“स्वस्थ’ की परिभाषा हैं जो अपने मे स्थित हो .पर कितने हैं जो अपने मे स्थित हैं . और आधुनिक युग मे जिसे भागादौड़ी करना पड़ रही हो.... अपने जीवन को बचाए रहने के लिए ...हर पल सघर्ष रत रहना पड़ रहा हो वह कहाँ से और कैसे अपने मे स्थित हो जाए .
“जीवेत शरद शतम “ अब सिर्फ सुनने की बात हैं ऋग्वेद मे यह आशीर्वाद कहा हैं पर क्या इसका मतलब किसी भी तरफ से खींच खांच करके विस्तर मे पड़े पड़े १०० वर्ष का जीवन ..पर नही जो स्व स्थ हो और बलशाली हो ऐसा जीवन ..जो उमंग् युक्त हो ..
और जो भले ही ७० का हो गया हो पर उस मे अभी भी जीवन उर्जा हैं वह हैं नौजवान और जो २० वर्ष का हो पर जीवन से हार रहा हो वही हैं वृद्ध .
पर यह बात तो उमंग की हुयी पर जब शरीर ही रोग ग्रस्त हैं तब ...आपकी इच्छा शक्ति भी कमजोर हो जाती हैं क्योंकि कहीं न कहीं इच्छशक्ति का भी लेना देना इसी भौतिक शरीर से तो हैं .
आज की जीवन शैली ने सुख सुविधा तो बढ़ा दी ...पर जीवन का सकूँ भी छीन लिया हैं की अगर और न करें.... इतना श्रम तो ....घर परिवार और अन्य की अपेक्षाओ पर व्यक्ति खरा कैसे उतरा जाएगा , न चाह कर भी व्यक्ति इस जीवनशैली को अपनाये रहने के लिए बाध्य सा हो जाता हैं.
पर परिणाम धीरे धीरे उसके स्वास्थ्य पर दस्तक देने ही लगते हैं .और जब वह इसका उपचार देखता हैं तो आधुनिक चिकित्सा बस तात्कालिक राहत दे सकती हैं.और उसे साइड एफ्फेक्ट तो हैं ही और यह उपचार पद्धिति अत्यधिक महँगी भी तो हैं . पर इस सन्दर्भ मे व्यक्ति जब हारने लगता हैं तब वह एक उसी परम सत्ता को ही देखता हैं पर अब समय तो लगता ही हैं .फिर परिणाम मिले गा या नही भी मिले ..... यह भी तो निश्चय ता से नही कहा जा सकता हैं .
और इस समय साधना क्षेत्र की तरफ व्यक्ति देखता हैं .पर खुद साधना करने से भी बचना चाहता हैं यह मानव का स्वाभाव ही हैं की कोई ओर उसके लिए यह सब कर दे .... पर यदि साधक स्वयं कमर कस ले तो कहीं ज्यादा सफल परिणाम मिल सकते हैं .क्योंकि खुद के लिए कहीं ज्यादा गंभीरता से व्यक्ति प्रयास करेगा .
और व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के प्रति तो ध्यान रखना ही चहिये..यह तो विज्ञानिक दृष्टी से भी आज माना जाने लगा की जो मंत्र जप मे जयादा समय देते हैं उन पर पड़ने वाले काल का प्रभाव भी कम होता जायेगा . सीधा मतलब कहीं ज्यादा समय तक व्यक्ति युवा दिख सकता हैं ...मंत्रो की विशिष्ट शब्द रश्मिया का बहुत सूक्ष्मता से असर होता हैं और मानव जीवन की प्राणों पर सीधा असर होता हैं . स्वतः ही अनेको दोषों से छुटकारा मिलता हैं जो की धीरे धीरे हमें समाप्त करते जाते हैं जैसे क्रोध आदि ..क्योंकि इन मंत्रो के असर से व्यक्ति कहीं ज्यादा शांत और प्रसन्न चित्त रह सकता हैं . और जब शान्त औत प्र सन्न चित्त रहेगा तो स्वत ही शरीर जिन सेल से बना हैं वह कहीं ज्यादा उर्जा युक्त होंगे .
पर यह भी सच हैं की आज व्यक्ति के पास समय हैं ही कहाँ .. तब बड़ी साधनाए वह नही कर सकता हैं . यह तो व्यक्ति का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा की आज दिव्य देह प्राप्ति जैसी उच्चतम कोटि की साधना उपलब्ध हैं पर व्यक्ति के पास समय ही नही . हमने अनेको साधनाए छोटी या बड़ी इन सदर्भ मे आपके सामने रखी हैं , उसी श्रंखला मे आज यंत्र विधान युक्त एक सरल पर प्रभावकारी उपाय आपके सामने हैं .
यन्त्र की यह विशिष्ट ता रहती हैं की व्यक्ति यदि सही ढंग से उनका निर्माण कर ले और उसे स्थापित ही बस कर ले तो भी उसका परिणाम धीरे धीरे उसे प्राप्त होता है रहता हैं . अतः इस यंत्र विज्ञानं के इन आयामों को जानने की... सीखने की आवश्यकता अब आन पड़ी हैं पर आज एक सरल सा ..
पीपल के पेड़ तो जीवन प्रदायिनी कहा ही गया हैं ऐसा भी कहा गया हैं की प्रति दिन केबल रविवार को छोड़कर अगर व्यक्ति पीपल के पेड़ के सामने ...या नीचे खड़े होकर यह भावना करे की उसके शरीर मे जीवन दायिनी शक्ति का प्रवाह बढ़ रहा हीं तो स्वतः ही वह अनुभव करेगा की कुछ दिन के अंदर ही वह काफी स्वस्थ सा हो गया हैं. तो पीपल के नयी कोपले ले , ले जिस पर यन्त्रबनाया जा सके .किस भी शुभ दिन की रात मे पूर्ण विधान के साथ सदगुरुदेव का पूजन करे गुरु मंत्र की कम से कम १६ माला जप तो करे ही अपने इस प्रयोग की सफलता के लिए औरइन पीपल के नये नए पत्ते पर २१ बार यह यंत्र का निर्माण करे स्याही के रूप मे सिंदूर और घी का मिश्रण लेना हैं .और कलम के रूप मे वह अनार की कलम ले सकता हैं .
यंत्रों को धूप दीप दे कर सिद्ध कर ले . मन ही मन प्रार्थना करे की सदगुरुदेव का आशीर्वाद इन यंत्रोमे समाहित रहा हैं , और जब निर्माण कार्य समाप्त हो जाए तब इन सिद्ध किये यंत्रों को जब कोई भी बीमार दिखे या स्वयं बीमारी से ग्रस्त हो तो किसी भी ताबीज मे डाल कर गले मे धारण कर ले , और यह ध्यान रखें की धागा लाल रंग का ही हो . वह स्वयं देखेंगा की उसे काफी अनुकूलता मिलने लगी हैं .अन्य यन्त्र को प्रवाहित कर दे ..एक या दो दिन के अंदर ही यन्त्र को धारण करना हैं .जब कभी फिर से कोई समस्या आये तो फिर से इन यंत्रों का निर्माण करे ..
यह तो सरल प्रयोग हैं यदि समस्या गंभीर हैं तो निश्चय ही हमें बृहद प्रयोगों की ओर भी देखना पड़ेगा क्योंकि रोगों के मूल मे कई प्रकार की चीजे हैं ..कभी तो मात्र खान पान की अशुद्धिया या नियम पूर्वक आहार और उचित आहार न लेना ..कतिपय केस मे नव ग्रहों की अनुकू लता का ना होना , तो कुछ केस मे पितृ दोष के कारण या स्थान दोष के कारण भी ...अतः यदि स्वास्थ्य लाभ न हो रहा हो तो किसी भी योग्य विद्वान से परामर्श लेना हीचाहिए ..यह तथ्य हमेशा ध्यान रखना ही चाहिए .
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Health means the one who is situated in himself, but how
many are there who are situated in themselves. In this modern era, where we
have to run after everything ….have to continuously fight every moment to save
and sustain our life, how is it possible to be situated in ourselves?
“Jeevet Sharad Shatam” has now become a myth. Rig-Veda has
called this as blessing. But does it mean that we should spend our life lying
on bed for 100 years. But rather we should be healthy, strong and full of joy……
And the one who is 70 years old but is full of energy is
young and the one who is 20 years of age and is losing from the life is old.
This was regarding joy but when body is caught up in
diseases than your will power also become weak because somewhere the willpower
bears a relationship with physical body.
Though today’s life style has increased the comforts of life,
it has taken the peace of mind also. If the person does not work hard, how he
could fulfil the expectations of his family and others. Unwillingly the person
is compelled to adopt this life-style.
But gradually, it starts having impact on the health. And
when he looks for its treatment, then modern treatment gives him only the
immediate relief, there are side-effects also and this treatment system is very
expensive also. But when in this context, he starts losing then he starts
looking towards that almighty god. But it takes time……and results may come or
not……..it can’t be said with conviction.
And at this time, he looks towards sadhna field, but he
does not want to indulge in sadhna himself. This is the nature of human being
that someone else could do for him…….But if sadhak takes it on his own, then he
could get much better results because for himself, the person will try much
harder.
The person should always give proper attention to his
health. Today scientific vision also agrees with the fact that the one who
spends more time in chanting mantras, impact of time reduces on them. In other
word, person can look younger for a longer time. The special alphabet rays of
mantras influences very subtly; they directly influence the praan of human
life. We start getting rid of many defects like anger etc. which are finished
gradually. It is because of the fact that due to the impact of mantras, person
can remain much happier and peaceful and when he will be happier and peaceful
then automatically the basic constituent of the body, the cells will be full of
energy.
But It is also true that today person do not have ample
time……he can’t do big sadhnas…..This can be called misfortune of the person that
today high-order sadhna like Divya Deh sadhna is available, but he does not
have time. We have put forward many sadhnas in this context, in the same series
we will be talking about one simple but highly effective Yantra process.
Yantras contains speciality that if person makes it in a
right manner and only establish it then also he starts getting the results
gradually. Therefore, now the time has come to learn such dimensions of Yantra
science. Today the simple one….
Tree of peepal has been called life-giver. It has also been
said that if person stands in front of or underneath the
peepal tree on every day except Sunday and feels that life-giving power is getting
circulated in his body, then he will automatically experience that he has
become healthy in quite a few days. Take the new sprouts of peepal tree on which
the yantra can be made. Do the complete poojan of Sadgurudev on night of any
auspicious day. For getting success in this process, chant at least 16 rosaries
of Guru Mantra. Make the yantra 21 times on new leaf of peepal tree.
Combination of ghee and sindoor has to be used as ink and one can take the pen
of pomegranate.
Siddh the yantra by offering dhoop and deep. Pray mentally
that blessings of Sadgurudev is getting incorporated in yantra and when you are
done making these yantras then whenever you see any sick person or when you
become sick, put this yantra in amulet and wear the amulet in your neck. Keep
in mind that only red thread is to be used. That person will himself feel that
he has started getting relief. Offer all other yantra in river/pond. You have
to wear the yantra in 1-2 days. Whenever you face the problems again, make the
yantras again.
This is an easy process. If the problem is serious then
definitely we have to look forward to high-order process because in the root of
diseases so many things can be there…..sometimes impurities in our food or not
taking the food in an orderly way or not taking right food……in few cases nine
planets are unfavourable, In some cases pitr dosh (defect due to ancestor) or
Sthan dosh (defect due to place). Therefore, if your health is still not improving then one should take
advice from capable scholar. This fact has to be kept in mind.
****NPRU****
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