Sadhna world is
so gigantic and so deep and expanded are its dimensions. In sadhna, body has
got an autonomous and important place. Significance of medium is unique in
itself. Today’s subject is somewhat based on it.In sadhna world, with help of
seven bodies, there is attainment of rare secrets and knowledge and also the
assistance in attaining Siddhis. And these all seven bodies are sequential
covers of soul and their relation with soul is just like a twin brother. Every
body is connected to each other and soul’s existence is connected to seven
bodies.
First is Sthool
Shareer (Physical body).Second is Bhaav Shareer or Vaasna Shareer. Bhaav body
is the subtlest form of materialistic i.e. Physical Body. We can’t say it as
completely non-physical. From scientific point of view, we have not crossed
that limit uptil now where we can take picture of Bhaav Shareer. Because in
universe, the object or living being whose existence is present physically, it
has got subtle form too.
In the same
manner, third one is astral body. If we try to understand it from scientific
point of view, then if we keep on splitting any material, then at last the part
which is left behind is Electron. And
electron is non-physical only, an electric particle, and an electromagnetic
energy. Well, we will discuss on this subject some other time…..so, not getting
deviated from topic, we were discussing on the state of body.
In the
discussion of Astral body, it is necessary to have this subject. Because when
we try to understand it through material (physically) then one infallible rule of universe apply that every
Jeev Aatma present on universe whether living or non-living , has got its
own independent existence.
In today’s
article we will learn only about astral body and its diverse aspects.
So first of all it
is important to understand the description of Astral/subtle.
The thing which
is visible, which can be created and which can be destroyed that is physical.
In the exactly opposite manner, the thing which is invisible, which can’t be
created and the one which can’t be destroyed is subtle.
Now read one
thing carefully that the one which we call as subtlest, that one is also physical.
Therefore, the one which is subtle than subtle, it will also be related to
physical.
Therefore, one
can understand in this way that the one which can be touched or which comes
under the limits of our senses that is physical and opposite to it, the one
which can’t be touched or is beyond the limits of senses is subtle.
For sadhak, it
is very important to know that in which state he is having sadhna-centric
experiences,
What is astral body?
For sadhak and
yogi, earthly body is like cloth. But humans are so much engrossed in this
physical body that they have considered this as the only truth. Whereas Yogi
always considers their physical body to be separate from them. Humans are
familiar with their outer form but not with inner form…and the day he gets
introduced to his inner form, on that day he will start considering outer form
i.e. his body like one cloth, which we call in language of Yog Tantra as outer
shell/cover of soul.
Now first of all
understand that as physical body is formed from food. From food blood and from
blood semen and essence get prepared in form of sperm. In the similar manner,
astral body is formed from subtlest particles of five Praans. Our desires,
cravings, thoughts, wishes, experience, knowledge and our sanskars also but
they are present in seed form. And after death, all these are accumulated and
astral body starts new journey.
In simple words,
consider this body as first cloth or cover of soul and in the same manner,
second i.e. inner cloth or cover is astral body. As we read earlier that the
part left after fission of material is electron, one electric particle. In the
same manner, astral body is formed from electric particles and it comes from
previous lives. And soul enters the womb through this body only and after death
starts its next journey from it only. So it can be said that astral body
is the only carrier of soul. Coming and going of astral body is as natural as
downward flow of water.
We all visibly
or invisibly emigrate through astral body. Just the difference is that yogi or sadhak are able
to completely control this activity but not the normal man.During sleep, we
roam in so many places but when we wake up, all seen things disappears. On the
other hand, sadhak and yogi during this emigration carry out work through
astral body. And after coming to active state also, all happened scenes remain
in their subconscious mind. Because they know the procedure to separate astral
body from physical body……but common person due to his inability to do this at
his own will can’t remember the things happened during astral emigration. But
this can happen in very little time through daily practice.
In Samadhi
state, the astral body which comes out, in it, there is present only soul and
sub-conscious portion of mind. Subconscious mind does the work of all knowledge
senses and in such state, it accumulate all experience by accepting it.Establishing
a coordination between the two bodies id one difficult task because
deterioration of any coordination can have direct influence on physical, mental
state and daily chores of person doing the practice.
In the coming
article, I will try to give description of Sookshma Shareer Vicharan Kriya,
contacts with other Loks, Awastha etc.
Nikhil Pranaam
साधना जगत जितना विशाल है और उतने ही गहरे और विस्तृत है उसके आयाम. साधना में देह का अपना स्वतन्त्र और महेत्व्पूर्ण स्थान है. माध्यम का महेत्व अपने आप में अलग ही होता है. आज का विषय कुछ इसी पर आधारित है. साधना जगत में सात शरीरों के माध्यम से दुर्लभ रहस्यों और ज्ञान की प्राप्ति होती है और होती है सिद्धि अर्जित करने में मदद. और ये सातो शरीर आत्मा के क्रमिक आवरण है और आत्मा से उनका संबंध ठीक जुड़वाँ भाई की तरह है. प्रत्येक शरीर एक दूसरे से जुड़ा हुआ है और एक साथ सातों शरीर से जुडा हुआ है आत्मा का अस्तित्व.
पहला है
स्थूल शरीर, दूसरा भाव शरीर या वासना शरीर. भाव शरीर शरीर भौतिक यानी के स्थूल
शरीर का ही एक सूक्ष्मतम रूप है. उसे पूर्ण रूप से हम अभौतिक नहीं कह सकते.
वैज्ञानिक दृष्टि से हम अब तक उस सीमा कों नहीं लांघ पाए है जाया हम भाव शरीर का
चित्र ले सके..क्युकी ब्रम्हांड में जिस पदार्थ आठवा जीव वस्तु का अस्तित्व स्थूल
रूप में विराजमान है उसका सूक्ष्म रूप भी है.
उसी
प्रकार तीसरा सूक्ष्म शरीर है. वैज्ञानिक
दृष्टि से इसे समझने की चेष्ठा करे की किसी भी पदार्थ कों अगर खंडित करते चले जाए
तो आखिर में जो अंश शेष रहता है वो है इलेक्ट्रोन. और इलेक्ट्रोन अभौतिक ही तो है. एक विद्युत कण. एक विद्युत
चुम्बकीय उर्जा. खैर इस् विषय पर कभी और चर्चा करेंगे..सो विषयान्तर ना करते हुए
पुनः शरीर की अवस्था पर हम वार्ता कर रहे थे.
सूक्ष्म शरीर की चर्चा में इस विषय का होना लाज़मी है.
क्युकी जब हम पदार्थ द्वारा इसे समझने का प्रयत्न करते है तो ये ब्रम्हांड का अटूट नियम लागू होता है की
ब्रम्हांड में प्रस्तुत प्रत्येक जीवात्मा
फिर वह जीव या निर्जीव हो उसका अपना एक स्वतन्त्र अस्तित्व है.
आज के लेख
में हम केवल यही जानेगे की सूक्ष्म शरीर और इसके विविध पक्ष.
तो
सर्वप्रथम सूक्ष्म की व्याख्या समझना अनिवार्य है..
जो वस्तु
दृश्य है, जिसका निर्माण किया जा सकता है और जो नाशवान है वह स्थूल है. ठीक वैसे
ही इसके विपरीत जो वस्तु दृश्य नहीं है, जिसका निर्माण नहीं किया जा सकता है और जो
नाशवान भि नहीं है वह सूक्ष्म है.
अब एक बात
जरा गौर से पढ़े की जिसे हम सूक्ष्मतम की संज्ञा दे देते है वो भि तो स्थूल ही है
सो जो सूक्ष्म तीसूक्ष्म है वो भि स्थूल से संबधित रहेगा ही.
इसीलिए
इसे यु समझे की जिसका स्पर्श किया जा सकता है या जो हमारी इन्द्रियों की सीमा के
अंतर्गत है वह स्थूल और इसके विपरीत जो अस्पर्श या इन्द्रियों की सीमा के भि परेय
है वह सूक्ष्म.
साधक के
लिए ये जानना अत्यंत आवश्यक है की उसकी साधनात्मक अनुभुतिया किस अवस्था में उसे
प्राप्त होती होती है.
सूक्ष्म शरीर क्या है?
साधक या
योगी के लिए पार्थिव शरीर वस्त्र के सामान है. पर मनुष्य इस स्थूल देह में इतना
ज्यादा लिप्त है की इसे ही सत्य मान बैठा है. वही योगी सदैव स्थुल देह कों अपने आप
से पृथक मानते है. मनुष्य अपने बाह्य स्वरूप से तो परिचित होता है परन्तु भीतरी
स्वरूप से नहीं.. और जिस दिन उसका परिचय भीतरी स्वरूप से हो जायेगा उस दिन वो
बाह्य स्वरूप कों अर्थात अपने शरीर कों एक वस्त्र के सामान समझने लगेगा जिसे योग तंत्र की भाषा में आत्मा का बाहरी
आवरण कहते है.
अब सर्व
प्रथम ये समझे की जैसे स्थूल शरीर का निर्माण अन्न से होता है, अन्न से रक्त और
रक्त से शुक्राणु और सत्व वीर्य के रूप में तयार होता है. उसी प्रकार सूक्ष्म शरीर
पञ्च प्राणों के सूक्ष्मतम कणों से निर्मित है. हमारी कामनाये, वासनाए,
विचार, इच्छाए, अनुभव, ज्ञान और हमारे
संस्कार भी लेकिन ये सभी बीज रूप में उपस्थित रहते है. और देह त्याग के बाद इन सभी
कों समेट कर सूक्ष्म शरीर अगली यात्रा पर निकल पड़ता है.
सरल
शब्दों में इस शरीर कों आत्मा का पहला वस्त्र या आवरण समझे और उसी प्रकार दूसरा
अर्थात भीतरी वस्त्र या आवरण है सूक्ष्म शरीर. जेसा की पहले हमने पढ़ा की पदार्थ
खंडन के पश्चात जो शेष अंश होता है एलेक्ट्रोन एक व्द्युत कण वैसे ही सूक्ष्म शरीर
भी विद्युत कणों से निर्मित है और पूर्व
जन्म से चला आता है. और आत्मा उसी शरीर कों लेकर गर्भ में प्रवेश करती है और
मृत्यु के बाद भी अपनी अगली यात्रा उसी से प्रारंभ करती है. तो ये भी कहा जा सकता
है की सूक्ष्म शरीर
ही आत्मा का वाहक है. सूक्ष्म शरीर का आवागमन बिलकुल प्राकृतिक है ठीक वैसे जेसे
जल का अधोमुखी बहना.
हम सभी
दृश्य अदृश्य रूप में सूक्ष्म शरीर से प्रवास करते है. बस फर्क इतना होता है की
योगी या साधक इस् क्रिया कों सम्पूर्ण रूप से संचालित कर पाते है और आम इंसान
नहीं. निद्रा अवस्था में हम नजाने कितने स्थानों का विचरण कर आते है. परन्तु आंख
खुलने पर हमें बिस्तर से नीच पैर रखने तक तो सब देखा हुआ अमिट हो जाता है. वही
साधक योगिगन इस् प्रवास में सूक्ष्म शरीर
से कार्य सम्पादित करते है. और जाग्रत अवस्था में आने के पश्चात भी सभी घटित दृश्य
उनके अवचेतन में विद्यमान रहता है. क्युकी उन्हें स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर कों पृथक करने की क्रिया जो ज्ञात होती
है..परन्तु आम इंसान इसे अपनी इच्छा अनुसार ना करने के कारण सूक्ष्म प्रवास के
दौरान घटित बातों कों याद नहीं रख पाता. परन्तु ये क्रिया नित्य अभ्यास के माध्यम
से संभव कुछ ही समय में हो सकती है.
समाधी
अवस्था में जो सूक्ष्म शरीर बाहर निकलता
है वह केवल आत्मा और मन का अवचेतन भाग रहती है. अवचेतन मन सभी ज्ञानेन्द्रियों का
कार्य कर करता है और एसी अवस्था में सभी अनुभव कों ग्रहण कर संचित रखता है. दोनों
शरीरों में सामंजस्य स्थापित करना ही एक दुष्कर कार्य है. क्युकी सामंजस्य बिगड़ने
पर उसका सीधा प्रभाव अभ्यास कर्ता के शारीरिक, मानसिक स्थिति एवं दिनचर्या के
कार्यकलापों पर भी पड़ सकता है.
आगे के
लेख में सूक्ष्म शरीर विचरण क्रिया, लोक लोकान्तरो संपर्क, अवस्था आदि का विवरण
देने का प्रयास करुँगी...
निखिल
प्रणाम
****सुवर्णा निखिल****
****NPRU****
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