मेने पूछा कौनसा लोक? उत्तर में उस देव कन्या ने मुझे जो बताया वह योग तंत्र जगत का एस गुप्त पृष्ठ था. उसने मेरे प्रश्न का जवाब देते हुए कहा“वैश्वानरलोक”. नाम सुनते ही एक बार अतीत के गर्भ में चला गया, सदगुरुदेव ने जब कुण्डलिनी तथा चक्रों के बारे में बताया था तब उन्होंने इस लोक का जिक्र किया था कुण्डलिनी चक्रलोक स्थान में जो तीसरा लोक है वह यही लोक है. निश्चय ही कुण्डलिनी एक अत्यधिक गुढ़ विषय है जिसे समजना बहोत ही कठिन है, इस लोक को आत्म शक्ति लोक भी कहा जाता है. यह एक शुभ्र लोक है जहा पर उच्चकोटि के योगी अपने देहत्याग परंत निवास करते है अपने सूक्ष्म या दिव्य शरीर के माध्यम से, वैसे भी कई तंत्रग्रंथो में इस लोक का ज़िक्र यदा कद मिल ही जाता है. कुण्डलिनी के सप्त चक्रों का सबंध सात लोक से है, वे सप्त लोक है भू, भुवः, स्वः, मः, तपः, जन और सत्यं. ये तीसरा लोक अर्थात स्वः लोक है. जिसका सबंध मणिपुर चक्र से है. शरीर में समस्त प्राणों का संचार और नियंत्रण मणिपुर चक्र से होता है. योगी जब इस चक्र को पूर्ण रूप से उसके वर्णों के साथ साध कर उसका भेदन कुण्डलिनी से कर चक्र को पूर्ण विक्सित कर देता है तब वह सिद्ध योगी का सबंध इस लोक से हो जाता है. वस्तुतः यह लोक में योगी अपनी जरूरियात के मुताबिक़ खुद ही आवश्यक चीजों का सर्जन कर लेता है. फिर वह चाहे अपनी साधना स्थली हो या पैड पौधे या ज़मीन. इस प्रकार उनकी गतिशीलता किसी भी रूप से बाधक नहीं होती. हेमऋताने अपनी बात आगे बढ़ाई “वह लोक में महासिद्धो में ज्यादातर सिद्ध वे होते है जिन्होंने समाधी ले ली हो और वह फिर जन्म लेने के लिए बाध्य नहीं हो. एसी दिव्यआत्माये साधको की सदैव मदद करती है, साधक के साधनात्मक अनुभव में कई बार इन सिद्धो की कृपा ही होती है, अगर कोई साधक बार बार कोशिश करता है और कोई सामान्य चूक से उसे सफलता नहीं मिल रही होती है तब उनको प्रोत्साहन के लिए कई प्रकार के अनुभव साधको को कराये जाते है इन्ही सिद्धो के द्वारा जिससे की साधक की मन:शक्ति बनी रहे या विक्सित हो. तुम्हारा यहाँ पर आगमन का भी यही रहस्य है. मेरे सामने से रहस्य का पर्दा उठ गया था. मेने कहा की तुम कौन हो? ये सब केसे जानती हो? उस देवकन्या का चेहरा अचानक गंभीर हो गया, उसने कहा की में तुम्हे में तुम्हे इसके बारे में बता सकती हू लेकिन तुम्हे एक वचन देना होगा. मेने उससे पूछा की क्या? उसने जवाब दिया की पहले वचन दो की में जेसा कहती हू वेसा करोगे. एक क्षण लगा मुझे ये सोचने में की इसे वचन दू या नहीं लेकिन इससे पहले की मेरे मुख से हाँ शब्द का उच्चारण हो, मुझे जोर से खिंचाव महसूस हुआ और मूल शरीर से जुड गया मेरा सूक्ष्म शरीर. वापस पृथ्वी लोक पर था में. समजते देर नहीं लगी मुझे की स्वः लोक के सिद्धात्मा जिन्होंने मुझे यह अनुभव कराया था उनकी ही यह मर्ज़ी थी की मेरा अनुभव यही पर समाप्त हो जाए. निश्चय ही स्वःलोक की प्राप्ति अपने आप में एक दुर्लभ सिद्धि है. आगे तंत्र के अभ्यास में मुझे पता चला की आवाहन की कई प्रक्रियाए है जिनसे इन सिद्ध आत्माओ का आवाहन किया जा सकता है या उनसे संपर्क स्थापित किया जा सकता है, कई महासिद्धो इस लोक में सशरीर विचरण करते है ऐसे दिव्य सिद्धो के संपर्क में आना अपने आप में सौभाग्य ही है. लेकिन इनसे संपर्क स्थापित करने के लिए आवाहन का सहारा नहीं लिया जाता क्यों की मंत्र के आधीन हो कर किसी सिद्ध को बुलाना योग्य नहीं कहा जा सकता, उनका एक एक क्षण अमूल्य होता है तथा कई बार तंत्र के प्रकांड साधक को उनकी मर्ज़ी के खिलाफ आवाहित करने पर क्रोधित भी हो सकते है, इस लिए ऐसे सिद्धो से संपर्क बहोत ही मुश्किल है. योग तंत्र में एक एसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति ऐसे सिद्धो से मानसिक रूप से संपर्क स्थापित कर सकते है. साधक को इस साधना का अभ्यास ब्रम्हमुहूर्त या रात्री काल में ११:३० के बाद करे. साधक स्नान करे और उसके बाद अपने आसान पर बैठ कर श्रीं बीज के साथ अनुलोम विलोम कर शरीर की चेतना को मणिपुर चक्र पर केंद्रित करे अर्थात मणिपुर चक्र पर आतंरिक रूप से ध्यान लगाए इसके बाद साधक मन ही मन ह्रों ह्रीं ह्रों महासिद्धाय नमः (hrom hreem hrom mahasiddhay namah)का जाप करे. ऐसा एक घंटे करने पर धीरे धीरे साधक को ये सामर्थ्य आ जाती है जिसके माध्यम से वह सिद्धो से संपर्क करने में सफल हो जाता है, ऐसा संपर्क स्वप्नावस्था या भावअवस्था में होता है. तब साधक उनसे साधनात्मक ज्ञान को प्राप्त कर सकता है. यह सहज नहीं है लेकिन नित्य अभ्यास से निश्चित रूप से ऐसा संभव हो जाता है. इसके प्रक्रिया के अलावा तंत्र मार्ग में एक गुप्त तथा अद्भुत साधना है जिसे सम्प्रेषण साधना या सिद्ध सम्प्रेषण साधना कहते है, इस साधना के माध्यम से व्यक्ति कुछ ही दिनों में ऐसे ही स्वः तथा अन्य लोक के महासिद्धो से विचारों का आदान प्रदान संभव हो जाता है और तब वह अपनी खुशी से साधक को योग्य मार्गदर्शन देते है. खेर हेमऋता का अनुभव अपने आप में कई प्रशो के उत्तर देता गया और पीछे छोड़ गया कई और नए प्रश्न . ये रहस्य का अनावरण क्यों नहीं हुआ? क्या बताना था उसे? क्या वचन चाहिए था उसे. किसने ये अनुभव कराया, मुझे ही क्यों? क्या उन्हें भी कोई निर्देश देता है? इतने समय तक ही क्यों? गन्धर्वलोक ही क्यों? और क्यों हेमऋता से मुलाकात? कुछ समज नहीं पाया. सेंकडो सवाल आ गए दिमाग में. लेकिन मेरे कमरे में में अकेला था, कोई नहीं था जो मुझे जवाब दे सके इस बात का.
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I asked which Lok? The answer which that Dev Kanya told me was an important and secret chapter of Yog-Tantra. She told“Vaisvaanar Lok”.I simply went into past after hearing this name .When Sadgurudev told about the Kundalini (serpent power) and chakras, he mentioned about this Lok. Third lok in Kundalini ChakraLok is this lok only. Definitely Kundalini is extremely difficult subject which is very cumbersome to understand. This lok is also called Aatm Shakti Lok. It is an auspicious Lok where high level yogis stay after their death by the means of their subtle or divine body. Also, the mention of it is found in some Tantra scriptures. Seven chakras of Kundalini are related to seven Loks. These seven loks are Bhu, Bhvah, Swah, Mah, Tapah, Jan and Satyam.This is third lok i.e. Swah Lok which is related to Manipur Chakra. Circulation and control of all the praan in body is done by Manipur Chakra. Whenyogi, after accomplishing the chakra completely along with alphabets, does the bhedan with kundalini and fully develops the chakra, then the accomplished yogi is able to establish a relation with this Lok. Actually in this lok, yogi can create the essential things on his own according to his need; it can be its sadhna place, plants and trees or land. In this manner, their dynamism is not the obstacle in any form whatsoever. Hemreeta carried the topic forward .She said that in this lok most of siddhs are those who have taken Samadhi and who are not compelled to take rebirth .Such type of divine souls always help the sadhak. Sadhna experiences of sadhak sometimes can be attributed to blessings of these siddhs. If sadhak is trying again and again and is not getting any success due to some minute error then sadhak is made to experience such experiences by the siddhs to encourage the sadhak so that Manah Shakti (power of mind) of sadhak remains intact or it develops. This is also the secret of your arrival here too. Now all the secrets were unveiled. I asked who you are. How do you know all these things? Dev Kanya got serious and said I can tell you but you have to give me promise. I asked what? She replied first give me promise that you will do whatever I say. I thought for moment whether to give promise of done but before I could say yes, I felt a lot of pull and my subtle body got attached to basic body(physical body).I was back again on earth. It did not took long for me to understand that it was the will of Siddh Aatma of Swah Lok who made be experience that experience should end here only. Definitely attaining Swahlok is a rare accomplishment (Siddhi).After some time, whiledoing practice of tantra I got to know that there are so many process of Aavahan whereby we can do the Aavahan of Siddh souls and establish contact with them. Many Maha Siddhs wander in this lok along with their body .It is very fortunate to be in contact with such divine siddhs but assistance of Aavahan is not taken to establish contact with them becauseit is not right to call any siddh under the subordination of mantra. Every moment of them is precious and sometimes these tantra’s great sadhaks get angry when Aavahan of them is done without their consent. Therefore it is difficult to establish contact with such siddhs. There is one process in Yog-Tantra whereby person can establish contact with such siddhs mentally. Sadhak should do this sadhna practice in Brahm Muhurat or in the night after 11:30.Sadhak should take bath and then sit on aasan and while doing anulom and vilom by Shreem beej, focus the consciousness of body on Manipur Chakra meaning sadhak should meditate internally on Manipur Chakra. After that sadhak should chant in his mind the mantra hrom hreem hrom mahasiddhay namah.Doing this for one hour, sadhak gradually becomes capable to establish contact with siddhs. Such type of contact is in swapna Awastha (in dream) or Bhaav Awastha,and then sadhak can get the knowledge of sadhna from them. This is not easy but daily practice definitely makes it possible. Besides this process, there is one rare and secret sadhna in tantra which is called Sampreshan or Siddh Sampreshan Sadhna. Through this sadhna, in few days it becomes possible for any person to exchange thoughts with Maha Siddhs of Swah and other loks. Then these Maha siddhs guides the sadhak very happily. The experience of Hemreeta gave answers to many of my question but it also left some new questions. Why the secret was not unveiled? What she wanted to tell me? What sort of promise she wanted? Who was the one who made me experience it and why only me? Does somebody direct him also? Why only for this much time only? Why Gandharv Lok only? And why meeting with Hemreeta. I could not understand. Hundreds of questions came in my mind but I was all alone in my room. No one was there to answer my questions.
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