingla, shushamna nadis inhuman body. Through that kundalini gets the way to upwards motion to reach infiniteness. means doing this sadhana sadhak kundalini awaking or fully awakened, those who have very much interest in vayu gaman can do this sadhana. but will have care that during the sadhana kaal of this sadhana many furious experiences takes place , so taking mahavidya Diksha from Sadgurudev ji is must step and do as much as guru mantra jap is proved to very benefitted. and in any situation arise during sadhana jap one should not leave his aasan.
There are many type of yagyas found in sadhana holy books like paak yagya, harvi yagya, mahayagya, ati yagya , shiro yagya , and sadhana books tell that are all without head , so at the end of each yagya one should perform “shir sandhan yagya” if not do that than all the yagy becomes headless and not able to generate desired result as you expected for, divine mother chhinmasta this form indicating this facts.
Shodshi tripur sundary form, that is most beautiful form of mother divine, got form of mother bhuvneshwari through that divine mother take care of whole world, abut at the end of world she get the form of chhinmasta and destroy whole world.
Mother divine ‘s this form is able to fulfill every wish for her sadhak, and sadhak will show interesting this direction and pray to Sadgurudev Bhagvaan that many such a secret which does not comes in front of us because of our lack of interests and what he told us , not able to understand because of limited buddhi, atleast now shows allthat gyan to us. So that through that , and blessing of mother chhinmasta we can moved one more step towards the way of siddhashram..
****NPRU****
1 comment:
निखिल जी , आपने कहा कि देवी जी कि जो साथ है उनका नाम डाकिनी ओर वर्णिनी है पर हमने सुना है कि उनका नाम जया और विजया है ! जरा शंका का समाधान करे ।
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