Thursday, February 28, 2013

MAHARSHI KAALAAGNI RUDRA PRANEET MAAHAAKAAL BATUK BHAIRAV SADHNA PRAYOG





Jai Sadgurudev,
Yam YamYam Yaksh RoopamDashdishivadnamBhumikampymaanam |
Sam SamSamSanhaarmoortiShubhmukutJatashekharamChandrbimbam ||
Dam DamDamDeerghkaayamVikritnakh Mukh ChaudharvroyamKaraalam
Pam PamPamPaapnaashamPranmatSatatamBhairavamKshetrpaalam ||

Sadgurudev has not only told the various dimensions of Bhairav Upasana but also made many sadhaks competent in them. He used to say that before entering into sadhna field, every sadhak should necessarily do Bhairav Sadhna because it not only gets rid of obstacles in sadhna but also provides the blessings and grace of Lord Bhairav.

Reason for describing Lord Bhairav in alphabetical form is only this that as compared to other god, he is present everywhere in universe. The way words can’t be bound in any bondage, in the same manner Bhairav also cannot tolerate any obstacle and destroy it and provides security to sadhak.
This power of him is described by sadhak in various forms and attained by sadhak after doing sadhna and get rid of pain and troubles of life.
In fact, Bhairav sadhna is sadhna of Lord Shiva only because Bhairav is form of Lord Shiva only, it is his dancing form. Bhairav is also very innocent like Shiva. On one hand, his highly intense form can cause devastation within a second and on other hand, he can provide devotee all the things.
But still, in society people shiver by listening to name of Bhairav, they connect his name with Mantra, Tantra and black magic. To get rid of these misconceptions, Gurudev published book named “Bhairav Sadhna” so that people can know the truth and get the benefits…
One sadhna of so many sadhnas of Bhairav is
Maharishi Kaalagni Rudra Praneet “Mahakaal Batuk Bhairav” sadhna. The speciality of this sadhna is that it is sadhna of Batuk form of intense form of Lord Mahakaal by which sadhak experiences intensity along with politeness and it uproots his scarcities of life, all visible or hidden enemies. This one day sadhna procedure can solve the problems of poverty, hidden enemies, debt and makes possible fulfilment of desire and attainment of grace of Lord Bhairav. Most of the times, we cannot feel the intensity of procedure till the time we do not do it. Do this procedure and tell me the results.
This procedure needs to be done on midnight of Sunday. Sadhak should take bath, wear yellow clothes and sit on aasan facing south direction. Do panchopchar poojan of Sadgurudev and Lord Ganpati and chant their mantra according to your capacity. Thereafter spread one yellow cloth on Baajot in front of you. Make above-mentioned yantra on it using mixture of lampblack and vermillion. Make a heap of black sesame in middle of yantra and ignite a four-wicked lamp on it. Do panchopchar poojan of lamp. In poojan Naivedya of Udad (black gram) Pakode or Bade and curd should be offered. Lilly flowers or red coloured flowers should be offered. Now take Sankalp (resolution) for fulfilment of desire. Thereafter do the Viniyog procedure.
Asya Mahakaal Vatuk Bhairav Mantrasya Kaalagni Rudra Rishih Anushtup Chand Aapduddharak Dev Batukeshwar Devta Hreem Beejam Bhairavi Vallabh Shaktih Dandpaani Keelak Sarvabheesht Praptyarthe Samastaapannivaaranaarthe Jape Viniyogah        
Now perform Nyaas procedure
RISHYAADI NYAS-
Kaalagni Rudra Rishye Namah Shirse
Anushtup Chandse Namah Mukhe
Aapduddharak Dev Batukeshwar Devtaaye Namah Hridaye 
Hreem Beejaay Namah Guhyo
Bhairavi Vallabh Shaktye Namah Paadyo
Sarvabheesht Praptyarthe Samastaapannivaaranaarthe Jape Viniyogaay Namah Sarvaange

KAR NYAS
 HRAAM ANGUSHTHAABHYAAM NAMAH
HREEM TARJANIBHYAAM NAMAH
HROOM MADHYMABHYAAM NAMAH
HRAIM ANAAMIKAABHYAAM NAMAH
HRAUM KANISHTKABHYAAM NAMAH
HRAH KARTAL KARPRISHTHAABHYAAM NAMAH

ANG NYAS
HRAAM HRIDYAAY NAMAH
HREEM SHIRSE SWAHA
HROOM SHIKHAYAI VASHAT
HRAIM KAVACHHAAY HUM
HRAUM NAITRTRYAAY VAUSHAT
HRAH ASTRAAY PHAT

Now take vermillion-mixed rice in hand and recite below mantra 11 times and meditate. Offer the rice in front of lamp.
Neel Jeemoot Sankaasho Jatilo Rakt Lochanah
Danshtra Karaal Vadnah Sarp Yagyopveetvaan |
Danshtraayudhaalankritasch Kapaal Strag Vibhushitah
Hast Nyast Kireeteeko Bhasm Bhushit Vigrahah ||
After it chant 11 rounds of below mantra by Rudraksh, Moonga or black agate rosary.
Om hreengvatukaaykshroumkshroumaapduddhaarnaaykurukuruvatukaayhreengvatukaay swaha ||
After completion of procedure, on next day keep Naivedya, yellow cloth and lamp in any uninhabited place. Sprinkle water on all its 4 sides (making a circle in process), pray and return back. Sadhak should not look back.
This procedure is self-experienced. Do share the experiences after doing it. I have not mentioned the experiences since experience of each person differs from other based on their proportion of elements in body.
“Nikhil Pranaam”
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जय सगुरुदेव,
यं यं यं यक्ष रूपम दशदिशीवदनं भूमिकम्पयमानं |
सं सं सं संहारमूर्ती शुभमुकुट जटाशेखरं चंद्रबिम्बम ||
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुख चौर्ध्वरोयम करालं,
पं पं पं पापनाशम प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम ||

सदगुरुदेव ने भैरव उपासना के अनेक आयाम न केवल बताए हैं अपितु अनेक साधकों को इसमें निपुण भी किया है उनका कहना था कि प्रत्येक साधक को साधना क्षेत्र में उतरने से पहले भैरव साधना अवश्य कारण चाहिए, क्योंकि इससे ना केवल साधना में आने वाले विघ्न दूर होते हैं बल्कि भगवान भैरव कि कृपा भी प्राप्त होती है.

भगवान भैरव को शब्दमय रूप में वर्णित करने का कारण सिर्फ इतना है कि अन्य देव कि अपेक्षा पूरे ब्रहांड में सर्वत्र विद्दमान हैं, जिस प्रकार शब्द को किसी भी प्रकार के बंधन में नहीं बाँधा जा सकता उसी प्रकार भैरव भी किसी भी विघ्न या बाधा को सहन नहीं कर पाते और उसे विध्वंश कर साधक को पूर्ण अभय प्रदान करते हैं,
उनकी इसी शक्ति को साधक अनेक रूपों वर्णित कर साधनाओं के द्वारा प्राप्त कर अपने जीवन के दुःख और कष्टों से मुक्ति प्राप्त करते हैं,
वस्तुतः भैरव साधना भगवान शिव कि ही साधना है क्योंकि भैरव तो शिव का ही स्वरुप है उनका ही एक नर्तनशील स्वरुप. भैरव भी शिव की ही तरह अत्यन्त भोले हैं, एक तरफ अत्यधिक प्रचंड स्वरूप जो पल भर में प्रलय ला दे और एक तरफ इतने दयालु की आपने भक्त को सब कुछ दे डाले,
इसके बाद भी समाज में भैरव के नाम का इतना भय कि नाम सुनकर ही लोग काँप जाते हैं, उससे तंत्र मन्त्र या जादू टोने से जोड़ने लगते हैं, गुरुदेव ने इन्हीं भ्रांतियों को दूर करने के लिए "भैरव् साधना" नामक पुस्तक भी प्रकाशित की ताकि लोग इसकी सत्यता को समझें और लाभान्वित हों सकें......
भैरव की उन अनेक साधनाओं में एक साधना है
महर्षि कालाग्नि रूद्र प्रणीत "महाकाल बटुक भैरव" साधना. इस साधना की विशेषता है की ये भगवान् महाकाल भैरव के तीक्ष्ण स्वरुप के बटुक रूप की साधना है जो तीव्रता के साथ साधक को सौम्यता का भी अनुभव कराती है और जीवन के सभी अभाव,प्रकट वा गुप्त शत्रुओं का समूल निवारण करती है.विपन्नता,गुप्त शत्रु,ऋण,मनोकामना पूर्ती और भगवान् भैरव की कृपा प्राप्ति,इस १ दिवसीय साधना प्रयोग से संभव है. बहुधा हम प्रयोग की तीव्रता को तब तक नहीं समझ पाते हैं जब तक की स्वयं उसे संपन्न ना कर लें,इस प्रयोग को आप करिए और परिणाम बताइयेगा.
   ये प्रयोग रविवार की मध्य रात्रि को संपन्न करना होता है.स्नान आदि कृत्य से निवृत्त्य होकर पीले वस्त्र धारण कर दक्षिण मुख होकर बैठ जाएँ.सदगुरुदेव और भगवान् गणपति का पंचोपचार पूजन और मंत्र का सामर्थ्यानुसार जप कर लें तत्पश्चात सामने बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा लें,जिस के ऊपर काजल और कुमकुम मिश्रित कर ऊपर चित्र में दिया यन्त्र बनाना है और यन्त्र के मध्य में काले तिलों की ढेरी बनाकर चौमुहा दीपक प्रज्वलित कर उसका पंचोपचार पूजन करना है,पूजन में नैवेद्य उड़द के बड़े और दही का अर्पित करना है .पुष्प गेंदे के या रक्त वर्णीय हो तो बेहतर है.अब अपनी मनोकामना पूर्ती का संकल्प लें.और उसके बाद विनियोग करें.
अस्य महाकाल वटुक भैरव मंत्रस्य कालाग्नि रूद्र ऋषिः अनुष्टुप छंद आपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवता ह्रीं बीजं भैरवी वल्लभ शक्तिः दण्डपाणि कीलक सर्वाभीष्ट प्राप्तयर्थे समस्तापन्निवाराणार्थे जपे विनियोगः  
इसके बाद न्यास क्रम को संपन्न करें.
ऋष्यादिन्यास –
कालाग्नि रूद्र ऋषये नमः शिरसि
अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे
आपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवताये नमः हृदये
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये
भैरवी वल्लभ शक्तये नमः पादयो
सर्वाभीष्ट प्राप्तयर्थे समस्तापन्निवाराणार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे

करन्यास -
 ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
 ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः
 ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः
 ह्रैं  अनामिकाभ्यां नमः
 ह्रौं  कनिष्टकाभ्यां नमः
 ह्रः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः

अङ्गन्यास-  
ह्रां हृदयाय नमः
ह्रीं शिरसे स्वाहा
ह्रूं शिखायै वषट्
ह्रैं कवचाय हूम
ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ह्रः अस्त्राय फट्

अब हाथ में कुमकुम मिश्रित अक्षत लेकर निम्न मंत्र का ११ बार उच्चारण करते हुए ध्यान करें और उन अक्षतों को दीप के समक्ष अर्पित कर दें.
नील जीमूत संकाशो जटिलो रक्त लोचनः
दंष्ट्रा कराल वदन: सर्प यज्ञोपवीतवान |
दंष्ट्रायुधालंकृतश्च कपाल स्रग विभूषितः
हस्त न्यस्त किरीटीको भस्म भूषित विग्रह: ||
इसके बाद निम्न मूल मंत्र की रुद्राक्ष,मूंगा या काले हकीक माला से ११ माला जप करें
ॐ ह्रीं वटुकाय क्ष्रौं क्ष्रौं आपदुद्धारणाय कुरु कुरु वटुकाय ह्रीं वटुकाय स्वाहा ||
Om hreeng vatukaay kshroum kshroum aapduddhaarnaay kuru kuru vatukaay hreeng vatukaay swaha ||
 प्रयोग समाप्त होने पर दूसरे  दिन आप नैवेद्य,पीला कपडा और दीपक को किसी सुनसान जगह पर रख दें और उसके चारो और लोटे से पानी का गोल घेरा बनाकर और प्रणाम कर वापस लौट जाएँ तथा मुड़कर ना देखें.
  ये प्रयोग अनुभूत है,आपको क्या अनुभव होंगे ये आप खुद बताइयेगा,मैंने उसे यहाँ नहीं लिखा है. तत्व विशेष के कारण हर व्यक्ति का नुभव दूसरे  से प्रथक होता है. सदगुरुदेव आपको सफलता दें और आप इन प्रयोगों की महत्ता समझ कर गिडगिडाहट भरा जीवन छोड़कर अपना सर्वस्व पायें यही कामना मैं करती हूँ.
निखिल प्रणाम”
 ****रजनी निखिल****

****NPRU****










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