सफलता कोई लक्ष्य या मंजिल नहीं हैं बल्कि यह तो एक यात्रा हैं , ओर इस मार्ग में साधनाओ में सफलता या सिद्धिता प्राप्त करना मार्ग में आये मील के पत्थर हैं , जो उस पर ही रुक गया , वह अंतिम लक्ष्य से वंचित ही गया जोकि सदगुरुदेव जीके श्री चरण ही हैं .प्रथम दृष्टी में हमारी सफलता तो सदगुरुदेव भगवान के श्री चरणों में पहुंचना ही लगती हैं ,पंरन्तु एक बड़े दृष्टी कोण से देंखे तो हमारी सफलता यह होगी की हम उनके ज्ञान प्रसार , उनकी शिक्क्षा ,और जो भी वह इस समाज को दिशा निर्देशित करना चाहते थे ओर है भी , उन कार्यों में भी हम आगे आये ओर उन ज्ञान से पहले खुद ओर फिर अन्य लोगो को भी आप्लावित करे. और यह सब जो सदगुरुदेव जी ने पूरा जीवन लगाकर हमारे सामने जो आदर्श रखे हैं वह बेकार न चले जाये , इसका भी हमें ध्यान रखना ही हैं . और यदि हम यह सब नहीं करेंगे तो कौन करेगा यह सब, यह हमारा केबल कर्तव्य ही नहीं बल्कि जन्म सिद्ध अधिकार हैं . सदगुरुदेव जी ने कभी भी हमसे गुरु दक्षिणा नहीं मांगी क्योंकि वे जानते हैंकि हमारी सामर्थ्य ओर क्षमता कितनी हैं और न ही हम उस स्तर का बलिदान दे सकते हैं . इसलिए उन्होंने हमसे कुछ माँगा ही नहीं वरन वे हमारी देख भाल ही करते रहे हैं क्या अब ये हमारी जिम्मेदारी नहीं बनती की हम वह भी समझने कीकोशिश करे जो की वे हमसे चाहते रहे हैं . उनके द्वारा लिखित शब्द तो मार्ग दर्शन कर ही रहे हैं पर सदगुरुदेव का मौन भी अपने बच्चो के लिए एक गहन अर्थ रखता हैं
किसी भी साधना में सफलता के लिए अनेको तथ्य की जानकारी आवश्यक होतीहैं यहं तो एक बात ऐसी लगती हैंकि इतने सारे तथ्यों पर यदि कोई ध्यान देता रहा तो उसकी सारी उर्जा तो इन्ही बातोंको को ध्यान में रखने पर ही नष्ट हो जाएगी फिर वह साधना क्या करेगा. परन्तु वस्तु स्थिति ऐसी नहीं हैं जब कोई व्यक्ति बाइक चलाना प्रारंभ करता हैं तो प्रारंभ में इतने बाते होतीहै की कहाँ गेअर लगाना हैं कहाँ क्लच लगाना हैं , ओर इस तरह की अन्य बाते पर इस प्रक्रिया में वह कई बार गिरता भी हैं ओर कई गलती भी करता हैं .
परन्तु जब वह भलीभांति सीख जाता हैं तो वह बाइक चलते समय अपने दोस्त से बात भी करता जाता हैंफिर उसे इन गेअर ओर अन्य बातों का का ध्यान नहीं रखना पड़ता हैं . यही बात साधना जगत में भी लगती हैं कुछ समय बाद यह साधक के खून में ही समाहित हो जाती हैं
यहतो सुविज्ञात तथ्य हैं की जल के साथ जल मिल सकता हैं पर तेल के साथ नहीं ,कारण बिलकुल साफ हैं की कुछ विशेष बातेओर गुण एक सामान होना ही चाहिए और इसी तरह यह बात सभी जानते हैं की मित्रता एक जैसे स्तर ओर गुण वाले लोगोंके मध्य ही संभव हैं अगर ऐसा नहीं हैं तो इनके मध्य विभिन्न समस्या आएगी ही .
तोयह बात तो साधना जगत में भी लागु होंगी .जबतक एक स्तर साधक नहीं प्राप्तकर लेता उसे वह उन देवी देवता को अपनी आँखों से नहीं देख पाता ..क्योंकि देवी देवता हमारे स्तर तक नहीं आ सकते हमें ही अपना स्तर इतना बढ़ाना होगा .
हमें ही अपना मासिक चेतना के स्तर इतना बढ़ाना होगा .सदगुरुदेव जी ने कई बार बोला की जब भी साधना करना हो वह सफलता रो कर गिड़ गिड़ा कर नहीं पाई जा सकती साधक भीउनके समक्ष हैं क्योंकि उसने सदगुरुदेव जी से दीक्षा प्राप्त की हैं . तो फिर साधक रो कर इस तरह से आसू बहा कर की इस प्रकार की सफलता क्यों पाने की उम्मीद रखता हैं .,सफलत तो उन्ही का वरण करती है जो इस प्रकार की भाव भूमि रखते हैं , वैसे भी साधना योद्धाओं के अस्त्र हैं .किसी भिखारी का नहीं .
यदि किसी तंत्र साधक की ऐसी मन : स्थिति ऐसी नहीं हैं तो वह हज़ार साल में भी सफलता नहि पा सकता , यह तो शेरोंकी भूमि हैं . पुरुष बनने के लिए नहीं बल्कि अपने आपको परखने का भी स्थान हैं . कोई मनौती नहीं कोई गिड़ गिड़ा ना नहीं, हम स्वामी निखिलेश्वरानंद जीके शिष्य हैं ,कैसे साधना में हमें सफलता नहीं मिलेगी
जब आपके मित्र आपके घर आते हैं तो आप सारी वस्तुए एक तरफ रख कर उनके साथ ही जाते हैं, तो क्या यही बात आप साधना के लिए नहीं कर सकते हैं .मेरा तातपर्य मानसिकयोग्यता से हैं हमें ही अपना मासिक चेतना के स्तर इतना बढ़ाना होगा .सदगुरुदेव जी ने कई बार बोला की जब भी साधना करना हो वह सफलता रो कर गिड़ गिड़ा कर नहीं पाई जासकती साधक भी उनके समक्ष हैं क्योंकि उसने सदगुरुदेव जी से दीक्षा प्राप्त की हैं . तो फिर साधक रो कर इस तरह से आसू बहा कर की इस प्रकार की सफलता क्यों पाने की उम्मीदरखता हैं .,सफलत तो उन्ही का वरण करती है जो इस प्रकार की भाव भूमि रखते हैं , वैसे भी साधना योद्धाओं के अस्त्र हैं .किसी भिखारी का नहीं .
यदि किसी तंत्र साधक की ऐसी मन : स्थिति ऐसी नहीं हैं तो वह हज़ार साल में भी सफलता नहि पा सकता , यह तो शेरोंकी भूमि हैं . पुरुष बनने के लिए नहीं बल्कि अपने आपको परखने का भी स्थान हैं . कोई मनौती नहीं कोई गिड़ गिड़ा ना नहीं, हम स्वामी निखिलेश्वरानंद जीके शिष्य हैं ,कैसे साधना में हमें सफलता नहीं मिलेगी
जब आपके मित्र आपके घर आते हैं तो आप सारी वस्तुए एक तरफ रख कर उनके साथ ही जाते हैं, तो क्या यही बात आप साधना के लिए नहीं कर सकते हैं .मेरा तातपर्य मानसिकयोग्यता से हैं .
साधना क्षेत्र मे इतने अधिक निर्देश हैं , मानसिक योग्ताओ के लिए भी निर्देश हैं ,
प्राचीन तन्त्रर्चायों ने तीन प्रकार के साधक बताये हैं
1. पशु भाव युक्त
2. वीर भाव युक्त
3. दिव्य भाव युक्त
· यहाँ पर भी इनका विभाग कम नहीं हुआ वल्कि अन्य मैंने से कुछ विभाग ऐसे हैं .
· पशु पशु भाव युक्त
· पशु वीर भाव युक्त
· पशु divya भाब युक्त
इसी तरह अन्य भावके भी विभाग किये जा सकते हैं इन को विस्तार से समझना इस पोस्ट का विषय वस्तु नहीं हैं कभी भविष्य में देखा जायेगा किसी अन्य पोस्ट में. आप साधन पुरे विस्वास, सहस ओर मनोयोग से करे आपको सफलता क्यों नही मिलेगी जबकि आप तो सदगुरुदेव जी के शिष्यों में से एक हैं.
आज के लिए बस इतना ही
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Success is a not any aim or manzil actually it’s a journey, siddhita in various sadhana is just a mile stone mark , in first site our success seems to reach to divine lotus feet of sadgurudev ji , and in much broader sense we do our best so that his teaching , and aim , direction toward the society should not go in waste. If we are not come forward than who else, its not the duty but its our birth right, Sadgurudev never ask for any guru dakhina, he already know that we never able to give or sacrifice to that level , that’s why he said nothing always caringfor us, its not our responsibility that we try to understand what he actually want, written word are the mark but his silence also saying a lot to his beloved children,
So for to achieve siddhita in any sadhana, many things need to understand, but it seems like so many things needed to instead of concentrating on sadhana mantra our energy already lost. But the situation is not like that , when any person in the beginning learn how to ride a bike, in the start he is so much worried about how to start, what are the gear and how to apply them when to use clutch when not, and in the process of learning he many times falls , or committed mistake.
But what happens when he thoroughly learn that , even he can talk with his friend and no need to think about the details , same things applicable in th e sadhana field, after a time all theses things are so easy that one need not to think that since they already in the blood of that fellow.
As it already known facts the water can mix with water but not with the oil, reason is simple , both has a same property, and friends ship can only be possible in between person of having same nature and quality. Other was there may be problem.
So why not this will applicable is in sadhana field. Until you achieved a certain level, one cannot expect that he will have vision of that divine one means devi or devta . They cannot come so much lowered plane instead of that we have to raise our conscious level .so sadgurudevji many times said to all of us that while doing sadhana , there will be no beggar like feeling you have , you are also equal to them, you have the power of Sadgurudev than why to behave like that , and success can be achieved only to those who have this mentality. Sadhana is a weapon of warrior not for a begger.
If tantra sadhak not having such a philosophy in thousand years he will not success . its the field of lion. This is the place of being purush. No begging , no manuti only havingnfaith that I am the shsishy of paranmahans swami nikhileshwaranand ji, how can this or that sadhana can not became fully success full for me.
So when your friend arrive you do your best for his welcome. So do the same when you do the sadhana. Means having the attitude .
In sadhantmak granths there are much material and important guide line regrinding the bhavbhumi
Like they had divide the three category of sadhak like
· Pashu bhav
· Veer bhav
· Divya bhav
And not only this but other more division of theses three bhav possible like
· Pashu-pashu bhav
· Pashu veer bhav
· Pashu divya bhav
Like that other bhav division is also possible .But in details about them Is not the subject matter of this post, in any coming post is possible then we deal the subject in details, for now only factor is needed that do the sadhana with courage and faith that why not be you successful when sadhana material is right, Sadgurudev ji is with you, what more ,,ie, only sadhak determination is needed…
This is enough for today….
Tantra kaumudi :(monthly free e magazine) :Available only to the follower of the blog and member of Nikhil Alchemy yahoo group
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