Pitra (Ancestors) are one of
the very important part of our Vedic culture. There are various types of
questions present before modern western science that human’s journey is not
merely a journey from birth to death. Then what is the state of man before
birth or after death. But our ancient sages and saints put forward various
types of facts regarding this subject based on their elaborate research and
subtlest analysis. Out of which one of the important aspect was related to
Pitra aspect too.
Pitra has got an expanded meaning but for making a
layman understand, description can be given like this.
Person is composed of body and Aatm element (soul).
There is an important role of Praan element too. When physical body is combined
with the Aatm element, then one attains the form of human. But after
destruction of physical body, Aatm element is left. This Aatm element in order
to move in astral world requires one body, this body is Vaasna Shareer. This is
the first astral body. Due to this body, person’s thinkingremains the same
after death as it was before death. This is called soul by us. Combination of
Aatm element with subtle body is soul. Now the relatives of person i.e. family
members, after their death, their relationship does not end since they are in
Vaasna Shareer in which same cravings/relation exist as there were before
death. Therefore, they expect same things from generation as they were
expecting before death.
Now the thing is that due to craving relationship,
they remain in Vaasna world rather than astral world. In other words, they live
on earth only, related to our world and their movement becomes subtle. Since
they are not free from bonds, they cannot accept new womb by which they can
take birth and start a new life or go to astral world and rest before taking
new birth.And in all these states, they have highest expectation and hope from
their descendants. That’s why in our culture, there is very important place of
Pitra Moksha.
ShraadhPaksh is commencing from firtst day of
Krishna Paksha od Ashwin Month.This prayog should be done on 1st
October. It is Monday and this prayog is related to Lord Shiva’s Mrityunjay
form.Thus it is auspicious Muhurat for the sadhna prayog for attaing blessings
of Pitra.If sadhak is unable to do this prayog on this day, he can do it on any
Monday.
Sadhak attains following benefits from this prayog.
In Pitra paksha of sadhak, Pitra who are still
bonded attains Mukti.They gets freedom from physical craving bonds so that they
can take new birth or can take rest in Astral World.
Sadhak gets rid of all Pitra Dosh and if there is
any problem due to them, he gets relief from them.
Sadhak gets the blessings of Pitra. Therefore
unfinished works of sadhak are accomplished by the blessings of Pitra and he
attains progress in business and money related fields.
Sadhak should do this prayog at the time of sunset.
Sadhak can do it also in the Morning at the time of sunrise but if sadhak does
it during sunset then it is best.
Sadhak should take bath, wear white dress and sit
on white aasan. Sadhak should face North direction.
Sadhak should establish Parad Shivling or ay
Shivling in front and do its normal poojan. After Poojan, sadhak should pray to
whole Pitra and light Ghee lamp. Sadhak should make offering of fruits and
Kheer.
After this, Sadhak should start mantra Jap. Sadhak
should use Rudraksh rosary for reciting Mantras.
First of all, sadhak should chant 1 round of Maha
Mrityunjay Mantra.
Om
TriyambakamYajamaheSugandhimPushtivardhanam
UrvaarukmivBandhnaanMrityorMuksheeyMaamrtaat
After this, sadhak should chant 21 rounds of the
below mantra
omjumhreem kleem pitrumoksham
kleem hreemjumnamah
After chanting 21 rounds, sadhak should again chant
1 round of Maha Mrityunjay Mantra.
After it, sadhak should pray to Lord Mrityunjay for
salvation of whole Pitras. And sadhak should pray to whole Pitras to give their
blessings.
Fruits and Kheer should be offered to Cow. If it is
not possible then it should be immersed in river, pond or ocean while
remembering Pitras. Rosary should also be immersed. It is necessary to do this
on the same day or next day. In this way, this prayog is completed.
======================================================पितृ हमारी वैदिक संस्कृति का एक अत्यधिक
महत्वपूर्ण भाग है. आधुनिक पाश्चात्य विज्ञान के सामने भी आज कई प्रकार के प्रश्न
आज विद्यमान है की मानव यात्रा मात्र जन्म से मृत्यु तक ही नहीं है तो फिर उसके
पहले या बाद में मनुष्य की क्या और किस प्रकार गति होती है. लेकिन हमारे प्राचीन
ऋषियों तथा सिद्धों ने इस सबंध में बहोत ही सूक्ष्म से सूक्ष्मतम शोध और खोज कर के
कई प्रकार के तथ्यों को सामने रखा था. इसमें से कई महत्वपूर्ण पक्ष में से एक पक्ष
पितृ सबंधित भी है.
पितृ का अर्थ अत्यधिक वृहद है लेकिन सामान्यजन
को समजने के लिए इसका विवरण कुछ इस प्रकार से दिया जा सकता है.
मनुष्य शरीर तथा आत्म तत्व से निर्मित है.
प्राण तत्व का भी पूर्ण योगदान है. जब शरीर स्थूल होता है और उसके साथ आत्मतत्व का
संयोग होता है तो वह मनुष्य के रूप में होता है. लेकिन स्थूल शरीर का नाश होने पर
आत्म तत्व बचता है इस तत्व को भी गतिशीलता के लिए सूक्ष्म लोक में भी एक शरीर की
ज़रूरत पड़ती है, यह वासना शरीर होता है. यह प्रथम सूक्ष्म शरीर है. इस शरीर के कारण
व्यक्ति के मानस मृत्यु के पश्च्यात भी वेसा ही रहता है जेसा मृत्यु से पहले होता
है. इसी को ही हम आत्मा का नाम देते है. आत्म तत्व के साथ सूक्ष्म शरीर का संयोग
वही आत्मा है. अब मनुष्य के जो भी सबंधी होते है अर्थात जिसको हम परिवार का सदस्य
कहते है उनकी मृत्यु पश्च्यात उनके आपसे सबंध विच्छेद नहीं होते क्यों की उन्हें
वासना शरीर प्राप्त है जिसमे उनकी वासना अर्थात बंधन वही होते है जो की मृत्यु से
पहले. इसी लिए पीढ़ी या वंसज से उनकी अपेक्षाएं ठीक उसी प्रकार से होती है जिस
प्रकार मृत्यु से पहले.
अब यहाँ पर बात इस प्रकार से है की वासनात्मक
बंधन के कारण उनकी गति शुक्ष्म लोक में ना हो कर वासनाजगत में होती है अर्थात वह
पृथ्वी पर ही हमारी दुनिया से सबंधित रहते है और उनकी गति सूक्ष्म हो जाती है. इस
प्रकार बंधन मुक्त ना होने के कारण वे नूतन गर्भ को भी स्वीकार नहीं कर पाते जिसके
माध्यम से वे जन्म ले कर नया जीवन शुरू कर सके या सूक्ष्म लोक में जा कर वहाँ पर
गर्भाधान से पहले विश्राम प्राप्त कर सके. और इन सब स्थितियों में उनकी अपेक्षा और
आशा अपने वंश से सर्वाधिक होती है. इसी लिए हमारी संकृति में पितृ मोक्ष का
अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान और महत्त्व है.
श्राद्ध पक्ष का आरंभ अश्विन महीने के कृष्ण
पक्ष की प्रतिपदा से हो रहा है. यह प्रयोग तारीख १ अक्टूबर को करना चाहिए. इस दिन
सोमवार है तथा यह प्रयोग भगवान शिव मृत्युंजय स्वरुप का है अतः इस प्रकार यह
पितृकृपा प्राप्ति सबंधित इस साधना प्रयोग के लिए एक श्रेष्ठ मुहूर्त है, इस दिन
यह प्रयोग सम्प्पन न कर सके वे व्यक्ति इस प्रयोग को किसी भी सोमवार पर कर सकते
है.
इस प्रयोग से साधक को निम्न लाभों की प्राप्ति
होती है
साधक के पितृ पक्ष में अमुक्त पितृ को मुक्ति
की प्राप्ति होती है तथा वह वासना शरीर से मुक्त हो कर नूतन जन्म स्वीकार करने के
लिए या फिर सूक्ष्म लोक में अनुरूप विश्राम के लिए दैहिक वासनात्मक बंधनों से
मुक्ति मिलती है.
साधक को सभी पितृ दोष की निवृति होती है तथा
इससे सबंधित अगर कोई समस्या हे तो उसे राहत मिलती है.
साधक को पितृ कृपा की प्राप्ति होती है अतः
साधक के रुके हुवे काम पितृ कृपा से आगे बढते है, व्यापर तथा धन सबंधित कार्य
क्षेत्र में भी उन्नति की प्राप्ति होती है.
यह प्रयोग साधक सूर्यास्त में प्रारंभ करे. प्रातःकाल
सूर्योदय के समय भी यह प्रयोग को किया जा सकता है. लेकिन अगर सूर्यास्त के समय
साधक इस प्रयोग को प्रारंभ करे तो उत्तम है.
साधक को स्नान आदि से निवृत हो कर सफ़ेद
वस्त्रों को धारण कर के सफ़ेद आसान पर बैठना चाहिए. साधक का मुख उत्तर दिशा की तरफ
होना चाहिए.
साधक अपने सामने पारद शिवलिंग या कोई भी
शिवलिंग को स्थापित करे तथा उसका सामान्य पूजन करे. पूजन के बाद साधक अपने समस्त
पितृ को मान में वंदन करते हुवे उनके लिए एक घी का दीपक लगाए, साधक फल का तथा खीर
का भोग लगाये.
इसके बाद साधक मंत्र जाप शुरू करे. साधक को मन्त्रजाप के लिए
रुद्राक्ष माला का प्रयोग करना चाहिए.
साधक
सर्व प्रथम महामृत्युंजय मंत्र की एक माला मंत्र जाप करे.
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं
पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
इसके बाद साधक निम्न मंत्र की २१ माला मंत्र
जाप करे
ॐ जुं ह्रीं क्लीं पितृ मोक्षं क्लीं ह्रीं जुं नमः
(om jum hreem kleem pitru moksham kleem hreem jum namah)
२१ माला के बाद साधक
फिर से एक माला महामृत्युंजय मंत्र की करे.
इसके बाद साधक भगवान
मृत्युंजय से समस्त पितृ प्रेत की मोक्ष के लिए प्रार्थना करे. तथा समस्त पितृ को
आशीर्वचन के लिए प्रार्थना करे.
साधक इस प्रकार
प्रयोग को पूर्ण करे. जो फल तथा खीर है उसे गाय को खिलाना चाहिए. अगर यह किसी भी
प्रकार से संभव नहीं हो तो पितृ याद कर के उसे नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित
कर दे. साथ ही साथ माला को भी विसर्जित कर दे. यह कार्य उसी दिन या दूसरे दिन हो
जाना आवश्यक है. इस प्रकार यह प्रयोग पूर्ण होता है.
****NPRU****
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