Ancient sages of traditional culture and our
ancestors have put forward one fact in front of us on multiple occasions that
without desire, human existence is not possible. Those who do not have desire
are like animals. Rather than supressing desire what is important is to fulfil
it. If desire is in accordance with moral norms, is not of hurting someone else
and is for taking life to higher pedestal then person should try to fulfil the
desire. Even our ancient scriptures have called desire as one of the three
universal powers. Somewhere it has been said Lakshmi and somewhere it has been
equated with Mahakaali. Certainly underlying base of any progress is desire or
wish only. Therefore, there are present special procedures in field of tantra
for fulfilment of desire. Our ancient sages and siddhs manifested god and
goddesses in front of them and attained Tantra knowledge from them. In this
context, all Vidhaans prevalent in tantra field relating to fulfilment of
desire are provided by them only. So when our knowledgeable siddha gave so much
importance to desire and also put forward procedures for fulfilling it then we
should make us of these procedures to progress in our lives.
In today’s era, every person has got an independent
thinking. Every person wish to live a life based on desires he/she has built up
in his mind. But so many times, mental thinking does not get translated into
practical form or person does not get desired results even after putting
hard-work. Besides it, there can be such desires of persons which though are
moral but cannot be expressed. Sometimes due to circumstances and sometimes due
to severity, fulfilment of desire is not possible. In such circumstances,
person can fulfil his own desire with the help of sadhna. Upon getting strength
from Devs, sadhak sometimes see the path which was always present in front of
him but was not visible due to his/her negative thoughts. Although there are many types of prayog famous in field of tantra for
fulfilment of desire but prayog related to Lord Chandrachood is amazing. It is
famous about form of Aadi Shiva, who is all-capable and ready to do welfare of
entire world that he listen to each and every prayer and request of every
devotee and fulfil it. This is tantra prayog related to him, so every obstacle
coming in path of fulfilment of desire has to be resolved. Along with it,
sadhak attains a novel thinking and energy through which he can move forward
quickly towards his aim.
Sadhak should start this prayog on any Monday. It
can be done in day or night but it should be done daily at the same time.
Sadhak should take bath, wear white dress and sit
on white aasan facing North direction.
After it, sadhak should establish Parad Shivling
in front of him. It is compulsory to use fully energized Parad
Shivling, made from pure Parad.
Sadhak should do Guru Poojan and Ganesh poojan and thereafter do poojan of
Parad Shivling. After it, sadhak should chant Guru Mantra.
After reciting Guru Mantra, sadhak should carry out
Nyaas procedure and then chant basic mantra.
KAR NYAS
OM HRAAM ANGUSHTHAABHYAAM
NAMAH
OM HREEM TARJANIBHYAAM NAMAH
OM HROOM SARVANANDMAYI MADHYMABHYAAM
NAMAH
OM HRAIM ANAAMIKAABHYAAM NAMAH
OM HRAUM KANISHTKABHYAAM NAMAH
OM HRAH KARTAL
KARPRISHTHAABHYAAM NAMAH
HRIDYAADI NYAS
OM HRAAM HRIDYAAY NAMAH
OM HREEM SHIRSE SWAHA
OM HROOM SHIKHAYAI VASHAT
OM HRAIM KAVACHHAAY HUM
OM HRAUM NAITRTRYAAY VAUSHAT
OM HRAH ASTRAAY PHAT
Sadhak should chant 21 rounds of below mantra.
Rudraksh rosary should be used.
Om hreem bhagawate
dakshinaamoortaye chandrachude namah
After chanting, sadhak should pray to Lord
Chandrachood for fulfilment of desire. Sadhak should continue this procedure
for 3 days. If sadhak desires, he can continue this process for 7 or 11 days
too. Rosary can be used again for doing this sadhna.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ सनातन संकृति के आदि ऋषियोने तथा हमारे पूर्वजो ने कई बार एक तथ्य को हमारे सामने रखा है की बिना इच्छा के मनुष्य का अस्तित्व संभव नहीं हो पता, इच्छा विहीन पशु होता है. इच्छा का दमन नहीं वरन इच्छा की पूर्ति होना आवश्यक है, इच्छा नैतिक हो, किसी कोई भी तकलीफ पहोचाने के लिए न हो तथा जीवन में उर्ध्वगमन के लिए हो तो फिर इच्छाकी पूर्ति हों उसके लिए मनुष्य को प्रयत्न करना चाहिए. और इच्छाको तो आदि ग्रंथो में तिन ब्रह्मांडीय शक्तियो में से एक शक्ति कहा है. कहीं इसको लक्ष्मी तो कहीं महाकाली भी कहा गया है. निश्चय ही किसी भी उन्नति तथा प्रगति के आधार छोर पर इच्छा तथा मनोकामना ही तो होती है. इसी लिए तंत्र क्षेत्र में भी तो इच्छा और मनोकामना की पूर्ति के लिए विशेष विधान है ही. हमारे प्राचीन ऋषि तथा आदि सिद्धो ने देवी तथा देवताओं को कई बार प्रत्यक्ष कर उनसे तंत्र ज्ञान लिया था, इसी क्रम में तंत्र के क्षेत्र में जो भी विधान इच्छापूर्ति या मनोकामना की पूर्ति के लिए है वह भी तो उन सब की ही देन है. तो जब इतने प्रज्ञावान सिद्धो ने इच्छा एवं मनोकामना को इतना महत्त्व दिया तथा इसकी पूर्ति के लिए जब हमारे सामने विधान भी रखे तो हमें हमारे जीवन की गति उर्ध करने के लिए इन विधानों को अपनाना चाहिए.
आज के युग
में हर एक व्यक्ति की अपनी स्वतंत्र सोच है. सभी व्यक्ति को अपना जीवन अपने मानस
में संजोयी हुई आकांशाओ के बल पर जीना है. लेकिन कई बार व्यक्ति के मानस का चिंतन
प्रायोगिक रूप से कार्यरत नहीं हो पाता है, या फिर व्यक्तिने जैसा सोचा है वेसा
परिणाम परिश्रम करने पर भी प्राप्त नहीं होता. इसके अलावा आज कोई भी व्यक्ति की कई
प्रकार की एसी इच्छाएं भी हो सकती है जो की भले ही नैतिक है लेकिन जिसकी
अभिव्यक्ति संभव नहीं है. कई बार परिस्थितियों के कारण तो कई बार दारुणता के कारण
मनोकामनाओ की पूर्ति संभव नहीं हो पाती. एसी स्थिति में व्यक्ति साधनाओ के माध्यम
से अपनी मनोकामना को पूर्ण कर सकता है. दैवीय बल की प्राप्ति होने पर साधकको कई
बार वह रास्ता दिख जाता है जो उसके सामने होता है लेकिन नकारात्मक विचारों के चलते
उसका चिंतन वह देख नहीं पाता. मनोकामना से सबंधित कई प्रकार के प्रयोग तंत्र के
क्षेत्र में प्रख्यात है लेकिन भगवान चन्द्रचूड की तो बात ही क्या. सर्व समर्थ तथा
संसार के कल्याण के लिए हमेशा तत्पर श्री आदि शिव के ही स्वरुप के बारे में तो
प्रख्यात है ही की वे हर भक्ति की एक एक प्रार्थना तथा अनुरोध को सुनते है, पूरा
करते है. फिर उनसे सबंधित यह तो तंत्र प्रयोग है, मनोकामना की पूर्ति के मार्ग में
आने वाली फिर हर बाधा का निराकारण होना है ही साथ ही साथ साधक को एक नए चिंतन और
उर्जा की भी प्राप्ति होती है जिससे की वह अपने लक्ष्य की तरफ शीघ्रता से गतिशील
हो पाए.
यह प्रयोग
साधक सोमवार से शुरू करे. समय दिन या रात्रि का कोई भी हो, लेकिन साधक को रोज
साधना का समय एक ही रखना है.
साधक
स्नान आदि से निवृत हो कर सफ़ेद वस्त्र धारण करे तथा सफ़ेद आसन पर उत्तर की तरफ मुख
कर बैठ जाये.
इसके बाद
साधक अपने सामने पारदशिवलिंग को स्थापित कर ले. यह विशुद्ध पारद से निर्मित पूर्ण चैतन्य पारदशिवलिंग होना अनिवार्य है. साधक गुरुपूजन तथा गणेशपूजन कर पारद
शिवलिंग का पूजन करे. इसके बाद साधक गुरुमन्त्र का जाप करे.
गुरुमन्त्र
के जाप के बाद साधक न्यास कर मूल मन्त्र का जाप करे.
करन्यास
ॐ ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः
ॐ ह्रूं सर्वानन्दमयि मध्यमाभ्यां नमः
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः
ॐ ह्रौं कनिष्टकाभ्यां नमः
ॐ ह्रः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः
हृदयादिन्यास
ॐ ह्रां हृदयाय नमः
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा
ॐ ह्रूं शिखायै वषट्
ॐ ह्रैं कवचाय हूं
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ॐ ह्रः अस्त्राय फट्
साधक को
निम्न मन्त्र की २१ माला मन्त्र जाप करना है. यह जाप रुद्राक्ष की माला से हो.
ॐ ह्रीं भगवते दक्षिणामूर्तये चन्द्रचूडे नमः
(om hreem bhagawate dakshinaamoortaye chandrachude namah)
जाप के
बाद साधक भगवान चन्द्रचूड को वंदन करे तथा मनोकामना पूर्ण करने के लिए प्रार्थना
करे. साधक को यह क्रम ३ दिन तक करना चाहिए. अगर साधक चाहे तो यह क्रम ७ दिन या ११
दिन भी कर सकता है. माला को आगे भी इस साधना को करने के लिए उपयोग में लाया जा
सकता है.
****NPRU****
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