Friday, July 8, 2011

AAVAHAN-15

सन्यासी ने कहा की अगर तुम अपने सूक्ष्म शरीर मे रहे तो योगिनी तुम पर तारक प्रयोग कर के वापस अपमे मूल शरीर मे भेज देगी. इस लिए ये ज़रूरी हे की तुम अपने सूक्ष्म शरीर को छोड़ के कारण शरीर मे आ जाओ. मे अभीभी विस्मय मे ही था की क्या ये संभव है. संन्यासी  अपने कारण शरीर मे ही थे और अब तक मुझे समज आ गया था की मेरे साथ आए हुए सज्जन भी अपने कारण शरीर मे ही है.
योजना के मुताबिक हमें योगिनी के पास जाना था जहा पर संन्यासी  का मूल शरीर पड़ा हुआ था...कारण शरीर के माध्यम से जाने पर योगिनी के कोई प्रयोग का हम पर असर होना सायद ही संभव हो..मेरे साथ आए दूसरे सज्जन के ऊपर ये जिम्मेदारी थि की वे अपने साधना के बल पर संन्यासी  के मूल शरीर के रज्जतरज्जू को उनके कारण शरीर से जोड़ दे. इससे संन्यासी  अपने मूल शरीर मे आ जाएँगे और योगिनी से त्रस्त उस संन्यासी  को आज़ादी मिल जाएगी
लेकिन योगिनी भी कोई मिट्टीकी मूरत नही थि, वह भी विभ्भिन प्रकार के तांत्रिक प्रयोगों को सिद्ध कर चुकी थि, ज़रूरी यह भी था की संन्यासी  जब अपने स्थूल शरीर मे आ जाए तो योगिनी तत्काल उन पर कोई प्रयोग न करे...योगिनी कुछ भी कर सकती थि क्यूँ की योगिनी ने अपने संकल्प के मुताबिक संन्यासी  के साथ साधना नहीं की तो उसे मृत्यु का भी वरन करना पड सकता है.
लेकिन क्या हुआ अगर उसने कोई प्रयोग कर दिया और संन्यासी  को कुछ हो जाए....ज़रा सी भी गलती अनर्थ कर सकती थि...
मेरा सूक्ष्म शरीर को छोड़ के कारण शरीर मे प्रवेश करना भी योजना का एक भाग ही था...संन्यासी  ने मुझे शावासन मे लेट जाने को कहा...मे वही भूमि पर लेट गया...संन्यासी  ने कहा की तुम्हे कुछ नही करना है बस तुम्हे मणिपुर चक्र पर ध्यान लगाना है...मेने अपनी आँखे बंद की और अपने मणिपुर चक्र पर ध्यान एकत्रित किया...प्राण वायु को मणिपुर मे एकत्रित करने का बाद मेने आँखे खोली तो संन्यासी  ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और मेरे हाथ को अपने हाथ मे लिया..उन्होंने आँखे बंद की और कुछ मंत्र मन ही मन बोल के आँखे खोली..उन्होंने अपने हाथ से मेरे हाथ को अभी भी पकड़ रखा था...उन्होंने कहा की अब धीरे धीरे खड़े हो जाओ...मेने हलके से ऊपर उठने की कोशिश की...मेरा पूरा शरीर मे जबरदस्त कंपन होने लगा और धीरे धीरे मुझे लगा की मे अपने शरीर से अलग हो रहा हू.. धीरे धीरे मुझे अपना सारा शरीर ही अलग हो गया हो ऐसा अनुभव हुआ..जैसे की मेने कोई कपडा ओढ़ रखा था जो धीरे धीरे हट रहा हो..संन्यासी  ने मेरे हाथ को खिंचा इसी के साथ मुझे जैसे एक विद्युत का ज़ोरदार ज़टका लगा और मे अपने शरीर से अलग हो गया...अब मे संन्यासी  के सामने खड़ा हुआ था..लेकिन जब मेने पीछे मुड के देखा तो मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी...वहाँ पे मेरा अपना शरीर पड़ा हुआ था...हवा मे एक फिट ऊपर उठे हुए, शवासन लगे हुए....मुझे विश्वास नही हो रहा था...मे आगे बढ़ा और उसे हलके से स्पर्श किया...संन्यासी  ने कहा की यह तुम्हारा निश्चेत सूक्ष्म शरीर है....मे कभी संन्यासी  की और देखता तो कभी अपने शरीर की और ओ कभी मेरे निश्चेत पड़े हुए सूक्ष्म शरीर की और... बड़ा ही अद्भुत द्रश्य था...मेरे साथ आए सज्जन आगे बढ़ गए थे...
उनके पीछे सन्यासी भी बढ़ गए और आखिरमे मे भी उनके पीछे बढ़ाने लगा...सन्यासी, और वे सज्जन उसी कमरे के दरवाज़े पर रुक गए जिसमे संन्यासी  का मूल शरीर पड़ा हुआ था...जब मे कमरे के दरवाज़े पर पहोचा तो एक ज़टके के साथ ही दरवाज़ा अपने आप खुल गया...और सामने ही अपनी मोहक मुस्कान के साथ अपने आसन पर  बैठी थि वह रूपसी योगिनी...
Sanyashi told that if you remain in your sukshm sharir yogini will resend you to your sthool sharir with taarak tantra. Therefore it is essential to leave your Sukshm Sharir and form Kaaran Sharir. I was still amazed that how this will become possible. Sanyashi was in his Kaaran sharir only and till now I had understood that the gentleman accompanying me is too in his kaaran sharir.

According to plan, we were supposed to go to the place of yogini where main body of the sanyashi was placed. It is almost impossible to have effect of any prayog expected to done by yogini on us when we are in Kaaran Sharir. The gentleman was having responsibility to connect rajjatrajju of Sanyashi’s mool sharir to his kaaran sharir with help of his sadhana’s accomplishment and powers. This way sanyashi will come to his main body and suffered by yogini, that sanyshi will have independence.

But yogini too was not dumb idol, she too was accomplished in many tantric rituals, it was also needful care mark that when sanyshi comes to his main body from his kaaran body, yogini must not be able to do any tantric prayog shortly...if yogini does not complete her sadhana with sanyashi according to her sankalp, she might have death too so she was in condition to do or die or she might do anything.
But what will happen if she does any prayog and sanyshi get affected of it? A tiny mistake even can cause disaster
To leave my sukshm sharir and form kaaran sharir was part of the same plan...sanyshi asked me to be in Shavasan...I lay on the ground there...sanyashi said that you are suppose to do nothing, just meditate on your Manipur chakra...I closed my eyes and  started meditating on Manipur chakra..when I filled Manipur with pran vayu I opened my eyes and sanyshi extended his hand towards me and took my hand in his hand...he closed his eyes and opened it after chanting some mantra mentally..he asked me to stood up slowly...I slowly stared to get up...my whole body started vibrating heavily and slowly I felt that I was being separated from my body...slowly I felt that my whole body is being separate from me like I was having a cloth on me which is being removed...sanyshi drawn my hand and with this I felt like an electricity current and I separated from my body...now I was standing in front of the sanyshi...but when I looked behind me I was shocked and thrilled. There was my own body...one foot up in air, in Shavasan posture... I was not able to believe...I went ahead and touched it gently...Sanyashi told me ‘that is your inactive sukshm sharir’. I was looking at sanyshi and quickly on my body and then quickly on my in activate Sukshm Sharir in shock...it was really amaizing scene...the gentleman moved ahead...
Behind him sanyshi started walking and in last, I too started moving...sanyshi and gentleman stop at the door of the room in which main body of sanyshi was there. When I reached at the door, within a moment door opened by its own…and in front of us with her gentle smile on her seat, there was beautiful yogini.....
****NPRU****

3 comments:

TANTRA said...

hii...,
Jai gurudev
Yeh ghtna kiske sath hui hai, who is the writer.......? Must be a highly accompalished soul in his previous birth.....

Anu said...

Today when I got info about “nikhil Vatika “ is going to open soon ,where any one can get purn sanskarit parad, divine herbs, and various divine oil easily.
So its quite natural that I want to thanks to Arif bhai, who continuously educated so many guru brothers ,in this parad tantra science as a guru brother capacity. With your(Arif bhai) efforts nearly 40 people are being trained , and if some of us providing their service to Poojya Gurudev ji shri charan, than what will be more blissful things .today this works started under one Gurudev , we are very positively having hope , soon same work or something like that will be started under kind direction of other Poojya Gurudev too.
I had got Diksha from Poojya Sadgurudev ji in 1984, I have seen myself that how Poojya Sadgurudev ji interested in theses subject , so many articles in that time’s “Mantra Tantra Yantra Vigyan mag, itself a proof. After 1998 , a silence on theses subject occurred . even the very famous book of sadgurudev ji on this subject “swarna tantra” not available .
This is true that these our guru brother, would not give thanks to you ,but even facing so many opposition from other guru brothers , you are continuously educating theses fellow guru brother on this parad Sanskar science , if I am right he is the same our guru brother ,who posted in Nikhil alchemy group, who tried to make silver
http://tech.groups.yahoo.com/group/nikhil_alchemy/message/125
but this is not any unusal things, this always happens in this divine field, we are continously stopping you, why you are doing this? what you get after teaching this science to so many people? only opposition...
but you continously saying to us. this gyan is of sadgurudev, and this should not be disappear. any how it should be live.if any one who learn from me, leave it upon their heart whether they thanks me or oppose me.

and after so many days , your effort brings fruits. so its natural to thank you.

and now on this day ,you can say that again discussion/talk/writing is happening on this parad tantra. new light emerging. through thses guru brother we can now have purn sanskarit parad, divine herbs, i from bottom of mine heart thankful to thses guru brother. like this way , they advances/ progress on this field.and through their hard earn knowledge we all always get benefitted....with best blessing...

Anu said...

आज जब "निखिल वाटिका " के उद्घाटन से सम्बंधित मेल मिली , जहाँ पूर्ण संस्कारित पारद , दिव्य जड़ी बूटिया, दिव्य आयुर्वेदिक तेल आदि सभी प्राप्त हो पाएंगे
तो आरिफ भाई बरबस ही आपको बधाई देने का मन हो गया , आपने विगत कई वर्षों के लगातार श्रम से
अनेको गुरु भाइयों को इन पारद संबंधित विधामें ,जितनी मेहनत अपने बल बूते पर आप करसकते थे ,आपने कर के ,लगभग ४० लोगों को इस क्षेत्र में तैयार किया ओर उनमेंसे कुछ यदि गुरु कार्य करने के लिए आगे आये हैं तो यह बहुत ही सौभाग्य की बात हैं , आज एक गुरुदेव के निर्देशन में यह काम हुआ हैं कल हमें पूर्ण आशा हैं की शेष दोनों गुरुदेव के यहाँ भी यह कार्य प्रारंभ होगा
, मैंने १९८४ से सदगुरुदेव से दीक्षा प्राप्त की , मैंने स्वयं देखा हैं सदगुरुदेव पारद ओर आयुर्वेद के क्षेत्र को ऊपर उठाने के लिए कितना प्रयास रत थे , उससमय किपत्रिका में प्रकशित अनेको लेख इस बात का स्वयं प्रमाण हैं उनके सिद्धाश्रम गमन के बाद कुछ समय के लिए मानो यह विषय समाप्त होगये , यहाँ तक की पारद से सम्बंधित किताबे जैसी "स्वर्ण तन्त्रं " तक प्राप्त होना बंद हो गया .
ये बात सही हैं की ये गुरु भाई भले हीआपको श्रेय न दे, पर अनेको गुरु भाइयों के विरोध के बाद भी आप इन गुरु भाई / गुरु भाइयों को पारद क्षेत्र के प्राथमिक संस्कार से लेकर सिखाते रहे ,हालांकि यदि में सही हूँ तो यही गुरु भाई हैं जिनके यहाँ आपने रजत निर्माण की प्रक्रिया के बारेमें बताया था .
http://tech.groups.yahoo.com/group/nikhil_alchemy/message/125
पर यह कोई आश्चर्य जनक बात नहीं हैं , ज्ञान के क्षेत्र में ऐसा होता ही हैं , हम सभी आपको लगातार मना करते रहे की आखिर इसकी आवश्यकता क्या हैं? क्यों आप ये सब कररहे हैं आखिर क्या मिलेगा आपको ? सिर्फ विरोध ....पर आप यही कहते रहे की सदगुरुदेव द्वारा दिया गया ज्ञान समाप्त नहीं होना चाहिए , मुझे कोई भी किसी भी प्रकार का श्रेय नहीं चाहिए .बस ज्ञान किसी तरह जीवित रहे .जिन्होंने मुझसे सिखा हैं वे लोग मुझे श्रेय दे या नहीं यह उनके ह्रदय पर ही छोड़ दे .
ओरआखिर इतने दिनों के बाद आखिर आपके प्रयास का फल अब सामने आने लगे. तो स्वयं ही आपको बधाई देने का मन हुआ की आप सही थे .
.. आज यह दिन सामने हैं की आप कह सकते हैं की आपने यह विधा के बारेमें पुनः विचार होने लगा हैं ,नयी रोशनी सामने आने लगी हैं .आज हमें इन गुरु भाइयों के माध्यम से पूर्ण संस्कारित पारद व प्रमाणिक दिव्य जड़ी बूटियाँ प्राप्त हो सकेंगी , उनसभी गुरु भाइयों को ह्रदय से धन्यवाद देता हूँ , इसी तरह वे पारद ज्ञान के क्षेत्र में लगातार अग्रसर हो ..उनके द्वारा अर्जित ज्ञान अपनी सार्थकता स्वयं सिद्ध कर सकेओर हमसभी लाभान्वित हो सके इन्ही शुभकामनाओ के साथ