Saturday, February 9, 2013

HERAMB SADHNA


 
In Tantric sadhnas and Tantra Procedures related to Lord Shri Ganpati, there are present many types of important procedures related to his diverse forms. From ancient times, Nepal has also been land of Tantra and there have been present so many accomplished sadhak in this state to accomplish various types of exceptional tantric procedures related to Aagam. The manner in which sadhnas of Shaiva and Shaakt sect were combined here, it gave rise to various types of novel possibilities. From ancient time, even kingdoms were attracted towards tantric procedures and many small ancient kingdoms of Nepal have followed Tantric system. When Tantra was on supreme heights, at that time there were present sadhaks of various Tantric sects in Nepal. Besides Kanata, Kaalmukh, Paashupat, Shaakt, Vajrayaan Nepal has also been land of one special sect called Gaanpatya. Isht of Gaanpatya sect was Lord Ganpati and his diverse forms and many special and exceptional sadhna padhatis regarding him were operational in this sect which can be carried out through both right and left path of tantra. In this manner, till one time many tantric sadhnas related to Lord Ganpati were known and spread among siddhs but slowly and gradually, this exceptional sect of Tantric world became rare. Due to incapable sadhaks and ignoring of Tantra by society, this sect became obsolete. Sadhna padhati and prayogs related to this sect were very intense. Bhagwan Ganesh is son of Maa Parvati and Shiva. He was all-capable right from his birth and is revered among Devtas. He has got special blessings from trinity of gods and has always been revered among his devotees. No activity is started without remembering him since he get rids of all obstacles. He completely destroys each and every obstacle that comes in life of sadhak. That’s why his upasana has always been famous among sadhaks but very less information is available regarding sadhna prayog related to his diverse forms. One of such secretive form of him is ‘Heramb’. This particular form of Lord Ganesh has five faces which represents his rule over five powers, five senses and five elements. These are also related to five procedures of Tantra viz Stambhan, Vashikaran, Ucchatan, Vidveshan and Maaran.  There are various mantra and sadhna padhatis for them but they are very hard and time-consuming for normal sadhaks. Procedures related to Heramb Dev have always remained away from normal householders. But procedure presented here is one rare prayog related to ancient Gaanpatya sect. This prayogs basically operates in two ways. From this prayog both Vashikaran and Vidveshan procedure can be done by sadhak. In this manner, it becomes a very easy prayog for sadhak.
First of all, Sadhak should accomplish this prayog.
Sadhak should start this prayog on any auspicious day. It should be done after 10:00 P.M. Dress and aasan of sadhak would be red. Direction will be north.
Sadhak should establish pure and energised idol of Parad Ganpati in front of him. If it is not possible, then sadhak should establish any other energised idol of Ganpati. Sadhak should try his best to establish Parad Ganpati only so as to obtain complete success. Sadhak should do poojan of Sadgurudev and idol. After it, sadhak should recite Guru Mantra. Thereafter, Sadhak should carry our Nyas procedure.

KAR NYAS
OM HOOM HOOM ANGUSHTHAABHYAAM NAMAH
OM HOOM HOOM TARJANIBHYAAM NAMAH
OM HOOM HOOM SARVANANDMAYI MADHYMABHYAAM NAMAH
OM HOOM HOOM ANAAMIKAABHYAAM NAMAH
OM HOOM HOOM KANISHTKABHYAAM NAMAH
OM HOOM HOOM KARTAL KARPRISHTHAABHYAAM NAMAH

HRIDYAADI NYAS
OM HOOM HOOM HRIDYAAY NAMAH
OM HOOM HOOM SHIRSE SWAHA
OM HOOM HOOM SHIKHAYAI VASHAT
OM HOOM HOOM KAVACHHAAY HUM
OM HOOM HOOM NAITRTRYAAY VAUSHAT
OM HOOM HOOM ASTRAAY PHAT

Sadhak should recite the below mantra 10000 times i.e. 100 rounds. Sadhak should use Moonga rosary or red sandal rosary. Sadhak can do it in 1, 2 or 3 days as per his convenience. In this manner, after completion of 100 rounds i.e. 10000 mantra jap sadhak can do its prayog.
OM HOOM HOOM MAHAASIMHAASANAAY HERAMBAAY NAMAH
Sadhak should use the rosary used in this sadhna for doing Vashikaran and Vidveshan Prayog.

Vashikaran:
For Vashikaran, direction will be north. Dress and aasan will be red. It can be done on any day after 10:00 P.M.
If sadhak has to do vashikaran of any person, then sadhak should take Sankalp before sadhna that I am doing this prayog for vashikaran of particular person.
In this manner, after taking resolution sadhak should chant 21 rounds and after daily mantra Jap, sadhak should offer 108 oblations of honey.
Vidveshan:
 For Vidveshan, sadhak’s direction will be south. Red dress and aasan will be used. It can be done on any day after 10:00 P.M.
For Vidveshan, sadhak should take Sankalp before prayog that I am doing this prayog for Vidveshan of particular person from particular person.
In this manner, after taking resolution sadhak should chant 21 rounds and after daily mantra Jap, sadhak should offer 108 oblations of black pepper.
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भगवान श्री गणपति से सबंधित तांत्रिक साधना तथा तांत्रिक विधानों में उनके विविध स्वरुप से सबंधित कई प्रकार की महत्वपूर्ण प्रक्रियायें है. नेपाल भी आदि काल से तंत्र का गढ़ रहा है तथा आगम सबंधित कई प्रकार की विलक्षण तांत्रिक प्रक्रियाओ को सिद्ध करने वाले सिद्धजन इस प्रदेश में सदियों से मौजूद रहे है. जिस प्रकार शैव तथा शाक्त मत की तांत्रिक साधनाओ का समन्वय इस क्षेत्र में हुआ था वह कई प्रकार की नूतन संभावनाओं को जन्म देने वाला था. पुरातन काल के राज घराने भी तांत्रिक प्रक्रियाओ की और आकर्षित होते थे तथा नेपाल के कई पुरातन छोटे राज घरानों की प्रणाली तांत्रिक रही है. तंत्र जब अपने उच्चतम शिखर पर था तो उस समय नेपाल में विविध एवं विशिष्ट तांत्रिक मत एवं सम्प्रदाय के साधको की उपस्थिति भी रहती थी. कनफटा, कालमुख, पाशुपत, शाक्त, वज्रयान के साथ साथ गाणपत्य नाम के एक विशेष मत का भी नेपाल एक समय तक गढ़ रहा है. गाणपत्य मत के आदि इष्ट श्री भगवान गणपति तथा उनके विविध स्वरुप थे तथा उनसे सबंधित अति विशिष्ट तथा विलक्षण साधना पद्धतियाँ इस मत में गतिशील थी जिसमे दक्षिण एवं वाम मार्ग दोनों प्रकार के विधान थे. इस प्रकार एक समय तक भगवान गणपति से सबंधित विविध तांत्रिक साधनाओ का ज्ञान और प्रसार सिद्धो के मध्य हुआ करता था लेकिन धीरे धीरे तांत्रिक जगत का यह विलक्षण मत दुर्लभ हो गया तथा अयोग्य साधको के कारण तथा समाज में तंत्र की उपेक्षा के कारण यह मत लुप्तता की और बढ़ गया. इस मत से सबंधित जो साधना पद्धतियाँ तथा विशेष प्रयोग थे वे अति तीव्र थे. भगवान गणेश तो पार्वती एवं शिव पुत्र है, वे स्वयं अपने आप में जन्म से ही सर्व समर्थ तथा देवताओ में भी पूज्य है. उनको त्रिदेव के द्वारा विशेष आशीर्वाद की प्राप्ति हुई है तथा अपनी लिलाक्रम के कारण वे हमेशा ही अपने भक्तो के मध्य वन्दनीय रहे है. वैसे भी कोई भी क्रम का प्रारंभ उनके स्मरण के बिना नहीं किया जाता, क्यों की वे विघ्न विनाशक है. साधक के जीवन में आने वाली हर एक बाधा या विघ्न का वे पूर्ण रूप से नाश करते है. इसी लिए तो उनकी उपासना साधको को हमेशा प्रिय रही है लेकिन उनके विविध स्वरुप तथा सबंधित साधना प्रयोग की बहोत ही कम जानकारी उपलब्ध हो पाती है. उनका ऐसा ही एक रहस्य से पूर्ण स्वरुप है ‘हेरम्ब’.  इस स्वरुप में श्री गणेश के पांच मुख है जो की पञ्च शक्ति तथा पांच इन्द्रियों तथा पांच तत्वों पर उनके आधिपत्य प्रदर्शित करता है. साथ ही साथ यह तंत्र की पञ्च क्रिया से सबंधित भी है, अर्थात स्तम्भन, वशीकरण, उच्चाटन, विद्वेषण, मारण. उनके विशेष तथा विविध मन्त्र एवं साधना पद्धतियाँ है लेकिन विधान सामान्य साधको के लिए अति श्रमसाध्य तथा समय की द्रष्टि से अतिव लंबे है. हेरम्ब देव से सबंधित विधान सामान्य गृहस्थ व्यक्तियो से हमेशा दूर ही रहे है. लेकिन प्रस्तुत विधान पुरातन गाणपत्य मार्ग से सबंधित ही एक दुर्लभ प्रयोग है. यह प्रयोग मूल रूप से दो भाग में कार्य करता है. इसी प्रयोग से वशीकरण तथा इसी प्रयोग से विद्वेषण क्रम साधक कर सकता है. इस प्रकार यह सहज प्रयोग हो जाता है.
साधक को सर्व प्रथम इस प्रयोग को सिद्ध करना चाहिए.
साधक किसी भी शुभ दिन यह प्रयोग आरम्भ करे. रात्री में १० बजे के बाद यह क्रम करे.
साधक के वस्त्र तथा आसन लाल रंग के रहे तथा दिशा उत्तर.
साधक अपने सामने पारद गणपति का विशुद्ध एवं चैतन्य विग्रह स्थापित करे. अगर यह संभव न हो तो साधक अपने सामने कोई भी अन्य प्राण प्रतिष्ठित एवं चैतन्य गणपति का विग्रह स्थापित करे. साधक को यथा संभव कोशिश करनी चाहिए की पारद गणपति का विग्रह ही स्थापित करे जिससे की पूर्ण सफलता को अर्जित किया जा सके. साधक सदगुरुदेव तथा विग्रह का पूजन करे. इसके बाद साधक गुरु मन्त्र का जाप करे. इसके बाद न्यास करे.
करन्यास
हूंहूं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
हूंहूं तर्जनीभ्यां नमः
हूंहूं सर्वानन्दमयि मध्यमाभ्यां नमः
हूंहूं अनामिकाभ्यां नमः
हूंहूं कनिष्टकाभ्यां नमः
हूंहूं करतल करपृष्ठाभ्यां नमः

हृदयादिन्यास
हूंहूं हृदयाय नमः
हूंहूं शिरसे स्वाहा
हूंहूं शिखायै वषट्
हूंहूं कवचाय हूं
हूंहूं नेत्रत्रयाय वौषट्
हूंहूं अस्त्राय फट्
साधक को निम्न मन्त्र का १०,००० की संख्या में जाप करना है अर्थात १०० माला. इसके बाद लाल चन्दन की माला से या मूंगा माला से मन्त्र जाप करे. साधक अपनी सुविधा अनुसार १०० माला को एक दिन में, २ दिन में या ३ दिन में कर ले. इस प्रकार १०० माला अर्थात १०,००० जाप पूर्ण होने पर साधक इसका प्रयोग कर सकता है.
ॐ हूं हूं महासिंहासनाय हेरम्बाय नमः
(OM HOOM HOOM MAHAASIMHAASANAAY HERAMBAAY NAMAH)
साधक माला ने जिस माला का प्रयोग साधना में किया है, उसी का प्रयोग वशीकरण तथा विद्वेषण के प्रयोग के लिए करे.

वशीकरण –
वशीकरण के लिए साधक की दिशा उत्तर रहेगी. लाल आसान तथा वस्त्र तथा समय रात्री में १० बजे के बाद. किसी भी दिन को यह प्रयोग किया जा सकता है.
अगर साधक को किसी व्यक्ति का वशीकरण करना है तो साधक साधना से पूर्व संकल्प ले की मैं अमुक व्यक्ति के वशीकरण के लिए यह प्रयोग कर रहा हूँ.
इस प्रकार संकल्प ले कर साधक को २१ माला जाप करना है तथा साधक को रोज जाप पूर्ण होने पर १०८ आहुति शहद से देनी चाहिए.
विद्वेषण 
विद्वेषण के लिए साधक की दिशा दक्षिण रहेगी. लाल आसान तथा वस्त्र तथा समय रात्री में १० बजे के बाद. किसी भी दिन को यह प्रयोग किया जा सकता है.
विद्वेषण के लिए साधक को प्रयोग से पूर्ण संकल्प लेना चाहिए की मैं अमुक व्यक्ति के अमुक व्यक्ति के साथ विद्वेषण के लिए यह प्रयोग कर रहा हूँ.
इस प्रकार संकल्प ले कर साधक को २१ माला जाप करना है तथा साधक को रोज जाप पूर्ण  होने पर १०८ आहुति काली मिर्च से देनी चाहिए.

****NPRU****

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