स्वाधीष्ठान
चक्र:
कुण्डलिनी क्रम में स्वाधीष्ठान चक्र मूलाधार से ऊपर की और है. इसका स्थान पेडू है. यह चक्र
मूलाधार से चार उँगल ऊपर की और होता है. इस चक्र का वर्ण शुभ्र होता है. आधुनिक विज्ञान ‘hypogastric
plexus’ नाम इस चक्र को दिया
है. शरीर में निहित २६ जल तत्वों का
नियंत्रण इसी चक्र के माध्यम से होता है यूँ यह चक्र जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता
है. मूलाधार चक्र की तरह ही इस चक्र के भी सभी प्रक्रियाओ के लिए शिव है. यु २६
प्रकार के जल तत्वों के नियंत्रण के लिए २६ शिव है तथा इन शिव की २६ शक्तियां इसी
कमल में होती है. स्वाधीष्ठान चक्र में ६
दल होते है. इस चक्र का बीज मन्त्र ‘वं’ है, जो की चक्र के मध्य में स्थापित है.
इसके अलावा इस चक्र में ६ वर्ण या बीजाक्षर चक्र के ६ दल में स्थापित है जो की ‘बं’, ‘भं’, ‘मं’, ‘यं’, ‘रं’ तथा ‘लं’ है. यह ६ बीज ६ प्रकार के भावो का नियंत्रण करते है तिरस्कार,
भ्रम, स्नेह, संदेह, निर्दयता तथा विध्वंशता. काम उर्जा का स्थान पेडू होने के
कारण जब काम शक्ति का संचार ज्यादा होता है तब चक्र में निहित दल की इस पर कई
प्रकार की अशर होती है. इसी लिए व्यक्ति में काम संचार होने पर उसे कई बार ऊपर
वर्णित भाव अपने आप आने लगते है. कई बार प्रियजन से स्नेह, कई बार अप्रिय जन को
याद कर तिरस्कार तो कई बार यही काम उर्जा अयोग्य कार्य की और ले जा कर विध्वंशता
का बोध दे देती है. ‘कामातुरे न लज्जां न भयं’; अत्यंत कामातुर व्यक्ति को ना ही
लज्जा होती है ना ही उसे भय होता है क्यों की निर्दयता उस पर हावी हो जाती है.
व्यक्ति को इनमे से एक या एक से ज्यादा भाव आ सकते है क्यों की व्यक्ति के गुणों
तथा क्रिया कलाप पर उनके दल में भावो का संचार होता रहता है. एक सामान्य व्यक्ति
काम उर्जा से पीड़ित हो कर असामाजिक कृत्य कर विध्वंशता की तरफ बढ़ जाता है जब
की इसी काम उर्जा का सहारा ले कर उससे
कुण्डलिनी शक्ति का जागरण कर सब के स्नेह का पात्र भी बन सकता है.
इस चक्र से सबंधित देवता
में जो मुख्य है वह है वरुण तथा विष्णु. इस चक्र की मूल शक्ति देवी राकिनी है. जल
तत्व का नियंत्रण बिंदु होने के कारण इस में भगवान वरुण को स्थापित माना जाता है.
भगवान वरुण को मगरमच्छ के ऊपर बैठा हुआ माना गया है इस लिए जिस प्रकार मूलाधार का
प्रतिक हाथी है इस चक्र का प्रतिक मगरमच्छ है. भगवान विष्णु को भी इस चक्र में
स्थापित माना गया है क्यों की यह भाव क्रम प्रधान चक्र है जिसका सबंध व्यक्ति के
जीवन के पालन क्रम में बहोत ही महत्वपूर्ण है. भगवान विष्णु के दो रूप इस चक्र में
है जिनमे से उनका रजस भाव स्वरुप रूप स्नेह, भ्रम, संदेह के भावो के संचार के लिए
है जब की तिरस्कार, भ्रम और विध्वंशता के लिए उनका तमस भाव से युक्त स्वरुप है. इसी
चक्र में चन्द्र को भी स्थापित माना गया है जो की भाव प्राप्ति की स्थिति का
नियंत्रण करते है तथा भाव के निर्माण के लिए जो घटनाये व्यक्ति के साथ होती है वो
उनके द्वारा प्रेरित होती है.
यह चक्र प्रजनन शक्ति से सबंधित है, प्रजनन सबंधित तथा जननेंद्रिय सबंधित
सभी पक्षों का नियंत्रण इस चक्र के माध्यम से होता है. इसके अलावा इस चक्र पांच
इन्द्रियों के अंतर्गत आने वाले भाव ‘स्वाद’ का भी नियंत्रण यही चक्र के माध्यम से
होता है. इसके अलावा शारीरिक रूप से क्रिया कलापों के माध्यम से प्राप्त होने वाली
चेतना और अवचेतना तथा मनोभावनाये भी इसी चक्र के माध्यम से नियंत्रित होती है.
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Swadhisthan chakra:
In kundalini, Swadhisthan cchakra is
upper side of the Muladhar chakra. This chakra is located in sacrum. This
chakra is approx 4 fingers upwards the muladhar chakra. This chakra is white
lighted in colour. Modern science terms this chakra as ‘hypogastric plexus’.
This chakra represents basic element water as it is controlling of 26 water
elements of the body. Like Muladhar chakra, in this chakra too there is Shiva
for every processes. Thus, for controlling process of the 26 type water
elements there are 26 shiva and there are 26 shakti of this shiva is also
situated in this lotus. In swadhisthan chakra there are 6 petals. Beej mantra
for this chakra is ‘Vam’ (‘वं’). Apart from this,
other alphabets or beejakshara in 6 petals of this chakra are ‘Bam’ (‘बं’), ‘Bham’ (‘भं’), ‘Mam’(‘मं’), ‘yam’ (‘यं’), ‘ram’ (‘रं’), and ‘lam’ (‘लं’). These 6 beeja controls six types
of bhav which are scorn, delusion, affection, suspiciousness, pitiless nature
and destructiveness. As location of
sexual power is in sacrum, when there is more sexual power flow in the body, it
gives many types of effects on the lotus petals of this chakra. Because of this
reason, above mentioned feelings starts merging when sexual power in the body
increases. Many times one may feel more affection towards beloved once, many
times scone feeling starts floating for the hated one or many times this sexual
power leads to destruction by attending unsuitable or anti social work. ‘kaamaature na lajjam na bhayam’; said that
there remains neither fear nor shame the
one who is sexually tempted because pitiless nature gets control over that
person. One or many feelings may come to the person because characteristics and
functions of the persons lead to the feelings increments in petals of this
chakra. One normal human being trapped in sexual power and desire may destruct life
by attempting anti social works and on other hand this same sexual power may be modulated for the
activation of the kundalini power and can became beloved once of everyone.
Main gods related to this
chakra are Varuna and Vishnu. Main base power of this chakra is raakini. Because it is controlling place of the water
element, goddess Varun is believed to be established in this chakra and he is
seated on crocodile. Thus, the way, symbol of the muladhar chakra is elephant,
the same way many times this chakra is symbolized as crocodile. God Vishnu is
also established in this chakra because this chakra is feeing process oriented
chakra which has strong affection of the observance (upbringing)paalan of individual’s
life or Palana process of Vishnu. There are two forms of Vishnu in this chakra.
The form with Rajas Bhaav is for the flow of feelings affection, delusion and suspiciousness; where as his form with tamas bhaav
is for scorn, pitiless and destructive feelings. Moon is also believed to be
established in this chakra that controls platforms of the feelings and
incidents and feelings oriented from the incidents. Such incidents which cause
these feelings are inspired by him.
This chakra is also have relation to
reproduction power of the human, reproduction and all the aspect related to
sexual organs are controlled with the medium of this chakra. Apart from this,
with the medium of this chakra controlling of the sense ‘taste’ is also done
which comes under five main senses. Also, gaining of consciousness and
unconsciousness and feelings resulted with the medium of the various activities
of the body are also controlled by this chakra.
****NPRU****
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