ज्ञान के मार्ग पर चल रहा साधक सिर्फ कुछ बात पर ध्यान रखता हैं की उसे उसके सदगुरुदेव द्वारा क्या सिखाया गया हैं और ना केबल शब्दों से ......बल्किउन्होंने स्वयं अपने आचरण के द्वारा भी ... और दूसरा तथ्य की उसे देश काल और धर्म के मे फैले पाखंडो और गलत अवधारणाओ मे नही फसना हैं बल्कि उसके मन मे सभी धर्मो के प्रति..उनकी उच्चता के प्रति ..... आदर और सम्मान होना चाहिये .अगर वह मानता हैंकि यह सारा विश्व एक उसी ब्रह्म शक्ति से चल रहा हैं.या ब्रह्म शक्ति मय हैं , तो फिर ये भेदभाव कैसा ..
और साधक तो हंस के समान होता हैं केबल मोती चुनता हैं जो की सदगुरुदेव जी ने ज्ञात या अज्ञात रूप से उसके सामने विखेरे हैं . वह किसी भी मार्ग के ...... धर्म के...... हो सकते हैं .ज्ञान के मार्ग मे भला कोई अपनी संक्रीनता रख कर आगे बढ़ पाया हैं . या तो वह संक्रीनता रख ले या फिर ज्ञान .....क्योंकि यह तो कहा नही गया हैं की केबल ... वह.... वह .... धर्म का ज्ञान ही ... सदगुरुदेव का प्रतीक हैं ..यह कह कर उन ब्रह्माण्ड पुरुष को कम करना हो जायेगा ..वह तो देश काल के सीमा से परे ब्रम्हांड मय हैं ब्रह्माण्ड पुरुष हैं ,
सदगुरुदेव जी ने स्वयं अपने देह लीला काल मे कई बार इन मंत्रो को जो मुस्लिम धर्म से जुड़े हुए रहे हैं उन्हें पत्रिकामे दिया और एक शिविर का आयोजन करने का भी दिया था .और उनके शिष्यों मे सभी धर्म के लोग रहे हैं ..यहाँ तक की अनेको देश के भी ..उनके ..सदगुरुदेव के सामने धार्मिक संक्रीनता का स्थान कभी नही था .
इन मंत्रो का आधार ऐसी रूहानी ताकते हैं जो अग्नि से उत्पन्न हुयी हैं , और जो शुभता युक्त हैं साधक को वेसे ही आचरण करने के लिये कहाँ भी गया हैं और साधक करते भी हैं . और कुछ मंत्र तो इतने सरल हैं और उनके विधान भी सरल हैंकि विश्वास ही नही होता की ऐसा भी हो सकता हैं .पर यह सच हैं ..जितनी तीव्रता से इन मंत्रो का असर होता है वह काबिले तारीफ हैं .
और साधक को तो हर पल अपने ज्ञान की वृद्धि करते रहना चाहिये ही ,
हमने इसी कारण अनेको साधनाए तंत्र कौमुदी मे दी हैं और हमें खुशी हैं की अनेक लोगों ने उसे किया भी हैं और लाभान्वित भी हुए हैं ...
आज एक ऐसा ही मंत्र जो की अनेको विवानो से प्रशंशित रहा हैं ...आपके सामने हैं .
किसी भी नौकरी मे प्रमोशन पाने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता हैं .
विधान सरल हैं या कहें की लगभग हैं ही नही बस इतना की इस मंत्रका १०० बार जप करना हैं .और कुछ नही .
मंत्र :
“अल्लाह मेरे दम विच
मुहमम्द सल्लाह मेरे दम विच
अल्लाह करम करेगा
एक घडी दे दम विच “
कोइ नियम नही हैं , बस जब तक कार्य समपन्न न हो जाए करते जाएँ ..पर इतना तो ध्यान रखें की जब भी इन मंत्रो का उपयोग करना हो साधक शारीरिक दृष्टी से शुद्ध हो .इस बात का अर्थ समझे .मतलब स्नान करके स्वच्छ जगह पर ही करें ....
क्योंकि इन् मंत्रो के पीछे पीर फ़कीर की दुआ होतीहैं तो स्वाभाविक हैं की इस बात का हम भी ध्यान मे रखे .ऐसा नही की बाथ रूम या अन्य रात्रि काल मे किसी क्रिया विशेष के बाद अशुद्ध हालत मे भी जप करने लग गए ..क्योंकि अगर आपको सफलता पाना हैं तो भले ही प्रक्रिया सरल हो.... शुद्धता तो मागेगी ही न ..
Sadhak travelling on
the path of knowledge only focus on few things such as to follow what
Sadgurudev has taught not only by word but also by his own conduct. Second fact
to keep in mind is that he does not have to involve himself in
sanctimoniousness and false concepts spread across country, religion and time rather
he should have respect for every religion, towards their supremacy. If he considers this entire world to be guided by that one
Brahm Power, then why this distinction….
And sadhak is like swan
who selects only pearls scattered By Sadgurudevji knowingly or unknowingly.
These can be of any path…..any religion. Who has moved forward on this path of
knowledge with his narrow-mindedness? Either he can have narrow-mindedness or
knowledge…Because it has never been said that only knowledge of particular
religion symbolizes Sadgurudev. Seeing this will be only belittling the
universal-man ……He is beyond the limits of country and time…he is
universal-man.
Sadgurudevji himself
during his lifetime gave these mantras related to Muslim religion in magazine
and also organized one such shivir also. His disciples were from every religion
….even from various countries. There was no place for religious parochialism
for Sadgurudev.
The basis of these
mantras is spiritual powers which have their origins in fire and which are
combined with goodness. Sadhak has also been asked to show the similar conduct
and sadhak also do it.Several mantras and their process are so easy that it is
hard to believe ….but this is truth….and the quickness with which they work is
highly appreciable.
And sadhak should
always keep on adding to his knowledge every moment.
For this reason we have
given many sadhnas in Tantra Kaumadi and we are pleased that various persons
have done them and they have benefitted from it also….
Today one of such mantras,
highly appreciated by scholars is in front of you all.
This can be used to get
promotion in any job.
Rules are simple and to
say, they are virtually not there. Just you have to chant this mantra 100 times
and nothing else.
Mantra:
“Allah Mere Dam
Vich
Muhammad Sallah Mere Dam Vich
Allah KaramKarega
EkGhadi De Dam Vich”
There are no rules. Keep on doing till your work is
not accomplished. But keep at least one thing in mind that Sadhak should be
physically pure while doing these mantras. This simply means that he should do
it on clean place after taking bath.
Because these mantras contain the blessings of Peer
and Fakirs .Therefore it is natural that we keep this thing in mind. We should
not start chanting the mantra in bathroom or in night after some particular
activity in impure condition. Because if we have to achieve success then even
if the activity is simple…..but it will demand purity…..
****NPRU****
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