Monday, June 18, 2012

SECRETS OF KUNDLINI - 2 (कुण्डलिनी रहस्य -२)


पिछले लेख में हमने जाना की किस प्रकार मनुष्य और कुण्डलिनी शक्ति का आपस में संश्रय है. वस्तुतः मनुष्य सामान्य भी है और असामान्य भी. जब तक वह शक्ति अवचेतन अवस्था में है तब तक मनुष्य सामान्य ही रहेगा और कुण्डलिनी शक्ति के चेतना प्राप्ति के साथ ही किस प्रकार व्यक्ति ब्रम्ह की सत्ता से जुड़ने लगता है तथा अपने जीवन को उर्ध्वगामी बना सकता है, इसके ऊपर हमने चर्चा की है. कुण्डलिनी योग तथा तंत्र क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है. इस लिए इस विषय के सन्दर्भ में हमारे पुरातन महर्षियो ने अपनी अपनी भिन्न राय दी है तथा अपने अपने अनुभवों के आधार पर इस विषय के रहस्यों से हमें परिचित कराया है, फिर भी यह विषय अत्यंत ही गुढ़ है. कुछ स्वार्थ परस्त व्यक्तियो ने अपनी जेब भरने के लिए और भोग की लोलुप्त्ता में अपना स्थान जमाये रखने के लिए इस विषय के सन्दर्भ में कई प्रकार की भ्रान्तिया फेला रखी है. इस प्रकार इस विषय का जो मूल है उससे हट कर कई बार इसे भयंकर रूप में प्रदर्शित किया गया है लेकिन वस्तुतः ऐसा नहीं है.
कुण्डलिनी अद्रश्य सांप है? क्या उसका जागना व्यक्ति के लिए खतरनाक हो सकता है?
कुण्डलिनी के बारे में कहा जाता है की कुण्डलिनी एक सांप है और उसका जागरण होता है तब वो सांप काटता है और पीड़ा पहोचाता है इत्यादि. वस्तुतः यह मात्र भ्रान्ति है. शक्ति का कोई स्वरुप नहीं होता, शक्ति निराकार होती है. शक्ति के संचार के लिए उसका कोई रूप धारित होता है जब वो शिव के साथ संलग्न होती है. शक्ति के संचार के लिए उसे बाह्य रूप की या यु कहे की माध्यम की शरीर की आवश्यकता होती है. इसी लिए देवी के विभ्भीन्न स्वरुप हमारे सामने आये है. कुण्डलिनी भी एक शक्ति है, इस शक्ति को सर्प रूप में माना गया है. यहाँ पर सर्प कर अर्थ प्रतिक रूप में है, सर्प सुसुप्त अवस्था में कितने सालो तक रह सकता है तथा सर्प पूर्ण कायाकल्प करने में समर्थ होता है. वस्तुतः अगर सर्प किसी भी रूप में बीमार नहीं हो या घायल नहीं हो तो वह प्राण ऊर्जा को बरकरार रख कर अपने जीवन को चाहे उतनी आयु दे सकता है. सर्प का यही अर्थ यहाँ पर भी है की देवी मूल रूप में व्यक्ति को प्राणों के संचार से खुद के ही शरीर पर आधिपत्य स्थापित करा देती है. इसके अलावा सर्प का अर्थ विशुद्ध काम शक्ति यानी की सर्जन शक्ति से है. इस प्रकार देवी कुण्डलिनी पूर्ण सर्जनमय है. किसी भी शक्ति की उपासना के लिए उनका एक स्वरुपया ध्यान आवश्यक है क्यों की साकार उपासना पूर्णता की तरफ ले कर जाती है जब की निराकार मोक्ष तथा विसर्जन की तरफ. इस लिए देवी को सर्प के रूप में मानकर उनकी साधना की जाती है. वैसे कुण्डलिनी शक्ति को कई बार त्रिपुरसुंदरी, महाकाली, छिन्नमस्ता आदि कई शक्तियो का ही मूल स्वरुप मानकर भी साधना की जाती है.
कुण्डलिनी जागरण के पहले या बाद में गृहस्थ जीवन का त्याग  आवश्यक है?
कुण्डलिनी जागरण के बाद व्यक्ति गृहस्थ जीवन में नहीं रह सकता यह भी एक मात्र मिथ्या धारणा मात्र है. कुण्डलिनी शक्ति तो मनुष्य को अपने मूल का परिचय देती है उसका सन्यास जीवन से या गृहस्थ जीवन से कोई लेना देना नहीं है. गृहस्थ व्यक्ति भी पूर्ण कुण्डलिनी जागरण कर सकता है और उसके बाद अपने गृहस्थ जीवन को पूर्ण रूप से जी सकता है. एक मत यह है की व्यक्ति को कुण्डलिनी जागरण के बाद आजीवन ब्रम्हचर्य का पालन करना आवश्यक है और ब्रम्हचर्य खंडित होने पर व्यक्ति पागल हो जाता है इत्यादि लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है. पूर्ण कुण्डलिनी जागरण पर व्यक्ति का वीर्य घन स्वरुप में ना रह कर वायुवान हो जाता है. इसके लिए वीर्य की रक्षा स्वयं हो होती रहती है और उसका प्राकृतिक क्षय नहीं होता है. इस विषय पर आगे के लेख में विस्तार से चर्चा करेंगे. स्त्री में कुण्डलिनी नहीं होती ऐसा भी कई विद्वानों का मत है लेकिन यह धारणा भी अधूरी है. स्त्री तथा पुरुष के शरीर की संरचना बहोत हि अलग है, पुरुष और स्त्री के अवयव भेद होने के कारण कुण्डलिनी के मार्ग तथा शक्ति स्थान और संरचना स्त्रियो में तथा पुरुषों में भिन्न होती है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होता की स्त्री में कुण्डलिनी होती ही नहीं है नाही ऐसा कोई उल्लेख हमारे प्राचीन ऋषियो ने किया है. स्त्री में भी सभी चक्र तथा कुण्डलिनी शक्ति निश्चितरूप से होती ही है और उसे साधना के माध्यम से अनुभव किया जा सकता है.
क्या काम शक्ति ही कुण्डलिनी है?
नहीं. कामशक्ति और कुण्डलिनी शक्ति में अंतर है. व्यक्ति में जो काम शक्ति होती है उसका योग्य संचार करने पर कुण्डलिनी शक्ति को चेतना दी जा सकती है. इसी एक तथ्य को योग्य रूप से न समजने पर कुण्डलिनी को काम शक्ति ही मान लिया है. कई एसी प्रक्रियाये है जिसमे व्यक्ति अपनी काम उर्जा को इस प्रकार से संचारित करता है की वह कुण्डलिनी शक्ति पर आघात कर सके और कुण्डलिनी शक्ति जागृत हो सके. क्यों की काम शक्ति बहोत ही तीव्र शक्ति होती है तथा उसका संचार (पेडू) क्षेत्र कुण्डलिनी शक्ति के मूल स्थान (गुदाद्वार के ऊपर ) के पास होता है.


In previous article we understood the connection of kundalini and human being. In fact, human being is normal and rarebit both. Till the time that power is not in the active state till then human will remain normal and with a awaken state of the kundalini one starts being connected to the universal controlling power ie. Bramh and one can make their life move forward to the greatness we discussed about the same. Kundalini is one of the very important parts of yoga and tantra. That is why there are various opinions and advices are given by our ancient sages based on their experiences and introduced us to the many secrets of this subject, then too this subject has remained very stealthy. Few selfish people made many misconceptions relating this subject just to cheat and fill their pockets. So, wrongly, this subject was many times represented as very dangerous topic instead of its original basic form.
Is kundalini invisible Snake? Could it be dangerous to awake it?
Kundalini is often referred as Snake and when this snake is awakened it bites and it harm us etc. Actually these are just myths. Shakti has no forms, power is formless. For the infusion of the power it forms a symbol or outer body being accompanied with shiva. For the generation of power, it needs outer form or medium or body. Thus there are many forms came in our existence of power. Kundalini is also the power; this power is believed as in form of snake. Here snake is symbol; snake can live up to years being dormant and snake can do complete kayakalpa or reformation of the body. If snake is not having diseases and is also not wounded then by generating Prana power, snake can give life to the self according to its own will. Meaning of the snake here represents the same that goddess or the power in the basic form generates the prana in specific way and provides controlling power over the body. Apart from this, snake is also symbol of pure kaama shakti (sexual power) or in other word creation power. This way goddess kundalini is filled with power of the complete creation. For worship of the any goddess one needs to have its symbolised form or meditation because symbolised or formed deity worship leads towards completeness where as formless deity worship leads toward salvation. This way, goddess is worshiped in the symbolised form of the snake. Though, kundalini power is many times also worshiped as basic form of the main powers like Tripur-Sundari, Mahaakaali, Chhinnamasta etc.
Is it necessary to leave the material (house holding) life before or after kundalini activation?
It is just a myth that human cannot live their material life after kundalini activation. Kundalini power gives human awareness about the basic form there is no connection of the same with house holdings or asceticism. House holding person can also awake kundalini completely and can live his house holding life further completely and normally. There is another such point of many people that human being must follow celibacy and if this celibacy breaks then one may lose mental balance and go mad etc but this is not fact. When kundalini gets awaken completely, semen of the person becomes in the form of air from solid state. This way, it remains protected in itself and natural loose stops. This topic will be discussed in details further in forthcoming articles. Few scholars also say that there is no Kundalini in the females but this incomplete perception. Body structure of male and female has vast difference, because of the difference between body parts of male and female in body structure, there is also difference between of male and female’s kundalini way, its power places and the structure of kundalini but this does not mean that there is no Kundalini in females neither there is any such mention by our ancient sages. Definitely females also haves kundalini power and all chakras and those could also be experienced with sadhana.
Is kundalini an erotic power?
No. There is difference between kamashakti (erotic/sexual power) and kundalini power. If erotic power is given proper flow, with medium of this one can awaken kundalii power. By not understanding this fact properly, many declared kundalini power as sexual power. There are many such process in which person modulates erotic power in such a way that it can stroke the kundalini power. Because Kama Shakti is very acute power and the generation area of the same (pelvis area) is very near to the base place of the kundalini power (upper side of anus).   

****NPRU****

1 comment:

NitinPPatil said...

Jai Sadgurudev,

Bahot bahot sundar aur Satik Janakari Prapt Hui Hai, Kyo ki Kundalini ke bare me galat dharnaye hi bahot hai, lekin aap ki is janakari se bahot se satya ko ujagar kiya hai....Aap ko Shatash Dhanyawad.....Jai Sadgurudev..