व्यक्ति का जीवन सही अर्थो में हर क्षण एक संघर्ष है. किसी न
किसी रूप में वो अपने जीवन को संवारने के लिए संघर्शील रहता ही है, कभी आतंरिक रूप
से तो कभी बाह्य रूप से. कभी खुद के साथ तो कभी बहार की दुनिया के साथ, यह संघर्ष
हमेशा चलता ही रहता है. जो व्यक्ति परिस्थितिके वशीभूत हो कर अपना संघर्ष समाप्त
कर देता है उसका जीवन आगे संवरता नहीं है, जीवन का विकास अटक जाता है. इसी लिए जो
व्यक्ति अपने जीवन में सदैव संघर्षमय रहता है उसका जीवन निश्चित रूप से उसके
लक्ष्य की और गतिशील होता रहता है. लेकिन अगर संघर्षो का परिणाम प्राप्त न हो तो
व्यक्ति का मनोबल का कम होना स्वाभाविक है.कई बार व्यक्ति अपने प्रयासों का परिणाम
न देख कर निराशागर्त हो जाता है और धीरे धीरे मानसिक दुर्बलता उसमे प्रवेश करने
लगती है. और एसी स्थिति में व्यक्ति की सारी कोशिशे बेकार होती हुई नज़र आने लगती
है. एक प्रकार से यह व्यक्ति तथा उससे सबंधित सभी लोगो के लिए दुःखदाई तथा तनाव की
स्थिति बन जाती है. एस समय पर कई व्यक्ति तुरंत से विरुद्ध में खड़े हो जाते है और
अपने अपने फायदे के लिए हिन् तथा नीच प्रवृतियों का सहारा लेते है. मानवीयगुणों से
परे हट वह बेवजह शत्रुता का परिचय देते है. और एसी स्थिति में कुछ भी समाज में
नहीं आता है की क्या किया जाए. वस्तुतः एसी स्थिति में अगर देव शक्तिओ का आशारा
लिया जाए तो किसी भी रूप में अयोग्य नहीं है. क्यों की अगर परिस्थिति मात्र हमारे
भौतिक प्रयास मात्र से अनुकूल हो जाती तो फिर निश्चित रूप से दुनिया के सभी
व्यक्तियो का जीवन सुखमय होता. अगर प्रयास ही किया जाना है तो फिर साधनाओ का सहारा
ले कर किया जाए इसमें क्या दोष है. प्रस्तुत प्रयोग एस गुप्त प्रयोगों में से एक
है जिनके द्वारा मनुष्य अपने शत्रु से सबंधित समस्याओ से मुक्ति प्राप्त कर सकता
है. अगर कोई व्यक्ति अकारण ही परेशान कर रहा हो या किसी भी प्रकार से पीड़ा पहोचने
की कोशिश करता रहता हो या घर परिवार के किसी भी सदस्य को हमेशा किसी न किसी वजह से
भय में रखने की कोशिश कर रहा हो तो एस व्यक्ति पर इस प्रकार का प्रयोग किया जा
सकता है.
साधक यह प्रयोग किसी भी महीने की कृष्णपक्ष की अष्टमी को शुरू
करे, अगर यह संभव न हो तो किसी भी शनिवार को यह प्रयोग शुरू करे. समय रात्री में
११ बजे के बाद का रहे.
साधक को स्नान आदि से निवृत हो कर लाल वस्त्र धारण कर लाल
आसान पर दक्षिण दिशा की तरफ मुख कर के बैठे. अपने सामने दुर्गा यन्त्र स्थापित करे
अगर यन्त्र की अनुपलब्धि में दुर्गा देवी के चित्र को स्थापित कर पूजन करे. इसके
बाद साधक हाथो में जल ले कर के संकल्प करे की “में अमुक(अपना नाम) नाम का साधक
अमुक(शत्रु का नाम) के उच्चाटन के लिए यह प्रयोग कर रहा हू जिससे की वह भविष्य में
मुझे और मेरे परिवार को किसी भी प्रकार से कोई कष्ट न पहोचाये और वह हमारे आस पास
भी न रहे. देवी दुर्गा अपना आशीर्वाद प्रदान करे.” इसके बाद जल भूमि पर छोड़ दे. अगर
संभव हो तो अपने सामने शत्रु की कोई तस्वीर रख दे. साधक इसके बाद निम्न मन्त्र की
५१ माला मंत्र जाप करे. मंत्र जाप के लिए मूंगा माला का प्रयोग करे. मंत्र में
अमुक की जगह शत्रु के नाम का उच्चारण करना चाहिए.
ॐ दुँ दुर्गायै अमुकं उच्चाटय
उच्चाटय शीघ्रं सर्व शत्रु बाधा नाशय नाशय फट
(Om Dum Durgaayai Amukam Ucchaatay Ucchaatay Shighram sarv shatru
baadhaa naashay naashay phat)
यह प्रयोग ३ दिन करे. इसके बाद साधक
यन्त्र/चित्र को पूजा स्थान में स्थापित कर दे. माला और तस्वीर को किसी निर्जन
स्थान में खड्डा खोद कर गाद दे. तो साधक को तुरंत ही इस प्रयोग का अशर दिखने लग
जाता है. इस प्रयोग की यह भी विशेषता है की शत्रु साधक से दूर चला जाता है और
भविष्य में कभी उसे परेशान करने की सोचता भी नहीं.
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Life of a
person in real sense is a struggle every moment. In one manner or the other, he
strives hard to put his life in a proper order, sometimes internally and
sometimes externally. This struggle always goes on, whether it is with one’s
own self or with outside world. The person who succumbs to the circumstances
and stops fighting , his life stops improving further and development of his
life gets stucked.Therefore the person who fights throughout his life ,he
definitely move towards his aim,But if person does not receive the fruits of
struggle, then it is quite natural for his morale to go down. Sometimes, after
seeing the fruitlessness of his efforts, person becomes pessimistic and
gradually mental weakness builds inside him and in such a condition, all
attempts of the person seems futile. At one time, many persons all of sudden
stands against us and take the assistance of mean and low tendencies for their
own advantage, instead of showing humanistic qualities they show animosity
without any reason and in such a situation, nothing comes in our mind how to
tackle it.Actually, in such a condition, if we take the assistance of god
powers then it is not wrong in any manner. Because if situation had become
favorable with our materialistic efforts then definitely life of every person
on the earth would have been delightful. If effort has to be done, why should
not we take help of sadhnas? What is wrong in it.Prayog given here is one among
the hidden prayogs by which person can get rid of enemy-related problems. If
any person without any reason is troubling you or in some manner or the other
is trying to cause harm or by any means trying to instill fear in minds of any
member of the family, then one can make use of this prayog on that person.
Sadhak can
start this prayog from eighth day of Krishna Paksha of any month. If it is not
possible thenhe can start from any Saturday. Time would be after 11:00 P.M.
Sadhak
should take bath, wear red dress, and sit on red aasan facing south. Establish
Durga Yantra in front of him. In the absence of yantra, one should establish
Durga picture and worship it.After that sadhak should take water in his palm
and take a Sankalp (resolution) that “I Amuk (your name)am doing this prayog
for the ucchatan of Amuk (enemy’s name) so that he in future is not able to
cause any harm to me or my family and he should not stay anywhere near us.
Goddess Durga, please provide me your blessings”. After that, drop the water on
the floor. If possible, then put the photo of your enemy in front of you. After
that sadhak should chant 51 rounds of the below mantra. Use Munga rosary for
chanting mantra. Use the enemy’s name in place of Amuk in mantra.
Mantra:
Om Dum
Durgaayai Amukam Ucchaatay Ucchaatay Shighram sarvshatru baadhaa naashay naashay
phat
Do this prayog for 3 days. After that, sadhak should
establish the yantra/picture in the worship place and dig the rosary and
enemy’s picture at place where no one comes. The specialty of this prayog is
that enemy goes far away from sadhak and not even thinks of troubling him in
future.
****NPRU****
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