माँ बगलामुखी का प्रकट क्षेत्र सौराष्ट क्षेत्र के हरिद्रा नाम की झील के पास भगवान् महाविष्णु की तपस्या( इस सम्पूर्ण विश्व को बचाने के लिए ) के फलस्वरूप महात्रिपुर सुंदरी की कृपा के कारण प्रकटीकरण हुआ. इस विद्या की साधना वाम ओर दक्षिण दोनोप्रकार से की जा सकती हैं , हर महाविद्या के एक गणेश होने हैं चूँकि माँ का स्वरुप पीत रंग से ओतप्रोत हुआ हैं इसलिए हरिद्रा गणपति ही इनके गणपति हैं . ठीक इसी तरह हर महाविद्या के एक भैरव होते हैं इनके भैरव का नाम "आनंद भैरव " हैं , ये श्री कुल से सम्बन्ध रखती हैं , दश अवतार मेंसे यह कुर्म अवतार की शक्ति हैं .
देवी साधना में साधको यह याद रखना चाहिए जिसे हमने ब्लॉग(http://nikhil-alchemy2.blogspot,com ) ओर तंत्र कौमुदी इ पत्रिका के माध्यम से बार बार बताया हैं की यदि वाम स्वर चले उस समय मंत्र जप करें तो सफलता की अधिक सम्भावनाये रहती हैं . साथ ही साथ मन्त्र को चैतैन्य कर लिया जाये तो सफलता तो मनो आपके द्वार पर ही खडी हैं .
देवी की सहयोगिनी १६ शक्तियों के नाम इस प्रकार से हैं ..मंगला, स्ताभ्नी,ज्राभिनी,मोहिनी, वस्या, अचला , चला , दुर्धरा, अकल्मषा , धीर , कलना , काल कर्षिणी, भ्रमिका , मंद गमना , भोगदा , योगीका ये सभी अत्यंत उच्च स्तर की शक्तिया हैं जब इनका भी साधक को सहयोग मिलने लगे तब साधक के लिए क्या असंभव हो / रह जायेगा, इनकी अलग अलग से साधना भीकी जा सकती हैं , यूं तो इस साधन के अनेको ऐसे दुर्लभ विधान हैं जो अभी भी हमारे सामने आना बाकि हैं , उसके लिए तो बस होने चाहिए उन परम पावन सदगुरुदेव जी के श्री चरणों में अविचल ओर स्वार्थ रहित स्नेह, साथ ही साथ इस साधना के गूढ़ रहस्य जानने की प्रबल इच्छा ..
यह भी ध्यान रखे की जब भी स्त्रोत पाठ करे तब यथा संभव पीले रंग का ही वस्त्र का प्रयोग करे , आसन भी पीले रंग हो ओर अर्पित करने वाले पदार्थ भी पीले होना चाहिए , जितनी शुद्धता ओर शुचिता पालन कर सकते हैं करे साथ ही साथ प्रतिदिन क्षमा प्रार्थना सदगुरुदेव जी के श्री चरणों में जरुर करे. जितना भाव मयता से करेंगे उतना ही लाभ प्राप्त होगा मुझे याद आता हैं एक बार स्वामी जी महाराज दतिया वाले ने अपने एक शिष्य को इनके स्त्रोत का जप का निर्देश दिया, वह दिन प्रतिदिन किये जाने वालेसंख्या को सुन कर बैठ गया , स्वामी जी से कहा क्या ये कम हो सकता हैं , पर उन्होंने कोई जबाब नहीं दिया , पर उस शिष्य ने जैसा बताया गया था उसी संख्या में मंत्र जप किया ओर वह उस आने वाली महाविपत्ति से बच गया
जैसा की आप जानते हैं यह महाविद्या सत्व तत्व की प्रतीक हैं अतः कभी भी किसी भी तामसिक तत्व की साधना के साथ इस साधन को भूल कर भी न करे , जैसा धूमावती मंत्र के साथ इस साधना को नहीं किया जा ता हैं जब तक सदगुरुदेव का स्पस्ट निर्देश न हो . ठीक इसी तरह मुस्लिम मंत्रों की साधना के समय इनका जप नहीं किया जाता हैं. अन्यथा विपरीत शक्तियां आपस मैं ही एक दुसरे के प्रभाव को नस्ट करती रहती हैं .
साथ ही साथ ब्रम्हचर्य तो साधना काल में हर हाल में पालन करे अन्यथा किसी भी विपरीत परिस्थिति का शिकार हो सकते हैं .
एक ओर बहुत ही ध्यान देने वाला तत्व यह हैं की जो भी साधक ३६ अक्षर वाले मंत्र को अपने घर पर करते हैं उनके घर में हमेशा कोई न कोई समस्या लगी रहती हैं क्योंकि एक जगह उस मन्त्र में " सर्व दुष्टानाम" शब्द का प्रयोग हुआ हैं , साथ ही साथ "सर्व निद्कानाम" का भी प्रयोग हुआ हैं . अब आज के परिवेश में आदर्श स्थिति कहाँ संभव हैं हमारे घर का कोई न कोई व्यक्ति हमारे काम से या हम से संतुष्ट नहीं रहता पर इस मन्त्र जप के कारण उसे ओर समस्या होने लगेगी जो आपके लिए परेशानी का कारण बनेगी, अतः या तो इन जगह पर स्पस्ट रूप से जिस से आपको समस्या हो रही हैं उसका नाम ले , या दुसरे मंत्र का प्रयोग करें जो सदगुरुदेव द्वारा इस सन्दर्भ में पहले से ही दिए गए हैं .
दस महाविद्या में अष्टमी शक्ति के रूप में विख्यात रही महाविद्या साधक के लिए माँ स्वरुप हैं हालाकि कुछ साधक ने प्रेमिका के रूप में भी सिद्ध किया हैं पर इस सम्बन्ध में किसी भी तरह का वासनात्मक सम्बन्ध नहीं रहता हैं, (यहाँ किसी को भी प्रेम शब्द से किसी प्रकार की आपत्ति नहीं होना चाहिए , यह तो जीवन की उच्चता हैं दिव्यता की दिशा में एक कदम हैं यदि सही अर्थों में वासना रहित निस्वार्थ स्नेह हो ).
महाविद्या बगलामुखी का यह स्वरुप तो अत्यंत ही निराला हैं , मध्य प्रदेश के दतिया (झाँसी के पास) तो अत्यंत ही प्रसिद्द शक्ति पीठ हैं जहाँ स्वामीजी महाराज ने वर्षों अपनी साधना से उस स्थान को पुनः जाग्रत किया ओर अत्यंत ही भव्यतम पीठ हैं जहाँ आज भी आपको उनकी तपोमयी उर्जा महसूस होगी ओर साथ ही माँ के जाग्रत पीठ हैं जहाँ आज भी आप समाज के उच्चस्थ व्यक्तियों चाहे वह न्यायाधीश हो या अन्य आपको अपनी साधना में मंत्र जप में तल्लीन दिखाई दे जाते हैं .
महाविद्या क्रम में में एक बात साधको के सामने रखना चाहूँगा की वे योनी मुद्रा सीख ले ओर उसके माध्यम से ही जप समर्पण करे .माँ इस के प्रदर्शन से अत्यधिक प्रसन्न होती हैं .
ध्यान रहे इस पुण्य भूमि में सदगुरुदेव भगवान ने भी बगलामुखी साधना की थी, जो कभी महा भारत कालीन अस्वथामा की साधना स्थली थी ( इसका उल्लेख उन्होंने काफी विस्तार से हैदराबाद शिविर में धूमावती संयुक्त बगलामुखी साधना में बताया हैं . )आप सभी इस महाविद्या साधना के प्रति रूचि जाग्रत करें ओर इस साधना को संपन्न कर सिद्धाश्रम की दिशा में एक कदम ओर बढ़ाये ओर सदगुरुदेव भगवान् के गौरव को अपनी सच्ची, निस्वार्थ शिष्यता से बढ़ाये .
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To protect the whole world ,when bhagvaan mahavishnu did the tapasya of mother mahatripur sundari than this mahavidya forms appeared before him at haridra lake in souratstra kshetra. This sadhana can be done on both ways means from vaam marg and also from Dakshin marg. Each mahavidya form associated with one specific form of Bhagvaan ganesh as this mahavidya mainly related to yellow color so its Ganesh is haridra Ganesh. Like the same each mahavidya related to one bhairav so here is “Anaand bhairav “ is the bhairav of this mahavidya . this mahavidya related to shri kul and in dasha avatar she is related to the bhagvaan … shakti.
We have many times written in our blog (http://nikhil-alchemy2.blogspot,com ) and in our e mag”tantra kaumudi” that when the left nostril swar is going on that is the right time for chanting the mantra of devi. and in addition to that if mantra is energies though chaitayikaran than success is suppose like standing at your door step.
There are 16 special associate shakti are with devi ( ma baglamukhi) her name are , mangala, shtmbhnni, jrambhanni, mohini, vsya, achala, chala, durdhara,akalmasha, dheera, kalana, kaal karshini, bhrmika, mand gamana, bhogda yogika ,theses all are very higher level shaktis. And when sadhak get there help than what would be impossible for sadhaka?. Yes there sadhana of each shakti can be done separately. There are many different sadhana related divine mother forms. That still has to come before us, to get only we have to need a pure heart , and unshaken devotion towards divine holy lotus feet of Sadgurudev ji and have a desire to learn more and more.
And also remember that when ever you do strotam path than always wear yellow color cloths, and asan also be of yellow color and offer food or sweet or fruits also be of yellow color. And follow all the rules related to cleanness and purity as possible as. And at end of each days mantra offer your mantra jap to the divine holy lotus feet of Sadgurudev ji, as much as bhav mayta you have so much you will gain . that s the simple formula. I remember once swamiji maharaaj of datiya adviced one of his shishy about a certain number of chanting of particular strotam, on listening the total number per day , the shsishy get very much dispersed, he asked swamiji whether the number can be decreased? , on listening this, swamiji not replied any thing, but his shishy completed the chanting of required number of strotam, and he was totally /completely saved from the very dangerous situation he was about to face.
As you all are very well aware that this mahavidya represent the sat tatv , so never ever tried to jap of this mahavidya mantra with other Tamsic varga devi mantra. Like dhoomavati mantra jap cannot be done along with this sadhana, if Sadgurudev ji instructed than that will be a specific case. like the same muslim mantra sadhana can not be done along with this mantra, other wise two different power are cancelling each others effects.
One must follow at least physical celibacy as strict as possible. Other you will face any unforeseen circumstances.
One more important fact is this one who chant the 36 letters mantra in his home often has to get get trouble face in his family life since the mantra has two word that cause the problem one is “sarv dustanaam” and othe “sarv nidkanaam” and now there is no more ideal family life possible so its quite possible that any of our member criticizing us , and because of mantra he will also face a problem that will indirectly affect to us. When you choose to chant this mantra either use the person name in place of sarv nidkanaam or its much better to use other mantra of this mahavidya as provided by Sadgurudev Bhagvaan.
This mahavidya is famous as eighth mahavidya amongst ten mahavidya, and become mother like to sadhak, and very few sadhak get siddhita in this sadhana who get devi favor as his lover. But here one thing is very clear that there is no worldly physical relation of any kind in this divine love .( her one should not get objection on reading this word, this is the height of life , and step to divinity if that is in real sense free from and worldly attachment and physical realtion .)
This form of divine mother is very attractive , Datiya (Madhya Pradesh) near Jhansi is the place where great shakti peeth of mother situated, that is again fully energized by swamiji maharaaj from his so many years of sadhana. Still that energy can be easily felt, and even today you can see the person belongs to higher section of modern life like judge and other one found there doing their mantra jap .
On every special thing I would like to say that every sadhak must learn yoni mudra and offer every day jap through this mudra , and when this happens mother feel very happiness.
Always keep remember that this is the place where in past Sadgurudev Bhagvaan had completed ma baglamukhi sadhana ,and this was the sadhana place of famous mahabharat era worrier ashwasthama, (Sadgurudev describe in details about how he did the baglamukhi doomavati snyukt sadhana in Hyderabad sadhana shivir ), have interest in mahavidya sadhana and get siddhita in this and proceed on the path which leads to holy siddhashram and raise the glory of Sadgurudev Bhagvaan through unconditional love/sneh and full devotion and sadhana siddhi.
****NPRU****
2 comments:
how to do mantra chaitanaya karan?
please continue the mahavidya rahasyam with all the mahavidya devis
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