Tuesday, September 4, 2012

AAWAHAN - 39





Aghor Mantra : Om AghorebhyothGhorebhyah Ghor GhorTarebhyahSarvatah Sarv Sarvebhyo Namaste Astu Rudra Rupebhyah

In this manner, I got knowledge about one very important procedure easily by blessings of Sadgurudev.

Sadgurudev continuing his talks said that this was regarding Siddh areas. Definitely gaining an entry into any siddh area is rare and cumbersome procedure but it is not impossible. Sadhak by putting his hard-work can enter such siddh areas.
There are some places which are above Siddh areas. They are called Divya Sthan (Area). Here consciousness rather than remaining as consciousness only gets transformed into divinity. Consciousness takes person to inner and after it; it takes person towards outer development. On the other hand, divinity unifies person with universe. Actually, this is one outstanding emotional base of spirituality whose attainment is test for anybody’s hard-work. When sadhak’s existence extends to each and every particle of nature then sadhak’s existence rather than being confined to one particular procedure or area or work gets extended to each particle of nature. After it sadhak attains the capability to interfere in any incident happening in any area. The places formed by such high-order spiritual vibrations are called Divya Sthan. Such places are in fourth dimension and for gaining entry into them; sadhak has to face various types of challenges. At such places, sadhak always remains in touch with divinity and nature becomes his companion. At such places, if aavahan of any god or goddess is done, they are manifested that moment. Any wish or desire in sadhak’s mind is fructified.
Suddenly I uttered Siddhashram? Because I have listened such things about Sidhhashram.He said that Siddhashram is not Divya Sthan rather it is much beyond it. About Siddhashram which common public has heard or read is not even the millionth part. Significance of Siddhashram can’t be explained in words. But such Divya Sthans are definitely nearby Siddhashram. There are 8 such places near Maansarovar and Rakshashtaal. Besides it, there are Divya Sthan like Divyaganj, Raajeshwari Math (monastery), Siddh Math, Sambh Math, Gupt Math etc. which are situated in India and Nepal. In these monasteries, several siddhs reside and they always work to provide welfare to sadhaks in spiritual field.
I asked what sadhak should do to gain an entry into these places. Sadgurudev answered that this is path of Guru. It all depends upon the Guru of sadhak when and how he takes sadhak to such Divya Sthan and by ding which type of procedure.
 I asked that as you told Siddhashram is above Divya Sthan.is there any other place too? Sadgurudev laughed and postponed my question .I understood that now getting further answers is not possible. His smile contains millions of secrets of universe; I have always felt it whenever I went for asking something.
In short period, whatever I understood about Siddh place and Siddh area from Sadgurudev, its millionth part I could not have understood it on my own throughout my life. His blessings are enough to eliminate any type of ignorance and make anyone knowledgeable. But still, as always answers of hundred questions gave rise to thousand new questions in mind.
In Gir Siddh area, all these incidents passed like a picture film in my mind within matter of few seconds. In front of me, it was the same Siddh who told me that only curiosity is not enough. If sadhak puts his efforts to gain knowledge then definitely he gets company of Siddhs. Many years had passed by but I did not commit any mistake recognising him. Those two siddhs were still standing in that ruins of house, my presence does not have any special influence on them. Siddhs were still smiling towards me.I greeted them with reverence. They will still in their white dress. Theirface, having no emotions was full of natural happiness and self-satisfaction. He was the guardian of that Gir siddh area who was sincerely doing welfare of so many ignorant people like me and nobody knows from what time? I did not know even his name. But still I got emotional. I don’t know why. The love and affection which one gets in Siddh world, is not found in physical world. I greeted him with reverence and he gave me blessings and said “Son, the feelings which is arising in your mind, I understand them. But this is my work, my gratefulness towards siddhs. Several years before and after that also wheneverI came to you, it was the order of your Sadgurudev. It was on every big opportunity for me to provide service to him. I was speechless. I was not having anything to ask or know now. Probably if I would have stood anymore there, tears in my eyes would have fallen down. I greeted him which was sign of departure. He gave me blessing and said May Maa Shakti provides you well-being. And the two siddhs who have come there, they become busy in his salutation and conversation with him. It was evening time. Voice of Jai Girnari was falling in my ears from far-off place. I mentally remembered Sadgurudev, how each and every moment he takes care of his disciples. What I could do in front of his love and affection, I just prayed him and started moving towards destination.
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अघोर मंत्र : ॐ अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यः घोर घोर तरेभ्यः सर्वतः सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्र रुपेभ्यः
इस प्रकार एक अत्यधिक महत्वपूर्ण प्रक्रिया का सहज ही ज्ञान सदगुरुदेव के आशीर्वचन से प्राप्त हुआ.
सदगुरुदेव ने बात को आगे बढाते हुवे कहा की यह बात हुई सिद्ध क्षेत्रो की. निश्चय ही किसी भी सिद्ध क्षेत्र में प्रवेश करना दुर्लभ तथा कठिन क्रिया है लेकिन असंभव नहीं है, साधक अगर परिश्रम करे तो वह ऐसे सिद्ध स्थानों में प्रवेश कर सकता है.
सिद्ध स्थान या क्षेत्र के ऊपर भी ऐसे कई स्थान है जिसे दिव्य स्थान कहा जाता है. यहाँ पर चेतना मात्र चेतना न होते हुवे दिव्यता में परावर्तित हो जाती है. चेतना मनुष्य को आतंरिक तथा बाद में बाह्य विकास की और ले जाती है जबकी दिव्यता व्यक्ति को ब्रह्माण्ड के साथ एकाकार कर देती है. वस्तुतः यह अध्यात्म की एक अत्यधिक उत्कृष्ट भावभूमि है जिसकी प्राप्ति निश्चित रूप से किसी के भी परिश्रम की कसोटी सी है. साधक की सत्ता जब प्रकृति के कण कण में व्याप्त हो जाती है तो साधक की सत्ता एक निश्चित प्रक्रिया या क्षेत्र या कार्य से सबंधित न हो कर प्रकृति के हर एक अणु में व्याप्त हो जाती है, इसके बाद साधक कभी भी कोई भी घटना किसी भी क्षेत्र में घटित हो रही हो उसमे हस्तक्षेप करने की सामर्थ्य रखता है. ऐसे उच्चकोटि के आध्यात्म तरंगों से निर्मित जो स्थान है वह दिव्य स्थान कहलाते है. ऐसे स्थान चतुर्थ आयाम में होते है तथा इसमें प्रवेश के लिए साधक को कई प्रकार की चुनोतियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे स्थान में साधक सतत दिव्यता से संस्पर्षित रहता है तथा प्रकृति उसकी सहचारिणी होती है. ऐसे स्थानों में जो भी देवी देवता का आवाहन किया जाए वह निश्चय ही उसी क्षण प्रकट होते है. साधक जो भी कामना या इच्छा को अपने मानस में लाता है वह पूर्ण होती है.
मेरे मुह से निकल गया सिद्धाश्रम? क्योंकि सिद्धाश्रम के बारे में भी मेने ऐसा ही सुन रखा था. उन्होंने कहा की सिद्धाश्रम दिव्य स्थान न हो कर उससे भी ऊपर है. सिद्धाश्रम के बारे में जनमानस ने जितना सुना या पढ़ा है वह उसका कोटि कण भी नहीं है, सिद्धाश्रम की महत्ता को शब्दों में बंधना संभव नहीं है. लेकिन ऐसे दिव्य स्थान सिद्धाश्रम के आसपास ज़रूर है, मानसरोवर तथा राक्षसताल के निकट ऐसे ८ स्थान है, इसके अलावा दिव्यगंज, राजेश्वरीमठ, सिद्धमठ, संभमठ, गुप्तमठ जेसे कई दिव्य स्थान है जो की भारत तथा नेपाल में स्थित है इन मठो में कई सिद्ध निवास करते है तथा आध्यात्म क्षेत्र में साधको को कल्याण प्रदान करने के लिए हमेशा कार्यरत रहते है. 
मेने पूछा इनमे प्रवेश के लिए साधक को क्या करना चाहिए? सदगुरुदेव ने उत्तर देते हुवे कहा की यह गुरुमार्ग है, यह साधक के गुरु के ऊपर निर्भर करता है की वह उसे कब और कैसे ऐसे दिव्य स्थान में ले जाए तथा कौन सी प्रक्रिया को सम्प्पन करा कर ले जाए.
मेने पूछा की आपने जेसे कहा की सिद्धाश्रम दिव्य स्थान से भी ऊपर है. ऐसे क्या कोई और स्थान भी है? मेरे प्रश्न को सदगुरुदेव ने हस कर टाल दिया. अब तक में समज गया था की बस इसके आगे अब उत्तर मिलना संभव नहीं है. उनकी एक मुस्कान में ब्रह्माण्ड के करोडो रहस्य समाये हुवे है ऐसा अहेसास हर बार मुझे होता था जब भी में कुछ पूछने जाता था.
अल्प समय में ही सदगुरुदेव से सिद्ध स्थान तथा सिद्ध क्षेत्रो के बारे में जितना भी जाना और समजा था उसका एक लाखवां हिस्सा भी में अपने जीवन भर प्रयत्न कर के भी नहीं जान सकता था, उनकी कृपा द्रष्टि सच में किसी के भी अज्ञान को दूर कर ज्ञानवान बनाने के लिए पर्याप्त है. लेकिन फिर भी, हर बार की तरह सेकडो सवाल के जवाबो ने नए हज़ारो सवाल को मानस में जन्म दे दिया.
गिर सिद्ध क्षेत्र में मानस में एक चलचित्र की भाँती ये सारी घटनाये कुछ ही क्षणों में गुजर गई. हाँ मेरे सामने ये वही सिद्ध है जिन्होंने मुझे कहा था की जिज्ञासा भाव काफी नहीं है, अगर ज्ञान प्राप्ति के लिए साधक प्रयत्नशील होता है तो निश्चय ही उन्हें सिद्धो का साहचर्य प्राप्त होता है. कई साल हो गए थे लेकिन पहेचानाने में बिलकुल भी गलती नहीं हुई थी मुझसे, उस खंडहरनुमा मकान में वो दो सिद्ध अभी भी वहीँ खड़े थे, मेरी उपस्थिति का कोई विशेष असर नहीं था उन पर. सिद्ध अभी भी मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रहे थे. मेने उनको प्रणाम किया, श्रद्धा सहित. वे अभी भी वाही सफ़ेद चोगे में थे, बिना किसी भी भाव का उनका चेहरा जेसे प्राकृतिक प्रशन्नता और आत्मसंतुष्टि से ओत प्रोत था. यही थे वह गिर सिद्ध क्षेत्र के संरक्षक जो की न जाने कितने ही मेरे जेसे अबोध और अज्ञानी बालको का कल्याण निश्चल भाव से कर रहे है और न जाने कब से. में तो इनका नाम तक नहीं जनता फिर भी आँखें थोड़ी नम सी हो गई पता नहीं क्यों. सिद्धो के संसार में जो निश्चल प्रेम और स्नेह प्राप्त होता है वह इस स्थूल जगत में कहाँ. मेने श्रद्धा से उन्हें वंदन किया उन्होंने मुझे आशीर्वचन देते हुवे कहा ‘ बेटा, तुम्हारे मानस में जो भाव उभर रहे है उन्हें में समज रहा हू लेकिन यह तो मेरा कार्य है, मेरी कृतज्ञता है सिद्धो से. कई सालो पहले भी और उसके बाद भी तुम्हारे पास में जब जब भी आया था तब मुझे आपके श्री सदगुरुवर से आज्ञा प्राप्त हुई थी. यह मेरे लिए उनकी सेवा का एक बहोत बड़ा अवसर था.’ में क्या कहता, मेरे पास अब कुछ जानने के लिए या पूछने के लिए बचा ही नहीं था. सायद थोड़ी देर और खड़ा रहता तो मेरी आँखों में रोके हुवे आंसू बहार आही जाते, मेने उनसे प्रणाम किया जो की जाने का संकेत था. उनके मुख से आशीर्वचन निकला ‘माँ शक्ति तुम्हारा कल्याण करे’. तथा वे जो दो सिद्ध वहाँ पर आये थे उनके अभिवादन तथा वार्तालाप में संलग्न हो गए. शाम घिर आई थी, दूर कहीं जय गिरनारी के नाद के साथ जालर बजता हवा सुनाई दे रहा था. सदगुरुदेव को मन ही मन याद किया, एक एक क्षण अपने शिष्यों का किस प्रकार वे ध्यान रखते है, उनके स्नेह और प्रेम के सामने और क्या कर सकता था, बस मन में ही उनको प्रणाम किया और अपने गंतव्य की और चल पड़ा. 

****NPRU****

1 comment:

Anonymous said...

bhai no english translation ?